पिता के स्थान पर पति के नाम का अनुसूचित जाति के प्रमाणपत्र के कारण पात्रता रद्द करने का मामला
जोधपुर । राजस्थान उच्च न्यायालय जोधपुर के न्यायाधिपति दिनेश मेहता ने महिला एवं बाल विकास अधिकारिता विभाग के महिला स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता के चार हजार से अधिक पदों के लिए जारी विज्ञापन में सूचित पदों में से याचिकाकर्ता के लिए एक पद रिक्त रखने के आदेश राज्य सरकार व विभाग को दिये । याचिकाकर्ता के अधिवक्ता निमेष सुथार ने जानकारी देते हुए बताया कि महिला एवं बाल विकास अधिकारिता विभाग द्वारा दिनांक 18 जून 2018 को विज्ञापन जारी कर चार हजार से अधिक पदों के लिए अभ्यर्थियों से आवेदन आमंत्रित किए गए । जिसमें पात्र होते हुए याचिकाकर्ता कृष्णा मेघवाल ने भी आवेदन किया ।

जो चयन प्रक्रिया के पश्चात चयनित हुई व मेरिट में स्थान प्राप्त किया तथा दस्तावेज सत्यापन के लिए विभाग में गई । जिसके बाद बिना कोई कारण बताये 2020 याचिकाकर्ता का नाम अचयनित अभ्यर्थियों की सूची में शामिल कर दिया गया व पूछने पर भी कोई उतर नहीं दिया गया । जिससे व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय जोधपुर के समक्ष याचिका प्रस्तुत की। जवाब में सरकार ने पात्रता रद्द करने का कारण बताया कि याचिकाकर्ता के अनुसूचित जाति के प्रमाणपत्र में पिता के स्थान पर पति का नाम होने की वजह से याचिकाकर्ता को पात्र नहीं माना गया ।

प्रत्यर्थी की ओर से बहस में यह तर्क दिया गया कि जाति प्रमाणपत्र जारी करने का अधिकार राज्य सरकार के अधिकारी के पास ही है जिसमें प्रार्थी का कोई हस्तक्षेप नहीं होता है व विवाह के पूर्व उसका जाति प्रमाणपत्र पिता के नाम के साथ ही है व वह राजस्थान की मूल निवासी है । जिस पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति श्री दिनेश मेहता ने प्रतिवादी राज्य सरकार व विभाग को याचिकाकर्ता के लिए एक पद रिक्त रखने के आदेश किए ।

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