बीकानेर। राजस्थान में विधानसभा चुनाव के साथ ही कांग्रेस में नेतृत्व का संघर्ष चला और इस संघर्ष में सचिन पायलट पर अशोक गहलोत ने बाजी मारी। मेरे पिछले आलेख में मैंने बताया था की विधायकों की संख्या बल को देखते हुए राजस्थान में किसी भी प्रकार का राजनीतिक संकट कांग्रेसमें नहीं है । लेकिन वर्तमान मुख्यमंत्री जो राजनीति के महा विद्वान हैं ,लंबा अनुभव है । वे जानते थे की युवा चुनौती के सामने रहने से कभी भी निष्कंटक शासन करना संभव नहीं हो पाएगा । राजनीति में यह भी एक सत्य है की सत्ता के एक से अधिक केंद्र व्यवस्थाओं को खराब कर देते हैं । इसलिए श्री अशोक गहलोत ऐसे अवसर तलाश रहे थे जिसमें प्रत्यक्ष रूप से विपक्षी दलों पर व परोक्ष रूप से अपने ही दल के चुनौती देने वाले नेता पर निशाना साधा जा सके और किसी भी प्रकार ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न की जाए की चुनौती देने वाले नेता को या तो स्वयं दल छोड़कर जाना पड़े या केंद्रीय नेतृत्व उन्हें दिल्ली बुला ले या केंद्रीय नेतृत्व उन्हें दल से निष्कासित कर दे।वर्तमान में राज्यों में कांग्रेस की सरकारें बहुत कम है ।

मध्य प्रदेश का घटनाक्रम ताजा है और श्री अशोक गहलोत कांग्रेस की सरकार पर आई विपत्ति को दूर करने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसा सीन बनाया गया। पहले राज्यसभा चुनाव के वक्त । लेकिन राज्यसभा चुनाव के समय नाटक के सभी अंक स्थिति के अनुसार पूर्ण नहीं हो पाए तो अब पुलिस जांच के बहाने से चुनौती देने वाले युवा नेता को क्रोधित कर बिना तैयारी के चुनौती प्रस्तुत करने के लिए उकसाया गया । इस पूरे घटनाक्रम का उद्देश्य केवल अपने कार्यकाल में अपने ही दलों के विरोधियों से पीछा छुड़ाना था जो अंततः अशोक गहलोत कामयाबी के साथ कर चुके हैं। अब मंत्रिमंडल का पुनर्गठन होना है ।राजनीतिक नियुक्तियां होनी है ।इसलिए जो लोग उनके साथ हैं वह विद्रोह नहीं कर पाएंगे ।राजनीति सदैव संभावनाओं का और उचित समय पर प्रहार का खेल है।
लेकिन क्या राजस्थान सरकार वास्तव में निष्कंटक हो गई है या अभी कोई और चुनौती बाकी है ।श्री सचिन पायलट के खेमे से अनुभवी राजनेता , विधायक भंवर लाल शर्मा ने फ्लोर टेस्ट की मांग उठा दी है । इससे लगता है कि इस नाटक के कुछ अंक अभी खेले जाने बाकी हैं।
क्लाइमैक्स सीन हो चुका या होगा। यदि आगे होगा तो फिर क्या रहेगा। इसकी प्रतीक्षा करनी चाहिए क्योंकि क्रिकेट और राजनीति में कभी भी कुछ भी अप्रत्याशित हो सकता है।