परदादा-दादा के बाद पोते-पोतियां कैंडिडेट, वंशवाद में बंटी कांग्रेस-बीजेपी ने 45 सीटों पर दिए टिकट!

जयपुर।राजस्थान में इस बार होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर दोनों प्रमुख पार्टियां अपने-अपने प्रत्याशियों को मैदान में उतार चुकी हैं। चुनाव से पहले भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियां एक-दूसरे पर परिवारवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाती रही, लेकिन, जब चुनाव में टिकट बंटवारे की बात सामने आई तो दोनों पार्टियों पर वंशवाद हावी होता नजर आया।

कई सीटों पर परदादा-दादा के बाद उनके पोते-पोतियां चुनावी मैदान में है। चाहे भाजपा हो या कांग्रेस दोनों ने चेहरे तो बदले, लेकिन परिवार को बदल नहीं पाईं। इसी के चलते 45 सीटों पर उन लोगों को मौका दिया गया है, जिनकी तीन से चार पीढ़ियां लगातार चुनावी मैदान में थी और इस बार भी।

-मदेरणा परिवार : तीन पीढ़ियां राजनीति में एक्टिव

कांग्रेस से परसराम मदेरणा की तीसरी पीढ़ी एक्टिव है। ओसियां से उनकी पोती दिव्या मदेरणा चुनाव लड़ रही हैं और 2018 में पहली बार इसी सीट से कांग्रेस का टिकट मिला था। दादा परसराम मदेरणा 1957 से लगातार 2003 तक 46 साल 9 बार विधायक रहे हैं। कांग्रेस पार्टी ने उन्हें 11 बार टिकट दिया था। इसके बाद उनके बेटे महिपाल मदेरणा पर भी पार्टी मेहरबान रही थी और जिला प्रमुख से राजनीतिक करियर की शुरुआत की। 2003 और 2008 से ओसियां से टिकट दी गई थी। इसके बाद उनकी पत्नी लीला मदेरणा को भी 2013 में कांग्रेस ने ओसियां से टिकट दिया गया था, लेकिन वे हार गई थीं।

-मिर्धा परिवार: 70 साल से राजनीति में, नागौर की तीन सीटों पर ये ही परिवार!

नागौर में मिर्धा परिवार का पिछले 70 सालों से राजनीति में दबदबा चलता आ रहा है। 1952 के चुनाव में नाथूराम मिर्धा जीत कर मंत्री बने थे। नाथूराम मिर्धा ही भतीजे रामनिवास मिर्धा को उपचुनाव जीता कर राजनीति में लाए थे।

इस बार के भी चुनाव में इसी परिवार के चार प्रत्याशी तीन सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। इनमें खींवसर सीट से तेजपाल मिर्धा, नागौर में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आई ज्योति मिर्धा और चाचा हरेंद्र मिर्धा आमने-सामने है, जबकि डेगाना सीट पर विजयपाल मिर्धा को कांग्रेस ने टिकट दिया है।

इस परिवार में पहले भी चाचा-भतीजे ने आमने-सामने चुनाव लड़ा था। इसमें रामनिवास मिर्धा ने चाचा नाथूराम मिर्धा को 48 हजार वोट से हराया था।

-जयपुर राजपरिवार: विरासत में मिली राजनीति

जयपुर का पूर्व राजपरिवार भी आजादी के बाद से राजनीति में सक्रिय हो गया था। पूर्व राजमाता गायत्रीदेवी तीन बार 1962, 1967 और 1971 में सांसद रही थीं। गायत्री देवी के बाद पृथ्वीसिंह भी दौसा से सांसद रहे। बेटे भवानी सिंह ने भी 1989 में पहला चुनाव कांग्रेस की टिकट लोकसभा का लड़ा था। लेकिन, भाजपा के गिरधारीलाल भार्गव से चुनाव हार गए थे। लंबे समय तक परिवार राजनीति से दूर रहा, लेकिन दीया कुमारी ने राजनीति में कदम रखा और पहला विधानसभा का चुनाव सवाईमाधोपुर से लड़ा। राजसमंद से सांसद रहीं और अब वे विद्याधर नगर से चुनाव लड़ रही हैं।

