मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने मंगलवार को फिर राज्यपाल को पत्र लिखा |
मुख्यमंत्री ने पत्र में खेद व्यक्त किया कि संसदीय परंपराओं का पालन नहीं करने की उनकी मंशा नहीं थी| इस पत्र में कमलनाथ ने कहा है, ‘मैंने अपने ४० साल के लंबे राजनैतिक जीवन में हमेशा सम्मान और मर्यादा का पालन किया है| आपके पत्र दिनांक १६ मार्च २०२० को पढ़ने के बाद मैं दुखी हूं कि आपने मेरे ऊपर संसदीय मर्यादाओं का पालन न करने का आरोप लगाया है| मेरी ऐसी कोई मंशा नहीं थी, फिर भी यदि आपको ऐसा लगा है तो, मैं खेद व्यक्त करता हूं| यह पत्र, सरकार द्वारा इस घटनाक्रम के बाद किये जा रहे कार्य, बरबस इतिहास के पन्ने पलटने को मजबूर कर देता है |
कुछ उदाहरण १. इसी प्रदेश में सविंद सरकार के दौरान पं.द्वारिका प्रसाद मिश्र यह जानते थे कि बहुमत उनके साथ है, फिर भी नैतिकता राजनीतिक शुचिता को ध्यान में रखकर उन्होंने कुर्सी का मोह त्याग दिया था | २. श्री चन्द्रभानु गुप्त, मुख्यमन्त्री, उत्तर प्रदेश ने वर्ष १९६२-६३ में अपनी पार्टी के मन्त्री चौधरी चरण सिंह द्वारा कुछ विधायकों के साथ कांग्रेस से अलग हो जाने पर तत्काल तत्कालीन राज्यपाल डॉक्टर बुर्गुल रामकृष्ण राव को अपनी कांग्रेसी सरकार का त्याग-पत्र प्रस्तुत कर दिया था।३. श्री मोरारजी भाई देसाई, प्रधानमन्त्री, ने वर्ष १९८९ में केन्द्रीय मन्त्री चौधरी चरण सिंह ऐसी ही स्थिति निर्मित करने पर राष्ट्रपति श्री नीलम संजीव रेड्डी को अपनी सरकार का इस्तीफ़ा तत्काल दे दिया था।४. श्री अटल बिहारी बाजपेयी ने एनडीए में मात्र एक सांसद की कमी पर कोई जोड़-तोड़ न करके १६ मई १९९६ को संसद में ऐतिहासिक भाषण देकर सरकार का त्याग-पत्र पेश कर दिया था|
अब राज भवन और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री का पत्र व्यवहार मिसाल बन रहा है |मुख्यमंत्री ने लिखा है, ‘आपने अपने पत्र में यह खेद जताया है कि मेरे द्वारा आपने जो समयावधि दी थी उसमें विधानसभा में अपना बहुमत सिद्ध करने के बजाय मैंने आपको पत्र लिखकर फ्लोर टेस्ट कराने में आनाकानी की है| मैं आपके ध्यान में यह तथ्य लाना चाहूंगा कि पिछले १५ महीनों में मैंने सदन में कई बार अपना बहुमत सिद्ध किया है. अब यदि भाजपा यह आरोप लगा रही है तो मेरे पास बहुमत नहीं है तो वे अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से फ्लोर टेस्ट करा सकते हैं. मुख्यमंत्री ने लिखा मेरी जानकारी में आया है कि उन्होंने अविश्वास प्रस्ताव प्रस्तुत कर दिया है जो विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष लंबित है. विधानसभा नियमावली के अनुसार माननीय अध्यक्ष इस पर नियमानुसार कार्यवाही करेंगे तो अपने आप यह सिद्ध हो जाएगा कि हमारा विधानसभा में बहुमत है|
एक तरफ चिठ्ठी पत्री चल रही है , दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश विधानसभा में तत्काल शक्ति परीक्षण कराने की मांग करने वाली, पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की याचिका पर कमलनाथ सरकार से बुधवार तक जवाब मांगा है| न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कल मंगलवार को आज [बुधवार ] सुबह साढ़े 10 बजे के लिए राज्य सरकार और विधानसभा सचिव समेत अन्य को नोटिस जारी किये हैं | चौहान और राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता समेत भाजपा के नौ अन्य विधायक सोमवार को उच्चतम न्यायालय पहुंचे थे| कांग्रेस की ओर से भी एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई है |शिवराज सिंह चौहान और भाजपा के नौ विधायकों ने सुप्रीम कोर्ट से आदेश देने के 12 घंटे के भीतर राज्यपाल के निर्देशों के अनुसार शक्ति परीक्षण कराने का आदेश देने की मांग की गई है|
अब सवाल सरकार की नैतिकता,प्रतिपक्ष की अधीरता का है जिसका फैसला सुप्रीम कोर्ट में होगा | सरकार की नियुक्तियों की रफ्तार भी गौर तलब है | राजभवन अनुकूल होता तो मंत्रीमंडल विस्तार का जलसा भी हो जाता |