हिसार/मुम्बई/बीकानेर से (पृथ्वीसिंह बैनीवाल बिश्नोई द्वारा)
द्वितीय दिवस के प्रथम सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो किशनाराम विश्नोई ने भक्तिकालीन साहित्य और जांभाणी साहित्य विषय पर अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए भारतीय आध्यात्मिक चिंतन परंपरा और जांभाणी साहित्य को विभिन्न संदर्भों से पुष्टित किया। आपने जंभवाणी का विभिन्न धर्म दर्शन एवं सर्वधर्म समभाव को रेखांकित किया। इस सत्र के विशिष्ट वक्ता डॉ विश्वजीत कुमार मिश्र, राजीव गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय, अरुणाचल प्रदेश ने मध्यकालीन साहित्य में युगबोध और जांभाणी साहित्य विषय पर व्याख्यान दिया। डॉ मिश्र ने जंभवाणी और जांभाणी साहित्य में निहित युग बोध को विस्तारपूर्वक रेखांकित किया। पांडिचेरी विश्वविद्यालय, पुदुच्चेरी के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ जय शंकर बाबु ने गुरु जांभोजी की वाणी को भारतीय भाषाओं के साहित्य की विभिन्न भाषाओ में अनुवाद की आवश्यकता महसूस की । डॉ दर्शन पांडेय ने भक्ति साहित्य और समाज दर्शन तथा जाभाणी साहित्य में निहित आध्यात्मिक चेतना पर प्रकाश डाला।बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के डॉ प्रभाकर सिंह ने जंभवाणी के वैश्विक परिदृश्य और पर्यावरण चिंतन पर गंभीरतापूर्वक व्याख्यान दिया।इस सत्र का संयोजन डॉ मनमोहन लटियाल , सचिव जांभाणी साहित्य अकादमी ने किया और धन्यवाद ज्ञापन हिन्दी विभाग, मुंबई विश्वविद्यालय की डॉ अंशु शुक्ला ने ज्ञापित किया।

समापन सत्र की अध्यक्षता लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ सूर्यप्रसाद दिक्षित ने जांभाणी साहित्य को हिंदी साहित्य इतिहास के भक्ति कालीन साहित्य की परिधी में रखकर बहुत ही सारगर्भित उद्बोधन दिया। भक्ति साहित्य की लोक भाषा , साहित्य और समाज पर गंभीरता से प्रकाश डालने के साथ ही गुरु जांभोजी की वाणी को जीवन चरित में धारण करने की आवश्यकता पर भी बल दिया।
इस सत्र के विशिष्ट वक्ता डॉ दलपत सिंह राजपुरोहित, सहायक आचार्य टेक्सस विश्वविद्यालय,आस्टिन ने हिंदी भक्ति आंदोलन में गुरु जांभोजी एवं जांभाणी साहित्य के पुनर्पाठ पर बहुत ही महत्वपूर्ण एवं समन्वयवादी व्याख्यान दिया। डॉ पुरोहित ने जांभाणी साहित्य के अध्ययन – अनुशीलन के विभिन्न नवीन आयाम विकसित करते हुए सम्पूर्ण जाभाणी साहित्य के पुनर्पाठ एवं हिंदी और राजस्थानी भाषा साहित्य इतिहास को जांभाणी साहित्य के बिना अधूरा बताया । डॉ नवीन चन्द्र लोहानी , अध्यक्ष हिन्दी विभाग, चौधरी चरणसिंह विश्वविद्यालय,मेरठ ने मध्यकालीन परिवेश और काव्य विषय पर व्याख्यान दिया। प्रो आनंद कुमार त्रिपाठी, हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर ने समूचे मध्यकालीन साहित्य में सामाजिक समरसता और गुरु जांभोजी की सामाजिक समरसता व लोक-मंगल को बहुत ही विस्तार से रेखांकित किया। अंत में इस अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी के संयोजक डॉ करुणाशंकर उपाध्याय, प्रोफेसर एवं अध्यक्ष हिन्दी विभाग, मुंबई विश्वविद्यालय मुंबई ने इस अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का प्रतिवेदन प्रस्तुत करने के साथ ही मध्यकालीन साहित्य का पुनर्पाठ और जांभाणी साहित्य के समस्त मर्मज्ञ विद्वानों,प्राध्यापकों , शोधार्थियों एवं समस्त स्रोताओं के प्रति धन्यवाद् एवं आभार प्रकट किया। डॉ उपाध्याय ने जांभाणी साहित्य को मानवीय मूल्यों के विकास का साहित्य बताते हुए इस संपूर्ण साहित्य के अध्ययन – अनुशीलन एवं पुनर्पाठ की आवश्यकता पर बल दिया। साहित्य में निहित समन्वय, सामंजस्य, सर्वहितकारी भावना,लोक मंगल व जांभाणी साहित्य के वैश्विक परिदृश्य पर गंभीरतापूर्वक प्रकाश डाला।