-बीकानेर राजपरिवार: दादा करणीसिंह की विरासत संभाल रही सिद्धि कुमारी!*)

बीकानेर रियासत से पूर्व महाराजा करणी सिंह भी 1952 से लेकर 1977 तक निर्दलीय लोकसभा सांसद रहे थे। वे शूटिंग के भी नेशनल खिलाड़ी थे। उनके बेटे नरेंद्र सिंह राजनीति से दूर रहे। नरेंद्र सिंह के निधन के बाद बेटी सिद्धि कुमारी राजनीति में उतरीं। तीन बार से विधायक सिद्धि कुमारी इस बार भी चुनाव लड़ रही हैं।

-देवीसिंह भाटी: तीसरी पीढ़ी चुनावी मैदान में

देवीसिंह भाटी की तीसरी पीढ़ी इस बार चुनावी मैदान में है। 7 बार विधायक रहे और वसुंधरा सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रहे। बेटे महेंद्र सिंह भाटी भी राजनीति में आए, लेकिन सड़क हादसे में मौत हो गई, वे बीकानेर से सांसद थे। उनके बाद पत्नी पूनम कंवर भी चुनाव लड़ीं, लेकिन वे हार गईं। इस बार देवीसिंह के पोते अंशुमान को भाजपा ने कोलायत सीट से प्रत्याशी बनाया है।

– पढ़ें किस पार्टी में कितना परिवारवाद हावी…

– कांग्रेस में परिवारवाद कितना रहा हावी:

टोंक: सचिन पायलट चुनाव लड़ रहे हैं। टोंक से उनका दूसरा चुनाव है, उनके पिता राजेश पायलट केंद्रीय मंत्री रहे थे। उन्होंने भरतपुर से पहला चुनाव 1980 में लड़े और उसके बाद दौसा से 1984, 1991,1996,1999 से सांसद रहे थे। 2000 में उनकी मृत्यु के बाद सचिन ने राजनीति का सफर शुरू किया। पहला चुनाव दौसा से ही लड़ा था, फिर तीसरा चुनाव अजमेर से हार गए थे।

राजाखेड़ा: रोहित बोहरा चुनाव लड़ रहे हैं। रोहित पूर्व मंत्री प्रद्युम्मन सिंह के बेटे हैं। प्रद्द्युमन सिंह भी विधायक और मंत्री के साथ राजस्थान राज्य वित्त आयोग के वर्तमान में अध्यक्ष हैं। रोहित बोहरा ने पहला चुनाव राजाखेड़ा से 2018 में लड़ा था। अभी वर्तमान में विधायक हैं और दूसरी बार राजाखेड़ा से चुनाव मैदान में हैं।

शेरगढ़:मीना कंवर चुनाव लड़ रही हैं। इनके ससुर कल्याण सिंह राठौड़ 40 साल तक प्रधान रहे हैं। वे खेत सिंह राठौड़ के भतीजे थे, जोकि 7 बार विधायक रहे हैं। पति उम्मेद सिंह दो बार 2008 और 2013 का चुनाव हार गए थे। तब राहुल गांधी ने दो बार हार चुके नेताओं को टिकट देने से मना कर दिया था। इसके बाद उनकी पत्नी मीना कंवर को टिकट मिला था।


लूणी:महेंद्र बिश्नोई चुनाव लड़ रहे हैं। पूर्व मंत्री रामसिंह बिश्नोई के पौत्र है। इनके बेटे मलखान सिंह भी विधायक रहे हैं, जोकि भंवरी देवी हत्याकांड में मुख्य आरोपी थे। पिता के बाद बेटे महेंद्र विश्नोई को टिकट मिला तो उन्होंने जीत दर्ज की।

