

राजस्थान कांग्रेस में आपसी अदावतों को काफी हद तक दूर कर लिया है। सचिन पायलट की भाषा और बॉडी लैंग्वेज पार्टी के हक में दिखाई देने लगी है। भाजपा में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया के साथ इसका ठीक उल्टा संदेश जा रहा है। भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व राजे को बिल्कुल अलग थलग करता नजर आ रहा है। देव दर्शन यात्रा के मंच से सक्रिय रही राजे के साथ प्रदेश में भारी जन समर्थन है। ताजा घटनाओं का विश्लेषण करें तो बीकानेर (नोरंगदेसर) पीएम की सभा में राजे आई जरूर पर उनको ज्यादा महत्व नहीं दिया गया। सीकर में राजे दिखाई नहीं दी। जयपुर में भाजपा की नहीं सहेगा राजस्थान महारैली में राजे शामिल नहीं थी, बल्कि बैनर पोस्टर से भी गायब थी। यह संकेत जनता जान रही है। पिछले कई महीनों से देवी सिंह भाटी कह रहे हैं कि राजस्थान में भाजपा का नेतृत्व वसुंधरा राजे को नहीं दिया तो वे भाजपा में नहीं जाएंगे।तीसरा मोर्चा बनाएंगे। भाटी ने अपने विधानसभा क्षेत्र श्रीकोलायत की बज्जू पंचायत समिति क्षेत्र से घोषणा कर दी है कि वे राजस्थान में तीसरा मोर्चा बनाएंगे। यह मोर्चा किसान और आमजन की आवाज बनेगा। तीसरे मोर्चे की पहली बैठकें शुरू हो गई है। इसकी संभागवार बैठकों का चार्ट जारी हो गया है। भाटी कांग्रेस और भाजपा के खिलाफ बोलने लगे हैं। क्या करेंगे, क्या होगा? उनका एक जवाब है बेटा बेटी होने पर थाली बजती है। समय आने पर सब रहस्य प्रकट होंगे। भाटी कहते हैं भाजपा कांग्रेस का बारी बारी सत्ता में आने का खेल खत्म होगा। भाटी ने पहले भी सामाजिक न्याय मंच के बैनर से राजस्थान में अपनी उपस्थिति तीसरे मोर्चे के रूप में दिखाई है। तीसरे मोर्चे का राजस्थान की राजनीति में क्या मायने होंगे यह अभी भविष्य के गर्भ में है जो चुनाव में स्पष्ट हो जाएगा। यह तय माना जा रहा है कि राजनीति करने वाले नेताओं को अगर पार्टियों महत्व नहीं देती है तो उनके लिए तीसरे मोर्चे का विकल्प सामने रहेगा। जनता के बीच तीसरे मोर्चे की स्वीकार्यता कितनी होगी यह भी इस से जुड़े नेताओं की जनता में पैठ पर निर्भर है। यह इस बात पर भी निर्भर करती है कि तीसरे मोर्चे में कोन कोन शामिल होते हैं। भाजपा और कांग्रेस की चुनावी रणनीति क्या रहती है? असंतुष्टों और रालोपा और अन्यों की तीसरे मोर्चे के साथ क्या समीकरण बैठते है। अन्य फेक्टर क्या असर डालते हैं। इसी से तीसरे मोर्चे की सार्थकता सामने आ सकेगी। अभी तीसरे मोर्चे पर बात करना समय से पहले संभावित घटना पर कयास लगाने जैसा ही है। बेशक देवी सिंह भाटी जनाधार वाले नेता है। राजस्थान की राजनीति में वे अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने की हैसियत रखते हैं। भाजपा ने राजस्थान में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राज को अगले चुनाव में कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देने के संकेत नहीं दिए है। ऐसे में भाटी को भी बीजेपी में तरजीह मिलने की गुंजाइश नहीं दिखाई दे रही है। तीसरे मोर्चे से भाजपा कांग्रेस के वोट प्रतिशत में उलट फेर हो सकता है। भाजपा केंद्र की उपलब्धियां, पीएम मोदी और केंद्र के नेताओं के बूते ही चुनाव लडने का संकेत दे रही है। स्थानीय मुद्दों और नेताओं को कोई तरजीह नहीं है।