साथ ही साहित्य अकादमी के समस्त पदाधिकारियों, सदस्यों , कार्यकर्ताओं , संपूर्ण जांभाणी समाज , भारतवर्ष के समस्त मिडिया एवं पत्रकार बंधुओं एवं हिंदी विभाग के समस्त विद्वानों का हार्दिक आभार एवं साधुवाद ज्ञापित किया। समापन सत्र का संयोजन डॉ सचिन गपाट ,सहायक आचार्य, हिन्दी विभाग, मुंबई विश्वविद्यालय मुंबई ने किया।इस दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में विश्व के दस राष्ट्रों सहित भारत के सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के सौ से अधिक विश्वविद्यालयों के साढ़े चार हजार प्राध्यापक, शोधार्थी , विधार्थी एवं साहित्य प्रेमियों ने ज़ूम एप एवं फेसबुक के जरिए सहभागिता की । इस कोरोना महामारी के काल में भारतवर्ष में आयोजित होनेज वाली वेबिनार/वेब संगोष्ठियों के इतिहास में यह सर्वाधिक पंजीकरण एवं सहभागिता वाली ऐतिहासिक वेब संगोष्ठी संपन्न हुई।

जिससे विषय की महत्ता एवं वर्तमान प्रासंगिकता स्वत ही स्पष्ट है। संपूर्ण कार्यक्रम का तकनीकी समन्वय डॉ लालचंद बिश्नोई ने किया और सह समन्वयक की भूमिका डॉ मनमोहन लटियाल ने संभाली।इस कार्यक्रम में अकादमी के अध्यक्ष स्वामी कृष्णानंद जी आचार्य,स्वामी सच्चिदानंद आचार्य, श्रीमंहत मनोहरदास शास्त्री, डॉ गोवर्धन राम आचार्य, डॉ बनवारीलाल सहू, राजाराम धारणिया, डॉ आर के विश्नोई, डॉ कृष्ण लाल, डॉ रामाकिशन, डॉ इंद्रा विश्नोई, कृष्ण कांकड़ , डॉ पुष्पा विश्नोई, पृथ्वीसिंह बैनीवाल, उदाराम, डॉ एडवोकेट संदीप धारणिया, बंशीलाल ढाका, आत्माराम पूनिया, विनोद जंभदास, केहराराम, ओमप्रकाश, इंद्रजीत धारणीया, महेश धालय, डॉ भंवरलाल सहित अनेक गणमान्य संतो एवं लोगों ने सहभागिता की ।मध्यकालीन साहित्य का पुनर्पाठ और जांभाणी साहित्य विषय पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का समापन
हिसार/मुम्बई/बीकानेर से (पृथ्वीसिंह बैनीवाल बिश्नोई द्वारा)
द्वितीय दिवस के प्रथम सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो किशनाराम विश्नोई ने भक्तिकालीन साहित्य और जांभाणी साहित्य विषय पर अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए भारतीय आध्यात्मिक चिंतन परंपरा और जांभाणी साहित्य को विभिन्न संदर्भों से पुष्टित किया। आपने जंभवाणी का विभिन्न धर्म दर्शन एवं सर्वधर्म समभाव को रेखांकित किया। इस सत्र के विशिष्ट वक्ता डॉ विश्वजीत कुमार मिश्र, राजीव गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय, अरुणाचल प्रदेश ने मध्यकालीन साहित्य में युगबोध और जांभाणी साहित्य विषय पर व्याख्यान दिया। डॉ मिश्र ने जंभवाणी और जांभाणी साहित्य में निहित युग बोध को विस्तारपूर्वक रेखांकित किया। पांडिचेरी विश्वविद्यालय, पुदुच्चेरी के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ जय शंकर बाबु ने गुरु जांभोजी की वाणी को भारतीय भाषाओं के साहित्य की विभिन्न भाषाओ में अनुवाद की आवश्यकता महसूस की । डॉ दर्शन पांडेय ने भक्ति साहित्य और समाज दर्शन तथा जाभाणी साहित्य में निहित आध्यात्मिक चेतना पर प्रकाश डाला।बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के डॉ प्रभाकर सिंह ने जंभवाणी के वैश्विक परिदृश्य और पर्यावरण चिंतन पर गंभीरतापूर्वक व्याख्यान दिया।इस सत्र का संयोजन डॉ मनमोहन लटियाल , सचिव जांभाणी साहित्य अकादमी ने किया और धन्यवाद ज्ञापन हिन्दी विभाग, मुंबई विश्वविद्यालय की डॉ अंशु शुक्ला ने ज्ञापित किया।

