बीकानेर। भगवान आपसे मिलने की उत्सुकता आपसे भी ज्यादा रखते हैं। लेकिन आप में उनके प्रति रूचि कम होने के कारण ही वे नहीं मिल पाते हैं।भगवान से प्रेम करने के लिए हमें भगवान जितनी ही भावना पैदा करनी पड़ती है। यह सद्विचार क्षमारामजी महाराज ने व्यक्त किये। महाराज ने बकासुर राक्षस और विशाल सर्प आभासुर का प्रसंग विस्तारपूर्वक बताया ।
महाराज ने श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं में उनके द्वारा बाल सखाओं के साथ सामूहिक भोजन करने का वृतांत सुनाया। साथ ही कहा कि जिस घर में खाना खाने की प्रथा है वहां पर यह मानकर चलना चाहिए कि तामसी गुण की प्रधानता रहेगी। खाना शब्द को गलत बताते हुए महाराज जी ने कहा कि हमारे शास्त्रों में जिसे भोजन या प्रसाद कहा जाता है उसके नाम को वर्तमान में विकृत कर दिया गया है। महाराज ने उपस्थित जनसमूह से कहा कि वे अपने घर में जब भी भोजन करे उससे पहले भगवान का स्मरण अवश्य करें।
चिकित्सा सेवा दी
श्रीमद् भागवत कथा समिति के गोपाल अग्रवाल ने बताया कि कथा में आने वाली माताओं-बहनों और पुरुषों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए चिकित्सा सेवा शुरु की गई। डॉ. रामेश्वरलाल जोशी ने ब्लड प्रेशर, शुगर आदि की जांच कर रोगियों को दवा के साथ परामर्श भी दिया।