– बीकानेर स्थापना दिवस पर विशेष। भाग 1
– राज परिवार और रियासत भक्त लखावत व्यास

आधुनिक बीकानेर के निर्माता गंगा सिंह जी उन्हें महेशजी ही पुकारा करते थे। दरअसल महेशजी का जन्म 1863 ई को हुआ। जो महाराजा गंगा सिंह जन्म 1880 ई से 17 साल बड़े थे। महाराजा डूंगर सिंह के शासन समय 1872 से 1887 में महेशजी दरबारी रह चुके थे। इसके अलावा महाराजा गंगा सिंह जब मेयो कॉलेज में पढ़ते थे तो महेशजी को उनके केयरटेकर के रूप में भेजा गया। महेशजी राजपरिवार के साथ बीकानेर रियासत में भी लोकप्रिय रहे। इसकी वजह उनकी रियासत राजभक्ति रही, वे सूझबूझ के भी धनी थे। गंगा सिंह जी महज 7 साल की आयु में राजा बने।

अवयस्क महाराजा को कब सोना है कब उठाना है, किस अवसर कैसी पोशाक पहननी है किससे बात या नहीं करनी है, कैसा आचरण करना है आदि बातों पर महेशजी अपनी निगाह रखते थे। अनेक बार ऐसा होता था कि महाराजा को कुछ बातें नागवार लगती थी तो वह कहते मुझे शासन की शक्तियां मिलने तो दो फिर में आपको शूट कर दूंगा। इस पर महेशजी कहते आपको जो भी करना है समय पर करना है, लेकिन अभी तो वही करना है जो मैं कहता हूँ। बाद में 1889 में जब गंगा सिंह को शासन की सभी शक्तियां मिली तब तक वे महेशजी लखावत के मूल्यवान सुझावों को समझ चुके थे। तब गंगासिंह जी ने कहा था कि महेशजी में जी कुछ भी हूँ वह आपके कारण हूँ। महाराजा के मन में महेशजी के प्रति सम्मान आदर रहा। यहाँ तक कि महेश जी के घर जब कभी कोई शादी होती थी तो वर के लिए हाथी की सवारी का प्रबंध राज की ओर से होता था। दरबार की कार्रवाई का संचालन भी महेशजी ही किया करते थे। जानेमाने साहित्यकार भवानी शंकर व्यास के अनुसार
महेशजी ईमानदार और समर्पित रहे लालगढ़ में वह आते जाते रहे लेकिन उन्होंने वहां पानी भी नहीं पिया।

वंशज तेजकरण व्यास लखावत बताते है कि जूनागढ़ में हमारे पूर्वज लक्ष्मीदास ब्यास लखावत थे। उन्हें लखोजी नाम से पुकारा जाता था। बाद में उनके वंशज लखावत कहलाए गए। वर्तमान में सूरसागर तालाब के पास लखावत व्यासों का चौक है।
वरिष्ठ पत्रकार जितेंद्र व्यास लखावत के अनुसार राज भक्ति का ऐसा उदाहरण कम ही मिलता है। महेशजी एकमात्र रियासत भक्त थे जो बीकानेर के तीन शासकों तक दरबार प्रमुख रहे।महाराजा डूंगर सिंह, महाराजा गंगा सिंह, महाराजा सार्दुल सिंह। इसके बाद महाराजा करणी सिह के विवाह समारोह में भी उनके चित्र है महाराजा गंगा सिंह के प्रत्येक चित्र में उनकी उपस्थिति है। यह चित्र लालगढ़, जूनागढ़, राजकीय म्यूजियम में आज भी लगे है। महेशजी ने जीवन में अपने लिए कुछ नहीं माँगा। सार्वजनिक हित की ही बात की। महाराजा सार्दुल सिंह ने महेशजी की मांग पूरी करते हुए पुष्करणा स्कूल भवन और स्टेडियम बनाने के लिए निशुल्क जमीन दी। बीकानेर में महाराजा सरदार सिंह से लेकर जो लोग दरबारी रहे उनमे दौलतराम, मथुरादास, महेशजी, शिवबक्स, गम्भीरचंद जी लखावत आदि प्रमुख रहे। इनके अलावा गेहरमलजी, विजयशंकर, गोपाल दत्त व्यास, मनीराम, सीताराम व्यास, गोपालजी, लट्टूसा, रणछोड़दास व्यास, तुलसीराम, हरिनारायण व्यास आदि प्रमुख प्रभावशाली रहे। इनमे गेहरमल जी की याद में जूनागढ़ के सामने शारदा पुस्तकालय बनवाया गया बाद में वहां राजपूत भवन और एक मंदिर बना। उनके नाम से गेरुमलजी के नाम से वर्तमान में बगेची है।
प्रस्तुति जितेंद्र व्यास पत्रकार।