समापन सत्र की अध्यक्षता लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ सूर्यप्रसाद दिक्षित ने जांभाणी साहित्य को हिंदी साहित्य इतिहास के भक्ति कालीन साहित्य की परिधी में रखकर बहुत ही सारगर्भित उद्बोधन दिया। भक्ति साहित्य की लोक भाषा , साहित्य और समाज पर गंभीरता से प्रकाश डालने के साथ ही गुरु जांभोजी की वाणी को जीवन चरित में धारण करने की आवश्यकता पर भी बल दिया।
इस सत्र के विशिष्ट वक्ता डॉ दलपत सिंह राजपुरोहित, सहायक आचार्य टेक्सस विश्वविद्यालय,आस्टिन ने हिंदी भक्ति आंदोलन में गुरु जांभोजी एवं जांभाणी साहित्य के पुनर्पाठ पर बहुत ही महत्वपूर्ण एवं समन्वयवादी व्याख्यान दिया। डॉ पुरोहित ने जांभाणी साहित्य के अध्ययन – अनुशीलन के विभिन्न नवीन आयाम विकसित करते हुए सम्पूर्ण जाभाणी साहित्य के पुनर्पाठ एवं हिंदी और राजस्थानी भाषा साहित्य इतिहास को जांभाणी साहित्य के बिना अधूरा बताया । डॉ नवीन चन्द्र लोहानी , अध्यक्ष हिन्दी विभाग, चौधरी चरणसिंह विश्वविद्यालय,मेरठ ने मध्यकालीन परिवेश और काव्य विषय पर व्याख्यान दिया। प्रो आनंद कुमार त्रिपाठी, हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर ने समूचे मध्यकालीन साहित्य में सामाजिक समरसता और गुरु जांभोजी की सामाजिक समरसता व लोक-मंगल को बहुत ही विस्तार से रेखांकित किया। अंत में इस अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी के संयोजक डॉ करुणाशंकर उपाध्याय, प्रोफेसर एवं अध्यक्ष हिन्दी विभाग, मुंबई विश्वविद्यालय मुंबई ने इस अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का प्रतिवेदन प्रस्तुत करने के साथ ही मध्यकालीन साहित्य का पुनर्पाठ और जांभाणी साहित्य के समस्त मर्मज्ञ विद्वानों,प्राध्यापकों , शोधार्थियों एवं समस्त स्रोताओं के प्रति धन्यवाद् एवं आभार प्रकट किया। डॉ उपाध्याय ने जांभाणी साहित्य को मानवीय मूल्यों के विकास का साहित्य बताते हुए इस संपूर्ण साहित्य के अध्ययन – अनुशीलन एवं पुनर्पाठ की आवश्यकता पर बल दिया। साहित्य में निहित समन्वय, सामंजस्य, सर्वहितकारी भावना,लोक मंगल व जांभाणी साहित्य के वैश्विक परिदृश्य पर गंभीरतापूर्वक प्रकाश डाला।
साथ ही साहित्य अकादमी के समस्त पदाधिकारियों, सदस्यों , कार्यकर्ताओं , संपूर्ण जांभाणी समाज , भारतवर्ष के समस्त मिडिया एवं पत्रकार बंधुओं एवं हिंदी विभाग के समस्त विद्वानों का हार्दिक आभार एवं साधुवाद ज्ञापित किया। समापन सत्र का संयोजन डॉ सचिन गपाट ,सहायक आचार्य, हिन्दी विभाग, मुंबई विश्वविद्यालय मुंबई ने किया।इस दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में विश्व के दस राष्ट्रों सहित भारत के सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के सौ से अधिक विश्वविद्यालयों के साढ़े चार हजार प्राध्यापक, शोधार्थी , विधार्थी एवं साहित्य प्रेमियों ने ज़ूम एप एवं फेसबुक के जरिए सहभागिता की । इस कोरोना महामारी के काल में भारतवर्ष में आयोजित होनेज वाली वेबिनार/वेब संगोष्ठियों के इतिहास में यह सर्वाधिक पंजीकरण एवं सहभागिता वाली ऐतिहासिक वेब संगोष्ठी संपन्न हुई। जिससे विषय की महत्ता एवं वर्तमान प्रासंगिकता स्वत ही स्पष्ट है। संपूर्ण कार्यक्रम का तकनीकी समन्वय डॉ लालचंद बिश्नोई ने किया और सह समन्वयक की भूमिका डॉ मनमोहन लटियाल ने संभाली।इस कार्यक्रम में अकादमी के अध्यक्ष स्वामी कृष्णानंद जी आचार्य,स्वामी सच्चिदानंद आचार्य, श्रीमंहत मनोहरदास शास्त्री, डॉ गोवर्धन राम आचार्य, डॉ बनवारीलाल सहू, राजाराम धारणिया, डॉ आर के विश्नोई, डॉ कृष्ण लाल, डॉ रामाकिशन, डॉ इंद्रा विश्नोई, कृष्ण कांकड़ , डॉ पुष्पा विश्नोई, पृथ्वीसिंह बैनीवाल, उदाराम, डॉ एडवोकेट संदीप धारणिया, बंशीलाल ढाका, आत्माराम पूनिया, विनोद जंभदास, केहराराम, ओमप्रकाश, इंद्रजीत धारणीया, महेश धालय, डॉ भंवरलाल सहित अनेक गणमान्य संतो एवं लोगों ने सहभागिता की ।