शोभायात्रा निकली,भक्तों का उमड़ा सैलाब

बीकानेर (कविता कंवर राठौड़ )। देशनोक में माँ का 635 वें जन्मोत्सव श्रद्धा भक्ति के साथ मनाया गया। सप्तमी के दिन देशनोक मंदिर से माता की सवारी निकली जिसमें लाखों श्रद्धालुओं ने हर्षोल्लास के साथ भाग लिया ।  बैंड बाजे की स्वर लहरियां ढोल नगाड़े की थाप पर झूमते हुए भक्त  चिरजा भजन के साथ शोभा यात्रा का आयोजन हुआ।  पहले माँ क़रणी अपने  बहन माँ तेमडाराय से मिलने के लिये जाते है फिर सदर बाज़ार से  होकर वापस माँ करणी के मंदिर पहुंचने के बाद यात्रा को विश्राम दिया जाता है। ,  माँ  के दर्शन के लिए लाखों की संख्या में लोग मौजूद रहते हैं।  ग्राम वासियो के लिए यह दिन त्योहार के रुप में मनाया जाता है। देशनोक करणी माता परिषद द्वारा यहां आने वाले श्रद्धालु के लिए विशेष इंतजाम यह जाते हैं। अनेक सामाजिक संगठनों द्वारा पैदल यात्रियों के लिए जगह जगह सेवा शिविर लगाकर खाने पीने आदि की व्यवस्था की जाती है। मान्यता है कि मां करणी के दर्शन से भक्तों के सारे काम सिद्ध हो जाते हैं। इसलिए अनेक श्रद्धालु महीने में या नवरात्रा पर दर्शन करने यहां दूर दराज से पहुंचे हैं । 9 दिन तक नवरात्र में विशेष पूजा अर्चना के साथ अनेक कार्यक्रमों का आयोजन भी होता है। जिसने देश के ख्याति कलाकार अपनी प्रस्तुतियां देते हैं।
जन्मस्थल- जोधपुर के फलौदी (वर्तमान में आऊ) के सुवाप गांव के मेहो चारण द्वितीय के घर पर करणी माता का जन्म 21 महीने के गर्भ के बाद संवत् 1444 में अश्विनी मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को हुआ। 29 साल तक वहीं रही। पिता, बुआ सहित आस-पास के सैकड़ों लोगों को चमत्कार दिए। संवत्

1473 में विवाह पर जन्मस्थली छोड़ी।


साठिका: तोरण धारी माता
विवाहस्थल- बीकोनर के नोखा स्थित साठिका गांव में संवत् 1473 में उनका विवाह देपाजी के साथ हुआ। शादी वाले दिन रास्ते में ही देपाजी को चमत्कार दिया। उन्हें अपना असली रूप बताकर छोटी बहन गुलाब बाई से शादी करने के लिए कहा। संवत् 1474 में बहन का विवाह देपाजी से करवा दिया। दो साल में उन्होंने साठिका का परित्याग कर दिया।
देशनोक: यहां जगदंबा स्वरूपा
तपोस्थली- बीकानेर शहर से 30 किमी दूर जहां करणी माता संवत् 1476 में आईं। वर्तमान में बने मुख्य मंदिर के अंदर स्वनिर्मित गु फा को तपोस्थली बनाया। संवत् 1594 तक यानी 118 साल तक यहां तपस्या की। देशनोक में ही नेहड़ी मंदिर में सपरिवार आवास स्थल बनाया। यहां पर गो सेवा को विशेष महत्व दिया। ओरण की स्थापना की।
धिनेरू तलाई: वरदात्री मां
महानिर्वाण- देशनोक से रवाना होकर जैसलमेर में अपनी आराध्या देवी आयड़ माता (तेमड़ाराय) के दर्शन कर करणी माता संवत् 1595 में धिनेरू तलाई पहुंचीं। यहां बीकानेर व जैसलमेर राजघराने के बीच युद्ध को शांत करने आई थीं। यहीं ज्वाला प्रकट कर करणी माता भौतिक शरीर से अदृश्य हो गईं। रिणमढ़ नाम से माता का मंदिर है।