– आगे की सियासी लड़ाई पायलट बनाम गहलोत नहीं बल्कि कांग्रेस बनाम भाजपा के बीच नजर आ रही है
● तिलक माथुर केकड़ी- राजस्थान
राजस्थान के सियासी संग्राम में शह-मात का खेल चल रहा है। इस सियासी लड़ाई में कांग्रेस व भाजपा अब खुलकर आमने सामने हो गए हैं। अपने सियासी वार से पायलट को ‘पैदल’ करने वाला गहलोत गुट अब सरकार की स्थिरता को लेकर भले ही निश्चिंत है, लेकिन फोन टैपिंग का मामला सामने आने के बाद भाजपा खुलकर मैदान में उतर आई है। इससे साफ है कि अब राजस्थान में आगे की सियासी लड़ाई पायलट बनाम गहलोत नहीं बल्कि कांग्रेस बनाम भाजपा के बीच होती नजर आ रही है।
राजस्थान के सियासी संकट पर भाजपा भले ही कहती रहे कि कांग्रेस का आंतरिक सत्ता संघर्ष है और भाजपा को इससे कोई लेना-देना नहीं है लेकिन, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने फोन टैपिंग मामले की रिपोर्ट राज्य सरकार से मांगी है और भाजपा ने सीबीआई जांच की मांग उठाकर सियासी पर्दा उठा दिया है। माना जा रहा है कि राजस्थान के सियासी संग्राम का शह-मात का खेल अब दोनों पार्टियों के संकटमोचक और कुशल रणनीतिकारों मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बीच है। भाजपा के लिए कर्नाटक और मध्य प्रदेश जैसी राह राजस्थान में आसान नहीं है। मध्य प्रदेश में कांग्रेस का संख्या बल कमजोर था, लेकिन राजस्थान में स्थिति थोड़ी बेहतर है यही वजह है कि पायलट के बगावत के बाद भी गहलोत की सरकार बची हुई है। पायलट के साथ 18 विधायकों के जाने के बाद गहलोत सरकार को 102 विधायकों का समर्थन हासिल है, क्योंकि सीएम गहलोत मंझे हुए राजनीतिक खिलाड़ी हैं। दरअसल, गहलोत को सत्ता पर काबिज होने के साथ ही अंदेशा हो गया था कि उन्हें पायलट गुट से कभी भी चुनौती मिल सकती है, क्योंकि कांग्रेस को महज 99 सीटें ही आई थीं। यही वजह थी कि गहलोत ने अपनी सरकार को आत्मनिर्भर बनाने के लिए लोक दल से जीत कर आए सुभाष गर्ग को भी कांग्रेस सरकार में मंत्री बनकर शामिल कराया। इसके बाद में कांग्रेस ने एक सीट पर हुए उपचुनाव में जीत हासिल कर अपनी संख्या 101 कर ली और बसपा के 6 विधायकों का विलय कराकर अपना आंकड़ा 107 कर लिया।
हालांकि साथ ही निर्दलीय और अन्य दलों के विधायकों को भी पार्टी के समर्थन में मजबूती के साथ जोड़े रखा। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि भाजपा भले ही खुलकर न कहे, लेकिन असल मकसद वही है। सचिन पायलट भाजपा के महज एक मोहरा हैं असल खिलाड़ी अमित शाह हैं। 2014 से ही नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी राजस्थान में वसुंधरा राजे के विकल्प की तलाश कर रही है, लेकिन अभी तक नहीं खोज पाए हैं। ऐसे में उन्हें पायलट के रूप में एक जनाधार वाला नेता नजर आया, जिसके जरिए रेत में ‘कमल’ खिलाने की रणनीति अपनायी गई लेकिन गहलोत सियासत के मंझे हुए खिलाड़ी हैं, इसलिए उनके जादू के आगे वे सफल नहीं हो सके। मध्य प्रदेश में जब भाजपा ने कमलनाथ का तख्ता पलटने का काम शुरू किया, शिवराज सिंह चौहान समेत बाकी सभी नेता साथ थे। लेकिन राजस्थान में वसुंधरा राजे इस पूरे घटनाक्रम में खामोश हैं, जो भाजपा के लिए चिंता का सबब बनी हुई है। हालांकि, इसे गहलोत का राजनीतिक दांव भी माना जा रहा है। लेकिन अमित शाह जिस तरह ऑपरेशन लोट्स के जरिए भाजपा को सत्ता के सिहांसन तक पहुंचाते रहे हैं।
उससे मुकाबला काफी दिलचस्प हो गया है। भाजपा ने कर्नाटक व मध्यप्रदेश में ऑपरेशन लोट्स के जरिए सत्ता हासिल करने की कोशिश की है। कर्नाटक में कांग्रेस नेता डीके शिवकुमार पर केंद्रीय जांच एजेंसियों ने छापेमारी की थी और मध्य प्रदेश में भी कमलनाथ के सहयोगी भी जांच एजेंसियों के रडार पर आ गए थे। ऐसे ही अब राजस्थान में अशोक गहलोत के बड़े भाई, बेटे और उनके करीबियों के यहां जांच एजेंसिया छापेमारी कर रही है, जिसका सीधा संकेत है कि केंद्र सरकार इस मामले में पूरा हस्ताक्षेप कर रही है। भाजपा अपनी उसी कांग्रेस मुक्त वाली रणनीति पर चल रही है। इसी के तहत भाजपा की नजर राजस्थान की सत्ता पर है और उसे अमित शाह अमली जामा पहनाना चाहते हैं, लेकिन सामने इस बार गहलोत हैं। इस तरह इन दोनों संकटमोचक और कुशल रणनीतिकार के एक बार फिर आमना-सामना हो रहा है, लेकिन अभी तक गहलोत ही भारी पड़े हैं। बहरहाल राजस्थान में गहलोत की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। ऐसे में अमित शाह की अपनी राजनीतिक कुशलता है और गहलोत का अपना सियासी गणित है और अब देखना होगा कि कौन किस पर भारी पड़ता है।