जयपुर । ‘मुक्त मंच’, जयपुर की 79 वीं संगोष्ठी ‘‘धर्म में राजनीति और राजनीति में धर्म’’ विषय पर परमहंस योगिनी डॉ.पुष्पलता गर्ग के सान्निध्य और भाषाविद डॉ.नरेंद्र शर्मा कुसुम की अध्यक्षता में योग साधना आश्रम में संपन्न हुई।
अपने संयोजकीय वक्तव्य में शब्द संसार के अध्यक्ष श्रीकृष्ण शर्मा ने कहा कि धारयति लोकः इति धर्मः अर्थात समाज जिसे धारण करता है वही धर्म है। जहां तक राजनीति में धर्म का प्रश्न है राजनीति धर्म और आदर्श आधारित होनी चाहिए। भारतीय संविधान में समता, समानता और समरसता के साथ आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक न्याय के साथ पंथनिरपेक्ष एवं समाजवाद के सिद्धांत को प्रतिपादित किया गया है।
अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ. नरेंद्र शर्मा कुसुम ने कहा कि लोकतंत्र में राजसत्ता का नियंत्रक एवं नियामक एक व्यक्ति नहीं होता बल्कि कई राजनीतिक दल सक्रिय रहते हैं। फलतः धर्म में राजनीति स्वार्थवश हावी हो जाती है। राजनीति में विकृतियां आ जाती हैं और सुशासन दूर की कौड़ी हो जाती है। लोकतंत्र में संविधान धर्म का ही पर्याय है क्योंकि वह नैतिक आचरण की लिखित संहिता है।
मुख्य अतिथि आईएएस (रि.) अरुण ओझा ने कहा कि धर्म में जब राजनीति हावी हो जाती है तो विकास अवरुद्ध हो जाता है। धर्म के कारण लगभग 3000 युद्ध संसार में प्रतिवर्ष होते हैं जिनमें अपार जनधन की हानि हुई।
वरिष्ठ इंजीनियर दामोदर चिरानिया ने कहा कि धर्म में राजनीति के घालमेल से धर्म विशेष के मंदिरों को तोड़ना, लालच देकर अथवा तलवार के बल पर धर्म परिवर्तन करवाना एक दुखद स्वप्न जैसा है। ऐसे में यह आवश्यक है कि धर्मगुरु जातिगत या धार्मिक भावनाओं के वशीभूत होकर समाज में विघटनकारी प्रवृत्तियों से विलग रहें और समाज में समानता, समरसता और भाईचारा का व्यापक प्रसार प्रचार करें।
प्रो. राजेंद्र गर्ग ने कहा कि धर्म के क्षेत्र में कट्टरपंथियों और उदारपंथियों में तकरार चलती रहती है। इसके ज्वलंत उदाहरण हमारे सामने हैं। प्राचीन काल में भी मौर्य काल के समय संप्रदायों के पारस्परिक संघर्ष होते रहे हैं।पूर्व बैंक अधिकारी और विचारक इंद्र भंसाली ने कहा कि धर्म में राजनीति का हस्तक्षेप एक नैतिक आचार संहिता है जिसका उद्देश्य जनमंगल है। शासन के कर्णधारों को धर्म प्रवीण होना चाहिए।
प्रखर चिंतक डॉ. सुभाष चंद्र गुप्ता ने कहा कि गीता में श्रीकृष्ण का उपदेश और गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में धर्म संस्थापना की बात कही है। भारत विभाजन की त्रासदी अंग्रेजों के षड्यंत्र का दुष्परिणाम है।
परम विदुषी शालिनी शर्मा ने कहा कि किसी वस्तु या व्यक्ति की वह वृति जो उसमें अहर्निश व्याप्त रहे और उससे कभी अलग ना हो, धर्म के परिधि में आ जाती है। ऋग्वेद,यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद में ज्ञान धर्म के स्रोत माने गए हैं।
प्रखर पत्रकार एवं प्रगतिशील चिंतक सुधांशु मिश्रा ने कहा कि हर कालखंड में धर्म के अर्थ बदलते रहे हैं । आज का धर्म हमारे संविधान में वर्णित है और उसमें मानवता के कल्याण के सूत्र बताए गए हैं। उसमें राइट टू वरशिप की व्यवस्था है तो कानून व्यवस्था को नियंत्रण में रखने का प्रावधान है परंतु इसकी धज्जियां उड़ाई जा रही है।
परमविदुषी डॉक्टर पुष्पलता गर्ग ने कहा कि राजनीति में धर्म जन कल्याण को प्रेरित, प्रोत्साहित एवं नियंत्रित करता है। राम तो स्वयं ही धर्म है। ऐसे में राजसत्ता को राम राज्य के आदर्श को प्रस्थापित करना चाहिए।
लब्ध प्रतिष्ठित कवि व्यंग्यकार फारूक आफरीदी ने कहा कि धर्म में राजनीति का प्रक्षेपण सामाजिक विघटन और असंतोष का कारण बनता है। राजसत्ता को राजनीति में धर्म का घालमेल नहीं करना चाहिए।

संगोष्ठी में आईएएस (रि) राजेन्द्र भानावत, रामस्वरूप जाखड़, विष्णु लाल शर्मा, स्तंभकार जितेन्द्र सिंह शेखावत,जी आर श्रीवास्तव, यशवंत कोठारी, पंचशील जैन, डॉ. मंगल सोनगरा, सुमनेश शर्मा,ललित कुमार शर्मा, राजेन्द्र कोठारी, लोकेश शर्मा, अनन्त कुमार श्रीवास्तव, डॉ सुषमा शर्मा भी उपस्थित थे।