दांतारामगढ़:वीरेंद्र सिंह दूसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं। पहला चुनाव 2018 में लड़ा और पूर्व विधायक नारायण सिंह के बेटे हैं, जो 7 बार विधायक रह चुके हैं। कांग्रेस में भी प्रदेशाध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाली हैं और जिला प्रमुख भी रहे। वीरेंद्र सिंह की पत्नी रीटा सिंह भी इनके खिलाफ चुनाव लड़ रही है। वे भी पहले जिला प्रमुख रह चुकी हैं।

सरदारशहर:अनिल शर्मा चुनाव लड़ रहे हैं। भंवरलाल शर्मा के निधन के बाद उपचुनाव में जीत गए थे। पिता का पूरी तरह से दबदबा रहा है, वे पहली बार 1962 में सरपंच बने। प्रधान के बाद लगातार 2018 तक विधायक रहे।

वल्लभनगर:प्रीति शक्तावत चुनाव लड़ रही हैं। पूर्व विधायक गजेंद्र सिंह की पत्नी हैं। इनके ससुर गुलाबसिंह भी विधायक और मंत्री रह चुके हैं।

चूरू: चुनावी मैदान में रफीक मंडेलिया हैं, जिन्होंने 2009 में पहला लोकसभा चुनाव लड़ा था लेकिन हार गए थे। पिछला चुनाव भी राजेंद्र राठौड़ से मामूली अंतर से हार गए थे। पूर्व विधायक मकबूल मंडेलिया के बेटे हैं। वे 2008 का चुनाव जीता थे, लेकिन 2013 का चुनाव हार गए थे।

बाड़मेर: मेवाराम जैन चुनाव लड़ रहे हैं। चौथी बार उन्हें प्रत्याशी बनाया है। दो बार सांसद रह चुके हैं। राजस्थान गौसेवा आयोग के अध्यक्ष रह चुके है। 3 बार विधायक रह चुके बिरदीचंद के रिश्तेदार हैं।

भोपालगढ़: गीता बरवड़ चुनाव लड़ रही हैं। ये पूर्व विधायक नरपतराम बरवड़ की बेटी हैं। दो बार जिला परिषद जोधपुर की सदस्य रही हैं। पिता भी तीन बार सूरसागर से विधायक रह चुके हैं और मंत्री भी रहे थे। 2008 में गीता बरवड़ की मां हीरा देवी ने भी चुनाव लड़ा था, लेकिन वे चुनाव हार गई थी।

मंडावा: रीटा चौधरी चुनाव लड़ रही हैं। भाजपा सांसद नरेंद्र खीचड़ से पिछला चुनाव हार गई थी लेकिन उपचुनाव में जीत गई थी। इस बार भी दोनों आमने-सामने हैं। इनके पिता रामनारायण चौधरी 6 बार जीत चुके हैं।

आमेर: प्रशांत शर्मा को पार्टी ने मौका दिया है। 2018 का पिछला चुनाव सतीश पूनिया से हार गए थे। इनके पिता सहदेव शर्मा आमेर से 1998 में विधायक रह चुके हैं।

नोखा: सुशीला डूडी को टिकट दिया है। वह पूर्व नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी की पत्नी हैं। ब्रेन हेमरेज होने से वह अस्पताल में भर्ती है। डूडी 1995 में पहली बार प्रधान बने थे। फिर प्रधान रहते हुए उन्होंने लोकसभा का बीकानेर से चुनाव लड़ा। सांसद के बाद वे 2013 में विधायक बने। नेता प्रतिपक्ष भी रहे हैं।


डीडवाना: चेतन डूडी चुनाव लड़ रहे हैं, पिछला चुनाव भी जीते थे। 2013 का चुनाव यूनुस खान से हार गए थे। ये पूर्व विधायक रूपाराम डूडी के बेटे हैं। रूपाराम डीडवाना से दो बार विधायक रह चुके हैं।

