नई दिल्ली। कांग्रेस में बड़ी बगावत कर चुके राजस्थान के पूर्व डिप्टी सीएम और पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के तेवर अभी भी तीखे है वे मीडिया के जरिए आलाकमान पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं जबकि आलाकमान का मानना है कि उन्हें पार्टी में रहना है तो बिना किसी शर्त के रह सकते हैं उन्हें जिन पदों से हटा दिया गया है उन पर उन्हें वापस नहीं रखा जा सकता।
सचिन पायलट के समर्थक विधायक वैसी ही भाषा बोल रहे हैं जैसी भाषा उनके पिता स्वर्गीय राजेश पायलट बोला करते थे उन्होंने दो बार कांग्रेश आलाकमान को चुनौती दी और कहा कि कांग्रेस के प्रति वफादारी का मतलब यह नहीं कि सोनिया गांधी की गुलामी की जाए। ऐसी भाषा सचिन के समर्थक विधायक दीपेंद्र सिंह, विश्वेंद्र सिंह रमेश मीणा मुकेश भाकर आदि बोल रहे हैं और कह रहे हैं कि कांग्रेश के प्रति निष्ठा का यह मतलब नहीं कि अशोक गहलोत की गुलामी की जाए।

इन लोगों के आरोप पर कांग्रेस में आश्चर्य जताया जा रहा है क्योंकि अशोक गहलोत का ऐसा संभव कभी रहा नहीं कि उन्होंने कांग्रेस में अपने विरोध करने वालों की आवाज को दबाया हो, जोधपुर लोकसभा चुनाव में उनके पुत्र वैभव गहलोत को हराने में सक्रिय एक कैबिनेट मंत्री के ऑडियो आने के उपरांत भी उन्होंने उसके खिलाफ कुछ एक्शन नहीं लिया बाद में यह मंत्री खुद शर्मिंदा हो गया, यदि गहलोत गुलामी ही करना चाहते तो अपने मंत्रिमंडल में ऐसे ही विधायकों को मंत्री बनाकर रखते ।राज्य मंत्रिमंडल में आधे मंत्री तो सचिन पायलट ने बनवाए थे यह बात अलग है कि सचिन पायलट के व्यवहार और राजनीतिक नौसिखिया पन के कारण उनके अधिकांश लोग साथ छोड़ गए अभी जो लोग उनके साथ होटल में हैं उनमें से आधा दर्जन तो वे विधायक हैं जो अशोक गहलोत के मंत्रिमंडल में मंत्री नहीं बन पाए और उनके मंत्री नहीं बनने के ही आसार हैं।

सचिन पायलट के समर्थकों की शैली और राजेश पायलट की पूर्व की बोली भाषा को आलाकमान भी समझ रहा है परंतु वह कोई जोखिम नहीं उठाना चाहता इसलिए चाहता है कि अशोक गहलोत सरकार को मजबूत करके रखें, और कोई विधायक जो नाराज होकर सचिन के साथ चला गया वह बिना शर्त लौटे तो उसे पार्टी की मूल धारा में शामिल कर लिया जाए, आलाकमान के करीबी नेता के अनुसार पार्टी सचिन पायलट की ब्लैक मेलिंग में नहीं आएगी तथा पायलट और उनके लोग समय पर वापस नहीं लौटे तो उन्हें विधानसभा अध्यक्ष की कार्रवाई और विधायकों की खरीद-फरोख्त की जांच कर रही एसओजी की जांच का सामना करना पड़ेगा।