– प्रतिदिन। -राकेश दुबे

देश का विपक्ष लगातार यह आरोप लगा रहा है कि राज्यों में गैर भाजपा सरकारों को अस्थिर करने या फिर चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने के आसपास सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय का दुरुपयोग किया जा रहा है।परिणाम स्वरूप गैर भाजपा शासित राज्यों द्वारा एक-एक करके अपने यहां केन्द्रीय जांच ब्यूरो को निर्बाध तरीके से काम करने के लिये दी गयी सहमति वापस लेने के फैसले भी लिए गये हैं |इससे स्वाभाविक रूप से सवाल उठ रहा है कि क्या वास्तव में इस केन्द्रीय जांच एजेन्सी का इस्तेमाल राज्यों की निर्वाचित सरकारों को अस्थिर करने के लिए हो रहा है? या फिर राज्यों में सत्तारूढ़ दल नहीं चाहते कि भ्रष्टाचार के मामलों की जांच सीबीआई करे?
अनेक बार भ्रष्टाचार के मामलों की जांच को लेकर अक्सर सीबीआई पर पक्षपात करने या फिर ढुलमुल रवैया अपनाने अथवा राजनीतिक आकाओं के इशारे पर काम करने के आरोप लगते रहे हैं। उच्चतम न्यायालय ने तो सीबीआई को ‘पिंजरे में बंद तोता’ तक बताया और इस विषय पर महत्वपूर्ण फैसले भी दिये, लेकिन इसके बावजूद स्थिति में बहुत ज्यादा बदलाव नहीं हुआ है ।

केन्द्र और गैर भाजपा शासित राज्यों में सत्तारूढ़ दलों के बीच वैसे तो कई मुद्दों को लेकर अविश्वास या कहें टकराव की स्थिति पैदा होती जा रही है। पिछले दो साल में पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के बाद महाराष्ट्र सरकार ने पालघर और सुशांत सिंह राजपूत की मौत के प्रकरण में सीबीआई जांच के बीच में ही अचानक यह कदम उठाया। टीआरपी प्रकरण को लेकर दर्ज मामला सीबीआई को सौंपे जाने के तत्काल बाद महाराष्ट्र सरकार ने सीबीआई के लिये दी गयी सामान्य सहमति वापस ले ली।
अभी ४ नवम्बर को केरल में पिनाराई विजयन सरकार ने भी इसी तरह का कदम उठाते हुए सीबीआई के लिये सामान्य सहमति वापस ले ली। हालांकि केरल सरकार की अधिसूचना में स्पष्ट किया गया है कि सहमति वापस लिया जाना सिर्फ भावी मामलों के संबंध में है। मतलब इससे वे मामले प्रभावित नहीं होंगे, जिनमें पहले से ही जांच चल रही है या जो सीबीआई के पास लंबित हैं। मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने पहले ही आरोप लगा दिया था कि राज्य में संवैधानिक तरीके से निर्वाचित सरकार को अस्थिर करने और उसे बदनाम करने के लिये सोने की तस्करी के मामले की जांच में सीबीआई अपनी सीमा लांघ रही है।

इसी तरह सारदा चिट फंड घोटाले की सीबीआई जांच के दौरान कोलकाता के तत्कालीन पुलिस आयुक्त राजीव कुमार से पूछताछ के मुद्दे पर ममता बनर्जी सरकार के साथ भी केन्द्र की ठन गयी थी। वैसे ममता बनर्जी सरकार ने सितंबर २०१८ में ही स्पष्ट कर दिया था कि अब सीबीआई को पहले अनुमति लेनी होगी। इसी आदेश का नतीजा था कि पिछले साल तीन फरवरी को कोलकाता में जाच ब्यूरो के पांच अधिकारियों को पश्चिम बंगाल की पुलिस द्वारा हिरासत में ले लिया। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उस समय केन्द्र पर आरोप लगाया था कि वह सीबीआई के माध्यम से राज्य में तानाशाही कायम करना चाहती है। पश्चिम बंगाल का राजस्थान और छत्तीसगढ़ ने भी अनुसरण किया | राजस्थान की सरकार गिराने के बारे में कथित सौदेबाजी का एक वीडियो सामने आने के बाद मुख्यमंत्री ने अपने यहां बगैर अनुमति के सीबीआई का प्रवेश वर्जित कर दिया।
वैसे यह सर्व ज्ञात तथ्य है दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना कानून के अंतर्गत केन्द्रीय जांच ब्यूरो का गठन हुआ है। इस कानून की धारा ६ के अनुसार सीबीआई के सदस्य संबंधित राज्य की सहमति के बगैर उस राज्य के किसी भी क्षेत्र में इस कानून के तहत अपने अधिकार और अधिकार क्षेत्र इस्तेमाल नहीं कर सकते। गैर भाजपा शासित राज्यों के इस फैसले से हालांकि उन मामलों पर असर नहीं पड़ेगा, जिनकी अभी सीबीआई जांच कर रही है लेकिन भ्रष्टाचार और आतंकवाद तथा संगठित अपराधों के किसी भी नये मामले की सीबीआई जांच करना अब आसान नहीं होगा। हां, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के आदेश से सीबीआई किसी मामले विशेष की जांच कर सकती है।
गैर भाजपा शासित राज्यों और केन्द्र के बीच सीबीआई को लेकर बढ़ रही तकरार से अंतर्राज्यीय स्तर के भ्रष्टाचार, धन शोधन, आतंकवाद और गैरकानूनी गतिविधियों से संबंधित अपराध सीबीआई को सौंपे जाने वाले नये मामलों की जांच करने में कई तरह की परेशानियां आ सकती हैं।