-: घण्टी की तरंग से शुद्ध, शांत व पवित्र होता है वातावरण, ध्वनि से मानसिक शांति व सकारात्मकता का होता है अहसास*
● तिलक माथुर केकड़ी-राजस्थान
हर पौराणिक मान्यताओं के पीछे उसका महत्व छिपा होता है जो दिखने में तो बहुत सामान्य है मगर उसका हमारे जीवन में कितना महत्व है इस बारे में हर व्यक्ति को जानना जरूरी है। हिंदू धर्म में पूजा पाठ का विशेष महत्व माना गया है। सभी देवी देवताओं की पूजा अलग-अलग महत्व है इसलिए पूजा भी अलग ढंग से की जाती है, लेकिन इन सभी की पूजा में सामान्य और विशेष बात है घण्टी बजाना। आखिर मंदिर में घण्टी क्यों बजाई जाती है, क्या है इसका महत्व ?
ऐसी मान्यता परम्परागत रूप से चली आ रही है कि पूजा करने के दौरान घंटी जरूर बजानी चाहिए क्योंकि ऐसा करने से भगवान जागते है और आपकी प्रार्थना सुनते हैं। लेकिन आपको बता दें कि घंटी का कनेक्शन केवल भगवान से नहीं है बल्कि इसका वैज्ञानिक महत्व भी है। घंटी को मंदिर के प्रवेश के स्थान पर लगाने की भी यही वजह है। मंदिर घर का हो या किसी धार्मिक स्थल का वहां घंटी तो होती ही है। वैज्ञानिकों का कहना है कि जब घंटी बजाई जाती है तो वातावरण में कंपन पैदा होता है, जो वायुमंडल के कारण काफी दूर तक जाता है। इस कंपन का फायदा यह है कि इसके क्षेत्र में आने वाले सभी जीवाणु, विषाणु और सूक्ष्म जीव आदि नष्ट हो जाते हैं और आसपास का वातावरण शुद्ध व शांत हो जाता है।
हमनें अक्सर महसूस किया होगा कि जिन जगहों व मंदिरों पर घंटी बजने की आवाज नियमित रूप से सुबह व शाम आती है वहां का वातावरण हमेशा शुद्ध और पवित्र बना रहता है। इसी वजह से लोग अपने घर के दरवाजों और खिड़कियों पर भी विंड चाइम्स लगवाते हैं ताकि उसकी ध्वनि से नकारात्मक शक्तियां हटती रहें और वहां का वातावरण शुद्ध रहें। वहीं इसका धार्मिक तर्क है कि मान्यता अनुसार घंटी बजाने से मंदिर में स्थापित देवी-देवताओं की मूर्तियों में चेतना जागृत होती है जिसके बाद उनकी पूजा और आराधना अधिक फलदायक और प्रभावशाली बन जाती है।
घंटी की मनमोहक एवं कर्णप्रिय ध्वनि मन-मस्तिष्क को अध्यात्म भाव की ओर ले जाने का सामर्थ्य रखती है। मन भी घंटी की लय से जुड़कर शांति का अनुभव करता है। कहा गया है कि मंदिर में घंटी बजाने से मानव के कई जन्मों के पाप तक नष्ट हो जाते हैं। सुबह और शाम जब भी मंदिर में पूजा या आरती होती है तो एक लय और विशेष धुन के साथ घंटियां बजाई जाती हैं जिससे वहां मौजूद लोगों को शांति और दैवीय उपस्थिति की अनुभूति होती है। कहा गया है कि जब सृष्टि का प्रारंभ हुआ, तब जो नाद (आवाज) गूंजी थी। वही आवाज घंटी बजाने पर भी आती है। घंटी उसी नाद का प्रतीक है। यही नाद ‘ओंकार’ के उच्चारण से भी जागृत होता है।
मंदिर के बाहर लगी घंटी या घंटे को काल का प्रतीक भी माना गया है। मंदिर में घंटी बजाने के पीछे कई कारण बताए गए हैं।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार देवी-देवताओं की आरती, घंटी के नाद के बिना पूर्ण नहीं हो सकती है। भगवान की आरती में कई प्रकार के वाद्य यंत्र बजाए जाते हैं, इनमें घंटी का स्थान सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। माना गया है कि अगर कोई व्यक्ति नियमित रूप से आरती के समय किसी मंदिर में जाता है तो उसकी बुद्धि तेज होती है। घंटी से निकलने वाले दीर्घ स्वर का हमारे दिमाग पर गहरा असर होता है। घंटी से निकलने वाली ध्वनि से वातावरण के साथ ही हमारे शरीर में भी विशेष कंपन होता है, इस कंपन से हमें शक्ति प्राप्त होती है। इस शक्ति से एकाग्रता बढ़ती है, चिंतन की क्षमता बढ़ती है।