बीकानेर/ कविता कंवर
लेखन में जेंडर के आधार पर भेद नहीं होता किंतु आलोचना अपनी सुविधा के लिए लिंग, आयु, विधा और विमर्श आदि अनेक भेद करती रही है किंतु साहित्य को उसकी समग्रता में देखा जाना-परखा जाना चाहिए। उक्त विचार अंतरराष्ट्रीय राजस्थानी समाज की तरफ से आयोजित ‘राजस्थानी साहित्य अर स्त्री विमर्श’ संगोष्ठी में प्रतिष्ठित उभर कर सामने आए। संगोष्ठी में राजस्थनी की प्रख्यात लेखिकाओं डॉ. शारदा कृष्ण (सीकर), बसंती पंवार (जोधपुर) और मोनिका गौड़ (बीकानेर) से कवि-आलोचक डॉ. नीरज दइया ने ऑनलाइन संवाद किया।
प्रसिद्ध लेखिका डॉ. शारदा कृष्ण ने कहा कि राजस्थानी महिला लेखन बेहद समृद्ध है किंतु महिला रचनाकारों को अनेक संकटों का सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि हरेक रचनाकार अपने परिवेश से संपृक्त होकर रचना करता है, उसी से लेखन की गुणवत्ता बढती है।
वरिष्ठ कथाकार बसंती पंवार ने अपने उपन्यासों का हवाला देते हुए कहा कि स्त्री के जीवन के सत्रांस और संघर्ष को शब्दबद्ध करने की प्रक्रिया जटिल होती है, उसे सुखांत या दुखांत रचनाकार सायास नहीं करता है। प्रसिद्ध कवयित्री मोनिका गौड़ ने कहा कि लेखिकाओं के सामने यह संकट होता है कि वे जो भी लिखती हैं उसमें उसके जीवन और संबंधों को खोजते हुए टिप्पणियां होती है जो सरासर गलत है। कवि-आलोचक डॉ. नीरज दइया ने कहा कि घर-परिवार और अपने आस पास की दुनिया में हमें महिला लेखन को प्रोत्साहित करना राजस्थानी साहित्य के विकास के लिए जरूरी है।

अंतरराष्ट्रीय राजस्थानी समाज के संयोजक डॉ. नीरज दइया ने बताया कि ‘राजस्थानी साहित्य अर स्त्री विमर्श’ के सजीव प्रसारण में साहित्यकार बुलाकी शर्मा, नंद भारद्वाज, श्याम सुंदर भारती, राजेंद्र जोशी, राजेंद्र शर्मा ‘मुसाफिर’, हरिमोहन सारस्वत, विजय जोशी, हरिचरण अहरवाल, चंद्रशेखर जोशी, घनश्याम दैया, ओम नागर, मदन गोपाल लढ़ा, राजाराम स्वर्णकार, कल्पना गोयल, मनोज कुमार स्वामी समेत दो सौ से अधिक लेखकों और राजस्थानी प्रेमियों ने हिस्सा लिया तथा कार्यक्रम को पांच सौ से अधिक दर्शक मिले।
आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में अगला कार्यक्रम 14 अगस्त शाम 5 बजे होगा, जिसमें सुमन बिस्सा, आशा पांडेय ओझा, रेणुका व्यास ‘नीलम’, कामना राजावत और सिया चौधरी अपनी प्रतिनिधि राजस्थानी कविताएं प्रस्तुत करेगी।