– अशोक गहलोत का विकल्प अशोक गहलोत ही है

राजेन्द्र जोशी

कवि-कथाकार

हिन्दी-राजस्थानी के वरिष्ठ साहित्यकार

सियासत का मतलब सियासत ही होती है सियासत अपनें-पराए का भेद नहीं रखती । सियासत में हर कोई जितना ही चाहता है, येन – केन तरीके से सत्ता में बने रहना अथवा सत्ता प्राप्त करने का अंतिम लक्ष्य होता है। परन्तु सियासत में समय का इंतजार करने वाला तथा अवसर आने पर दांव खेलने वाला व्यक्ति ही जीत दर्ज कर जाता है ।

इन दिनों राजस्थान की राजनीति उफान पर है सत्ता में बैठे लोगों को जितना खतरा विपक्षियों से नहीं है उससे अधिक अपनों से भय सता रहा है। कोरोना काल में जिस प्रकार मध्यप्रदेश में अपनों ने अपनों का तख्ता पलट करवा दिया उसकी चिंता राजस्थान की सत्ता को भी सता रही है । राजस्थान का एक भी निर्वाचित विधायक इस समय न तो चुनाव चाहता है और न ही पाँच साल से पहले विधायक पद से मुक्ति का पक्षधर है इसीलिये किसी भी परिस्थिति में कांग्रेस की सरकार कहीं नहीं जाने वाली है । ऐसा भी नहीं है की यह सियासी उठा – पटक अंतिम होगी।

राजस्थान की परिस्थितियां मध्य प्रदेश से अलग है राजस्थान के इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ प्रयास जरूर हुए थे जब भैरों सिंह शेखावत की सरकार को गिराने का असफल प्रयास उन्हीं के लोगों ने किया परंतु सफलता उन्हें भी नहीं मिली । राजस्थान के संदर्भ में बात करें तो एक मुद्दा स्थानीयता का भी है। मध्य प्रदेश में दोनों गुट स्थानीय थे । यहां सरकार के मुखिया राजस्थान की मिट्टी में जाए- जन्में हैं तो पीसीसी अध्यक्ष उत्तर प्रदेश से सबंध रखते है उनकी संस्कृति राजस्थान से मेल नहीं रखती ।

वैसे राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की राजनीति को समझना और उन्हें हिलाना इतना आसान नहीं है जितना उनके विरोधी मान बैठें हैं । गहलोत से टकराने से पहले अशोक गहलोत के राजनैतिक सफर को पढ़ना होगा, गहलोत का राजनीतिक जीवन विश्वविद्यालय की भांति रहा है जो कि शोध करने के बाद ही समझा जा सकता है । सचिन पायलट ने बिना सोचे- समझे मोर्चा खोल दिया । छात्र राजनीति से वर्तमान तक के राजनैतिक यात्रा में गोता लगाकर देखने से कबीर और गांधी का मिश्रण है गहलोत, कबीर की तरह काम करते हैं तो कभी गांधी का आवरण ओढ़े हुए नजर आते हैं अशोक गहलोत ।

यह तो स्पष्ट है कि अशोक गहलोत के चार दशक से अधिक के राजनीतिक जीवन में कभी ऐसी चुनौती नहीं मिली की वे संभल न सके हो लेकिन लम्बे राजनैतिक जीवन में उनको दो बड़ी चुनौतियां मिली है । वर्तमान में यह दूसरी सबसे बड़ी चुनौती उन्हें मिल रही है, पहली चुनौती जब मिली थी तब एनएसयूआई के बाद युवक कांग्रेस में आना चाहते थे परंतु गहलोत चाहकर भी युवक कांग्रेस की राजनीति उतनी नहीं कर पाए जितनी कि की जानी चाहिए । परन्तु उन्होंने युवक कांग्रेस का मोह त्याग कर आपातकाल के कठिन दौर में बड़े-बड़े दिग्गजों को पछाड़ कर जोधपुर में कांग्रेस की मुख्यधारा में अपना स्थान बना लिया एवं जिला कांग्रेस के अध्यक्ष बन गए फिर न तो गहलोत ने पीछे मुड़कर देखा और न ही किसी बड़ी चुनौती ने अशोक गहलोत से टकराने की हिम्मत जुटाई ।