झुंझुनूं:बृजेंद्र ओला को टिकट दिया है और पूर्व केंद्रीय मंत्री शीशराम ओला के बेटे हैं। राम ओला 1948 में सरपंच बने थे, फिर 1957, 1962 में खेतड़ी से विधायक भी रहे। दो बार पिलानी और झुंझुनूं से MLA रहे। वे 8 बार विधायक और 5 बार सांसद रह चुके हैं।

सुजानगढ़:मनोज मेघवाल प्रत्याशी है जो पूर्व मंत्री भंवरलाल मेघवाल के बेटे हैं। पिता के निधन के बाद उपचुनाव जीते थे। भंवरलाल 5 बार विधायक रह चुके हैं। 1977 में पहला चुनाव कांग्रेस से लड़ा लेकिन हार गए थे। फिर निर्दलीय लड़ कर जीत गए थे और उसके बाद से लगातार जीतते गए।

सवाईमाधोपुर:विधायक रहे दानिश अबरार को टिकट दिया है। पूर्व राज्यसभा सांसद अबरार अहमद के बेटे है।

मांडलगढ़:विवेक धाकड़ चुनाव लड़ रहे हैं और कन्हैयालाल धाकड़ के बेटे हैं। 3 बार प्रत्याशी रहे हैं, लेकिन चुनाव नहीं जीत सके।

रामगढ़: 1990 से लगातार चुनाव लड़ रहे, जुबेर खान को मौका दिया है। पिछली बार पत्नी साफिया को भी टिकट दिया था। बसपा प्रत्याशी की मृत्यु के बाद वे जीत गई थी। जुबेर खाान कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव और मेवात विकास बोर्ड के अध्यक्ष भी रहे हैं। 1990,1993 और 2003 में विधायक रहे हैं।

सहाड़ा:राजेंद्र त्रिवेदी को प्रत्याशी बनाया है, जो पूर्व विधायक कैलाश त्रिवेदी के छोटे भाई हैं। भाभी गायत्री देवी का टिकट काट कर अब उन्हें दिया गया है।

फलोदी: प्रकाश छंगाणी को टिकट दिया गया है। इनके पिता 1967 में निर्दलीय विधायक रहे हैं। मां पुष्पा देवी भी 1993 में भाजपा से चुनाव हार चुकी हैं।

भाजपा भी परिवारवाद में टिकट देने में पीछे नहीं!

नदबई: जगत सिंह काे प्रत्याशी बनाया गया है। पहले कामां से विधायक रह चुके हैं। पूर्व वित्त मंत्री नटवरसिंह के बेटे हैं।

डीग-कुम्हेर:शैलेश सिंह को टिकट दिया गया है। पूर्व मंत्री दिगम्बर सिंह के बेटे हैं और पूर्व महाराज विश्वेंद्र सिंह के सामने चुनाव लड़ रहे हैं। पिछली बार चुनाव हार गए थे।

नसीराबाद:रामस्वरूप लांबा को टिकट दिया गया है, जो सांसद व मंत्री सांवरलाल जाट के बेटे हैं।

सादुलशहर:गुरवीर सिंह बराड़ पूर्व विधायक गुरजंट सिंह के पोते हैं। प्रताप केसरी। वे चार बार विधायक और एक बार मंत्री रहे हैं।

बाड़मेर:दीपक कड़वासरा को मौका दिया है। पूर्व विधायक तगाराम चौधरी के पोते हैं। परिवार 1953 से राजनीति में सक्रिय हैं,जो वार्ड पंच, उप सरपंच, सरपंच, उप प्रधान व विधायक भी रह चुके हैं।

धरियावाद:कन्हैयालाल मीणा पूर्व विधायक गौतमलाल मीणा के बेटे हैं। 2003, 2013 और 2018 का चुनाव जीते थे। कोरोना में मौत हो गई थी। उपचुनाव में कन्हैयालाल को टिकट देने की बजाय खेत सिंह मीणा को प्रत्याशी बनाया और वे हार गए थे।

