• करणीदानसिंह राजपूत *

राजस्थान नगर पालिका दुनिया में परिवर्तन के बाद किसी भी चेयरमैन वाइस चेयरमैन को अविश्वास प्रस्ताव से हटाना आसान नहीं है।
यह चेयरमैन और वाइस चैयरमैन की खूबी/योग्यता या अयोग्यता से संबंध नहीं है। नियम ही ऐसा बन गया है कि अविश्वास प्रस्ताव लाने वाले उस संख्या तीन चौथाई तक पहुंच ही नहीं पाते। नियम के मुताबिक अब चेयरमैन वाइस चेयरमैन को हटाने के लिए कुल वोट संख्या का तीन चौथाई हिस्सा चाहिए। चेयरमैन के पास चौथाई हिस्सा है तो वह हटाया नहीं जा सकता। पहले दो तिहाई मतों की आवश्यकता होती थी वहां तक जोर लगा कर जोड़ तोड़ बड़ा बंदी कर पहुंच जाते थे फिर भी सफलता मिले या नहीं मिले इसकी गारंटी नहीं होती थी।

  • गंभीर भ्रष्टाचार का आरोप हो तो सरकार जांच से पहले चैयरमैन को सस्पेंड कर सकती है।
    उदाहरण सूरतगढ़ नगर पालिका का ही लें।
    सूरतगढ़ में कुल 45 वार्ड हैं। इन 45 पार्षद जिसमें एक चेयरमैन और एक वाइस चेयरमैन है।चेयरमैन या वाइस चेयरमैन के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए तीन चौथाई मत चाहिए। कम से कम 35 वोट की आवश्यकता होती है। इतने पार्षद एकत्रित होना बहुत कठिन है।
    सूरतगढ़ में चेयरमैन के साथ 12 पार्षद हैं तो उसे कोई नहीं हटा सकता। इनमें एक एक चैयरमैन स्वयं है और एक वाइस चेयरमैन है तो 10 पार्षद चाहिए। चेयरमैन के लिए 12-13 का सहयोग है तो वह हटाया नहीं जा सकता।
    इसे चेयरमैन की खूबी योग्यता से संबंधित करना कोई मेल नहीं रखता।
  • अगर चेयरमैन अयोग्य है पार्षदों की पसंद नहीं है लेकिन उसके पास में कुल 12-13 पार्षदों का साथ है तो उसे कोई नहीं हटा सकता।
    सूरतगढ़ में पिछले भाजपा बोर्ड में चैयरमैन काजल छाबड़ा का विरोध तो था मगर उस समय भी जबानी विरोध होता रहा लेकिन अविश्वास के लिए संख्या नहीं हुई इसलिए हटाने के लिए प्रयास नहीं हुआ।

यही हाल वर्तमान कांग्रेस बहुमत वाले बोर्ड का भी है। ओमप्रकाश कालवा का जबानी विरोध है वह भी रोते पड़ते ही है। कालवा को हटाने के लिए 35 पार्षद चाहिए। वह संभव ही नहीं है। विपक्ष भारतीय जनता पार्टी के 12 पार्षद चुने गए लेकिन चेयरमैन के चुनाव के वक्त भारतीय जनता पार्टी को केवल 11 वोट मिले यानी कि 1 वोट कम हुआ।

  • चेयरमैन में खूबी हो या ना हो एक बार बनने के बाद में हटाना बहुत मुश्किल है। अब पूरे राजस्थान में किसी भी चेयरमैन को पद से अविश्वास के जरिए हटाना बहुत मुश्किल है।
  • लेकिन इसे पत्थर पर लिखा पक्का मान कर भी नहीं चलना चाहिए। कभी कभी आनबान की लड़ाई में हाथ धोकर पीछे पड़े लोग विभिन्न तौर तरीके षड़यंत्र आदि अपना कर संख्या पूरी भी कर लेते हैं।
    एक कहावत है।
    ” कदैई कदैई गादड़ा सूं सिंघ हार जावै,
    बख्त को भरोसो कोनी कद पलटी मार जावै।