– प्रतिदिन -राकेश दुबे
मीडिया किसी भी समाज का आईना होता है। मीडिया की आजादी से यह बात साबित होती है कि उस देश में अभिव्यक्ति की कितनी स्वतंत्रता है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में मीडिया की स्वतंत्रता एक मौलिक जरूरत है। भारतीय पत्रकारिता में हमेशा विचार हावी होता है, जबकि पश्चिम में तथ्यात्मकता पर जोर दिया जाता है। इससे कहीं न कहीं हमारे पत्रकारिता के स्तर में कमी आती है। मुम्बई पुलिस, महाराष्ट्र सरकार और अर्नब गोस्वामी का मामला कुछ ऐसा ही है।इसमें पत्रकारिता कम अर्नब गोस्वामी का व्यक्तिगत व्यवहार ज्यादा शामिल है । हाँ ! परिस्थितियां जरुर इसे पत्रकारिता का बदला भुनाने का आभास दे रही है |इसलिए जरूरी है, तथ्यों की जाँच हो ।भारतीय दंड विधान की किसी अन्य धारा के तहत दर्ज अपराध से बचने के लिए, जहाँ पत्रकारिता को कवच के रूप प्रयोग करना गलत है तो किसी समाप्त प्रकरण को फिर से सिर्फ इसलिए खोलना कि किसी पत्रकार की आवाज़ बंद करना है, घोर अप्रजातांत्रिक कृत्य और अपराध है।
वैसे इन दिनों लोकतांत्रिक प्रणाली के सभी स्तंभ जिस तरह से निशाना बनाए जा रहे हैं, वो बहुत ज्यादा चिंता की बात है। आज देश में अभिव्यक्ति की आजादी खतरे में दिख रही है, सरकार के खिलाफ बोलने वालों को देशद्रोही और आतंकवादी की तरह से पेश किया जा रहा है। स्वीडन से एक रिपोर्ट सामने आई है, जिसमें इसी तरह की चिंताएं व्यक्त की गई हैं।
स्वीडन की वी-डेम इंस्टिट्यूट की वर्ष २०२० की डेमोक्रेसी रिपोर्ट हाल ही में जारी हुई है, इसके अनुसार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार में मीडिया, नागरिक समाज और विपक्ष के लिए कम होती जगह के कारण भारत अपना लोकतंत्र का दर्जा खोने की कगार पर है। गौरतलब है कि स्वीडन के गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय में २०१४ में स्थापित वी-डेम एक स्वतंत्र अनुसंधान संस्थान है। इसकी डेमोक्रेसी रिपोर्ट दुनिया भर के देशों में लोकतंत्र की स्थिति का आकलन करती है। यह संस्थान अपने आप को लोकतंत्र पर दुनिया की सबसे बड़ी डेटा संग्रह परियोजना कहता है।
उदारवादी लोकतंत्र सूचकांक के आकलन के लिए इस रिपोर्ट में जनसंख्या को पैमाना बनाया गया है जो जनसंख्या आकार के आधार पर औसत लोकतंत्र स्तर को मापता है जिससे पता चलता है कि कितने लोग प्रभावित हैं। यह सूचकांक चुनावों की गुणवत्ता, मताधिकार, अभिव्यक्ति और मीडिया की स्वतंत्रता, संघों और नागरिक समाज की स्वतंत्रता, कार्यपालिका पर जांच और कानून के नियमों को शामिल करता है।
रिपोर्ट में कहा गया कि भारत जनसंख्या के मामले में निरंकुश व्यवस्था की ओर आगे बढ़ने वाला सबसे बड़ा देश है। इस में उल्लेख किया गया, भारत में नागरिक समाज के बढ़ते दमन के साथ मीडिया की स्वतंत्रता में आई कमी का मुद्दा, वर्तमान शासन से जुड़ा है। खास बात ये है कि ये रिपोर्ट राज्यसभा से कृषि कानूनों को पास करवाने, संसद सत्र में प्रश्नकाल को शामिल नहीं करने, न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर उठने वाले सवाल और हाथरस मामले से पहले प्रकाशित हो चुकी थी, अन्यथा भारत की स्थिति और खराब दिखाई देती । वैसे इस साल जनवरी में द इकोनॉमिस्ट ग्रुप द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट में २०१९ के लोकतंत्र सूचकांक में बड़ी गिरावट दर्ज करते हुए भारत१० पायदान फिसलकर ५१ वें स्थान पर आ गया है। कुछ वक्त पहले जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने भी सरकार विरोधी आवाजों के दमन पर चेतावनी दी थी |मीडिया का विवेचन और प्रतिपक्ष की असहमति लोकतंत्र में सेफ़्टी वॉल्व का काम करता है। अगर आप इन सेफ़्टी वॉल्व को नहीं रहने देंगे तो दुर्घटना का पूरा अंदेशा है ।
आज जहाँ बात अर्नब गोस्वामी और उनके चैनल आर भारत की है । इस मामले में काम लेकर भुगतान न करने जैसे संव्यवहार उसके फलस्वरूप दो आत्महत्याएं, इन आत्म हत्याओं के लिए उकसाने का अपराध दर्ज होना, फिर उसमे खात्मा लगना और उन्हें फिर किसी अज्ञात कारण से फिर से खोलकर गिरफ्तार करने जैसे तथ्य सामने आये है |मीडिया में अन्य भुगतान के साथ काम करने वाले पत्रकारों का पारिश्रमिक भी दबाने का कुत्सित चलन बड़ा है और सरकार इस ओर आँखे मूंदे है।