राजसमंद: दीप्ति माहेश्वरी की उपचुनाव से एंट्री हुई थी। वे पूर्व मंत्री किरण माहेश्वरी की बेटी हैं। किरण माहेश्वरी का कोरोना में निधन हो गया था। वे उदयपुर से सांसद और राजसमंद से 2008,2013 और 2018 में जीत चुकी हैं। अब उनकी जगह बेटी को मौका दिया गया है।


मकराना:सुमिता भींचर को इस सीट से उतारा है, वे पंचायत समिति प्रधान हैं। पूर्व विधायक श्रीराम भींचर की पुत्रवधू हैं। 2013 में श्रीराम भींचर चुनाव जीत कर विधायक बने थे। वे मकराना पंचायत समिति में दो बार प्रधान रह चुके हैं।

श्रीमाधोपुर:झाबर सिंह खर्रा को टिकट दिया है। 2013 में पहले भी श्रीमाधोपुर से विधायक रह चुके हैं। 2018 का चुनाव हार गए थे। भाजपा के जिलाध्यक्ष हर चुके हैं। पिता हरलाल सिंह खर्रा 5 बार विधायक रह चुके हैं। 1959 में महरौली से सरपंच बने, 1965,1982 में प्रधान बने। 1967 में जनसंघ से विधायक बने, फिर 1977,1985,1990, 2003 में भी विधायक बने। शेखावत सरकार में मंत्री भी रहे।

मुंडावर:मंजीत चौधरी पूर्व विधायक धर्मपाल चौधरी के बेटे हैं। वे अलवर जाट महासभा के 2000 से 2014 तक अध्यक्ष रहे हैं। 2003, 2008 और 2013 में विधायक रहे हैं।

देवली-उनियारा: विजय बैंसला पहला चुनाव लड़ रहे हैं। इनके पिता कर्नल किरोड़ी बैंसला है। पहले सांसद प्रत्याशी रह चुके हैं। गुर्जरों को आरक्षण के लिए बड़ा कैंपेन चलाया था।

लाडनूं: करणी सिंह चुनाव लड़ रहे हैं और पूर्व विधायक मनोहरसिंह के बेटे हैं। मनोहर सिंह 2018 में चुनाव हार गए थे। तीन महीने पहले ही उनका निधन हुआ था। 1989 में निर्दलीय जीत कर विधायक बने। इसके बाद 2003 और 2013 में भी भाजपा की टिकट पर जीते।

रामगढ़ अलवर: जय आहुजा चुनाव लड़ रहे हैं। पूर्व विधायक ज्ञानदेव आहुजा के भतीजे है। वे 1998, 2003 और 2013 में विधायक रह चुके हैं।

सादुलपुर:सुमित्रा पूनिया को प्रत्याशी बनाया है। ये पूर्व विधायक नंदलाल पूनिया की पुत्रवधू हैं। वे कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए थे। 1977 और 1980 में सरपंच रहे। 1981 से 1991 तक प्रधान और उपजिला प्रमुख रहे। 2000 और 2008 में दो बार विधायक रहे। पत्नी विमला पूनिया भी तीन बार पंचायत समिति सदस्य और प्रधान रह चुकी हैं। सुमित्रा भी भादरा के पूर्व विधायक तथा वर्तमान भाजपा प्रत्याशी संजीव बेनीवाल की भतीजी हैं। सुमित्रा की चाची भी भादरा प्रधान रही हैं। दादा दयाराम बेनीवाल और उनके भाई हरदत भी भादरा से विधायक रहे हैं।

हनुमानगढ़:अमित चौधरी को टिकट देकर प्रत्याशी बनाया हैं। प्रताप केसरी। पूर्वमंत्री डॉ.रामप्रताप के बेटे हैं। वे दो बार मंत्री रह चुके हैं।

पचपदरा: अरूण अमराराम को टिकट दिया हैं। पूर्व मंत्री अमराराम के बेटे हैं। अमराराम 2003 और 2013 में जीत कर विधायक बने थे, जबकि 2018 में चुनाव हार गए थे।