आबूरोड। राज्यसभा सांसद नीरज डांगी ने राज्यसभा में शून्यकाल के जरिये राजस्थान गोडावण के संरक्षण के साथ साथ अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं की स्थापना के लिए माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश के सम्बन्ध में स्पष्टीकरण/संशोधन हेतु भारत सरकार द्वारा पुनर्विचार याचिका में ढिलाई से हो रहे नुकसान का मुद्दा उठाया। डांगी ने प्रकरण पर विस्तार से चर्चा करते हुए सदन को अवगत कराया कि माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा गोडावण एवं खरमोर पक्षी के संरक्षण हेतु राजस्थान एवं गुजरात सरकार को निर्देशित किया है कि गोडावण के विचरण क्षेत्र प्रॉयोरिटी एवं पोटेंशियल एरिया में सभी लॉ वोल्टेज लाइनों को भविष्य में भूमिगत रखा जाएं एवं वर्तमान लो वोल्टेज लाइनों को भूमिगत किया जाये। सभी हाई वोल्टेज लाइनों पर तुरंत बर्ड डाइवर्टर लगाया जाये वर्तमान ओवरहेड लाइनों की फिजिबिलिटी स्टडी की जाये और यदि संभव हो तो लाइनों को भूमिगत किया जाये जहाँ तकनीकी रूप से भूमिगत किये जाने में समस्या हों तो सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी से परीक्षण करवाया जावे भविष्य में बनाई जाने वाली सभी ओवरहेड लाइन की तकनीकी रिपोर्ट का परीक्षण कमेटी से करवाया जाये। चूँकि पश्चिमी राजस्थान में अक्षय ऊर्जा देश की कुल संभावित क्षमता का 15 प्रतिशत है साथ ही यह क्षेत्र गोडावण का निवास स्थल भी है जो की एक लुप्तप्राय प्रजाति है यह क्षेत्र गोडावण के विचरण क्षेत्र में प्रतिबंध एवं भूमिगत किये जाने से राज्य के वर्ष 2025 तक के घोषित अक्षय ऊर्जा लक्ष्य 37.5 गीगावाट एवं 2030 तक 450 गीगावाट के राष्ट्रीय लक्ष्यों की प्राप्ति पूरी तरह से प्रभावित होगी। इस निर्णय से लगभग 50-60 गीगावाट क्षमता की परियोजनाएं प्रभावित होंगी। सांसद ने आगे उल्लेख किया की लाइनों के भूमिगत किये जाने में विभिन्न प्रकार के तकनीकी, व्यावहारिक, सामाजिक, आर्थिक, वित्तीय एवं क़ानूनी समस्याएं हैं और यह अक्षय ऊर्जा क्षेत्र की वृद्धि को बुरी तरह प्रभावित करेंगे अतः इस प्रकरण को सुप्रीम कोर्ट में स्पष्टीकरण/संशोधन/पुनर्विचार हेतु माननीय उच्चतम न्यायालय में पैरवी की जाये।