धीरे-धीरे लेकिन बहुत तेजी से उन्होंने कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व में अपना स्थान बना लिया , दिल्ली दरबार में पिछले चालीस वर्षों से गांधी परिवार के सलाहकारों की टीम में अशोक गहलोत अपना वर्चस्व बनाए हुऐ है ।

गहलोत की विशेषता रही है कि वह कभी कांग्रेस पार्टी के विरोधियों से दोस्ती नहीं करते । उम्र के सात दशक के बावजूद भी देश में युवाओं के प्रेरणा स्रोत बने हुए है । सचिन पायलट पिछले पाँच वर्षों के राजनैतिक सफर के भरोसे सत्ता पाना चाहते है परन्तु अशोक गहलोत पिछले चालीस सालो से राजस्थान के गाँव-ढाणी में कांग्रेस की अलख जगाने वाले एक मात्र नेता है जिसको चाहने वालों की संख्या अनगिनत है तथा विरोधियों की सूची में नबंर नहीं है ।

वर्तमान में मिल रही चुनौती के अनेक कारण है गहलोत के बाद जितने भी पीसीसी अध्यक्ष बनाये गये हैं खुद अशोक गहलोत की अभिशंषा पर बनाए जाते थे परंतु सचिन पायलट को बनाने में अशोक गहलोत की स्पष्ट राय कभी नहीं थी। फिर भी गहलोत के अनुभव और कार्यशैली के कारण अशोक गहलोत के समर्थकों की अपार भीड़ ने कभी गहलोत को कमजोर नहीं होने दिया। अशोक गहलोत जब-जब संगठन में काम करते है तो उनकी अपनी स्टाइल होती है हर गांव ढाणी के कांग्रेसी कार्यकर्ता को नाम लेकर पुकारते है और जब सत्ता में रहते हैं तो उनसे मिलना और नाम से पुकारने की परंपरा सत्ता से घिर जाती है ।

गहलोत की राजनीति कांग्रेस की राजनीति से कभी अलायदा नहीं हो सकती पिछले 40 वर्षों में अगर देखा जाए तो राजस्थान की राजनीति में जिस तरीके से गहलोत की पकड़ है वैसे किसी और नेता की पकड़ नहीं रही। गहलोत की टीम बढ़ती जाती है गहलोत की पकड़ मजबूत होती है और कांग्रेस में गहलोत के अगर पुराने साथी को कई विकल्प मिलता है तो नई और युवा टीम गहलोत का साथ देने के लिए तैयार रहती है । राजस्थान की राजनीति ने कभी बाहरी व्यक्ति को स्वीकार नहीं किया । राजस्थान के हितैषी गहलोत बेबाक राजनीतिज्ञ है । बहुत समय पहले जब पंजाब में चुनाव नहीं हो रहें थे तो दो नेताओं को राजस्थान से चुनाव लडवाया गया परन्तु जब पंजाब में चुनाव होने लगे तो उन नेताओं को गहलोत ने स्पष्ट कह दिया था कि वे अब अपने गृह प्रदेश में राजनीति करें ।

उन नेताओं को नसीहत भी दे दी कि आप पंजाब में जाकर के चुनाव लड़े इस प्रकार गहलोत कुशल राजनीतिज्ञ है और अपनी राजनीतिक बिसात पर भरोसा करना जानते है गहलोत ने राजस्थान की धरती पर दूसरे प्रदेशों के नेताओं को कभी नेतृत्व नहीं सौपा ।

अशोक गहलोत जमीनी हकीकत के नेता है , गहलोत का राजनैतिक सफर बेदाग रहा है संगठन और सरकार चलाना वे बखूबी जानते है, कच्चे खिलाड़ियों को न तो साथ रखते है और न ही खुद कभी हारना और पलायन करने में भरोसा रखते है।

इसलिए गहलोत का विकल्प ना तो पहले कभी कांग्रेस ने ढूंढने की हिम्मत दिखाई और न ही कांग्रेस को दूसरे नेतृत्व की ज़रूरत पड़ी ना ही किसी कांग्रेस के नेता ने अपने आपको गहलोत के मुकाबले खड़ा होने की जोखिम उठाई । राजस्थान कांग्रेस की राजनीति में अशोक गहलोत का विकल्प अशोक गहलोत ही है यह कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं को स्वीकार करना होगा ।