-अजमीढ़ देव एक महान क्षत्रिय पराक्रमी राजा के रूम में मान्य थे, शरद पूर्णिमा के दिन मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज द्वारा आदि पुरुष अजमीढ़ की जयंती मनाने की परंपरा है !

✍🏼तिलक माथुर
केकड़ी_राजस्थान
राजस्थान में प्रसिद्ध शहर अजमेर जिसका प्राचीन नाम अजयमेरू था और कहा जाता है कि अजयमेरू की नींव अजमीढ़ महाराज ने रखी थी। शहर बसाकर मेवाड़ की नींव रखने वाले महाराज अजमीढ़ मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज के आदि पुरुष माने जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि महाराज अजमीढ़, ब्रम्हा द्वारा उत्पन्न अत्री की 28 वीं पीढ़ी में त्रेता युग में जन्मे थे। अजमीढ़ नि:संदेह पौरववंश के महान सार्व भौम सम्राट थे। यद्यपि सही प्रमाणों के आभाव पूर्ण दावा तो नहीं किया जा सकता है किन्तु कई एक साहित्यिक एवं ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर इस बात के संकेत मिलते है की वर्तमान अजमेर जिसका प्राचीन नाम अजयमेरू था उसके संस्थापक अजमीढ़ ही थे। अजयराज चौहान द्वारा 12 वीं शताब्दी में अजमेर की स्थापना किये जाने की मान्यता निरस्त करने के कई प्रमाण उपलब्ध है। अजयराज चौहान के अतिरिक्त कोई दूसरा दावेदार इतिहास में नहीं है। अंत: बहुत संभव है की अजमीढ़ द्वारा ही ही अजमेर की स्थापना की गई थी।

महाराजा अजमीढ़ के पिता का श्रीहस्ति थे, जिन्होंने महाभारत काल में वर्ण‍ित हस्तिनापुर नगर को बसाया था। अजमीढ़ जेष्ठ पुत्र होने के कारण हस्तिनापुर राजगद्दी के उतराधिकारी हुए और बाद में अजमीढ़ प्रतिष्टानपुर (प्रयाग) एव हस्तिनापुर दोनों राज्यों के भी सम्राट हुए। प्रारंभ में चन्द्रवंशीयों की राजधानी प्रयाग प्रतिष्टानपुर में ही थी। हस्तिनापुर बसाये जाने के बाद प्रमुख राज्यगद्दी हस्तिनापुर हो गई। इतिहासकारों के अनुमान के मुताबिक ई.पू. 2000 से ई.पू. 2200 वर्ष में उनका राज्यकाल रहा। महाराजा हस्ती के जीवन काल की प्रमुख घटना यही मानी जाती है की उन्होंने हस्तिनापुर का निर्माण करवाया। प्राचीन समय में हस्तिनापुर न केवल तीर्थ स्थल, बल्कि देश का प्रमुख राजनैतिक एव सामाजिक केंद्र रहा। कालांतर में हस्तिनापुर कौरवों की राजधानी रहा जिसके लिए प्रसिध्य कुरुक्षेत्र युद्ध हुआ।

ऐसा कहा जाता है कि महाराजा अजमीढ़ देव धर्म-कर्म में विश्वास रखते थे और उन्हें खिलौने तथा आभूषण बनाने का बेहद शौक था। अपने इसी शौक के चलते वे अनेक प्रकार के खिलौने, बर्तन और आभूषण बनाकर उन्हें अपने प्रियजनों को भेंट किया करते थे। उनके इसी शौक को उनके वंशजों ने आगे बढ़ाकर व्यवसाय के रूप में अपना लिया, तभी से वे स्वर्णकार के रूप में जाने गए और आज तक आभूषण बनाने का यह व्यवसाय उनके वंशजों द्वारा जारी है। अजमीढ़ देव एक महान क्षत्रिय पराक्रमी राजा के रूम में मान्य थे। शरद पूर्णिमा (आश्विन शुक्ला १५) के दिन, मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज द्वारा आदि पुरुष अजमीढ़ की जयंती मनाने की परंपरा है। मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज महाराजा अजमीढ़ को अपना पितृ-पुरुष (आदि पुरुष) मानते हैं। ऐतिहासिक जानकारी के आधार पर मैढ़ क्षत्रिय अपनी वंशबेल को भगवान विष्णु से जुड़ा हुआ पाते हैं। कहा गया है कि भगवान विष्णु के नाभि-कमल से ब्रह्माजी की उत्पत्ति हुई। ब्रह्माजी से अत्री और अत्रीजी की शुभ दृष्टि से चंद्र-सोम हुए।

महाराजा हस्ति के पुत्र विकुंठन एवं दशाह राजकुमारी महारानी सुदेवा के गर्भ से महाराजा अजमीढ़ का जन्म हुआ। इनके अनेक भाईयों में से पुरुमीढ़ और द्विमीढ़ विशेष प्रसिद्ध हुए और दोनों पराक्रमी राजा थे। द्विमीढ़ के वंश में मर्णान, कृतिमान, सत्य और धृति आदि प्रसिद्ध राजा हुए। पुरुमीढ़ के कोई संतान नहीं हुई। राजा हस्ती के येष्ठ पुत्र अजमीढ़ महान चक्रवर्ती राजा चन्द्रवंशी थे। महाराजा अजमीढ़ के दो रानियां सुयति व नलिनी थी। इनके गर्भ में बुध्ददिषु, ऋव, प्रियमेध व नील नामक पुत्र हुए। उनसे मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज का वंश आगे चला। अजमीढ़ ने अजमेर नगर बसाकर मेवाड़ की नींव डाली। महान क्षत्रिय राजा होने के कारण अजमीढ़ धर्म-कर्म में विश्वास रखते थे। वे सोने-चांदी के आभूषण, खिलौने व बर्तनों का निर्माण कर दान व उपहार स्वरुप सुपुत्रों को भेंट किया करते थे। वे उच्च कोटि के कलाकार थे। आभूषण बनाना उनका शौक था और यही शौक उनके बाद पीढ़ियों तक व्यवसाय के रुप में चलता आ रहा है।समाज के सभी व्यक्ति इनको आदि पुरुष मानकर अश्विनी शुक्ल पूर्णिमा को अजमीढ़ जयंती मनाते हैं।
*ब्लॉग : तिलक माथुर 9251022331*