दिल्ली, 20 मार्च । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने दत्तात्रेय होसबोले को अपना सर कार्यवाह चुना है। वे वर्तमान सर कार्यवाह भैयाजी जोशी की जगह लेंगे। बेंगलुरु के चेन्नहल्ली स्थित जनसेवा विद्या केंद्र में चल रहे अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक के अंतिम दिन शनिवार को आरएसएस में दूसरे सबसे महत्वपूर्ण पद के लिए चुनाव किया गया। जहां अगले तीन वर्षों के लिए उन्हें सर कार्यवाह चुना गया है। होसबोले 2009 से आरएसएस के सह सर कार्यवाह थे। इस पद के लिए उनका नाम पहले ही चर्चा में था। वे कर्नाटक के शिमोगा से हैं।
समझें चुनावी प्रक्रिया व जिम्मेदारियों को
आरएसएस में सबसे महत्वपूर्ण पद सरसंघचालक का होता है। वर्तमान में मोहन भागवत इस पद पर आसीन हैं। सर कार्यवाह ही वह व्यक्ति होता है, जो संघ से जुड़े व्यवहारिक और सैद्धांतिक विषयों पर निर्णय लेता है। उसकी अपनी एक टीम होती है, जिसे केंद्रीय कार्यकारिणी कहा जाता है। सुरेश भैयाजी जोशी पिछले चार बार से इस पद पर चुने जाते रहे हैं। हालांकि 2018 के चुनाव में भैय्याजी ने सरकार्यवाह के दायित्व से मुक्त करने का आग्रह किया था, लेकिन उनके नेतृत्व में संघ के बढ़ते कामों को देखते हुए संघ ने उन्हें फिर से यह दायित्व देने का निर्णय लिया था। प्रत्येक तीन वर्ष पर आरएसएस में चुनावी प्रक्रिया की शुरुआत जिला स्तर की जाती है। इसके अंतर्गत पहले जिला व महानगर संघचालक का चुनाव होता है।
इसके बाद विभाग संघचालक और फिर प्रांत संघचालक का चुनाव होता है। चुनाव के बाद ये निर्वाचित अधिकारी अपनी नई टीम घोषित करते हैं। उसके बाद अखिल भारतीय स्तर पर प्रतिनिधि सभा की बैठक में सरकार्यवाह का चुनाव किया जाता है। उसी बैठक में क्षेत्र संघचालक का भी चुनाव किया जाता है। प्रतिनिधि सभा की दो दिन चलने वाली बैठक के दूसरे दिन सरकार्यवाह का चुनाव होता है। इससे पहले अंतिम दिन सरकार्यवाह साल भर के कार्य का लेखाजोखा पेश करते हैं। उसके बाद घोषणा करते हैं कि मैंने अपने तीन वर्षों का कार्यकाल पूरा कर लिया। अब आप लोग जिस अन्य व्यक्ति को चाहें इस दायित्व के लिए चुन सकते हैं। फिर वे मंच से उतरकर सामने आकर सभी लोगों के साथ बैठ जाते हैं। उस समय मंच पर केवल सरसंघचालक बैठे रहते हैं।
संघ में किसे सरकार्यवाह की जिम्मेदारी मिलेगी, यह देश के सभी प्रांतों के करीब 1400 प्रतिनिधि सर्वसम्मति से तय करते हैं। प्रतिनिधि सभा में भाग लेने के लिए देश के सभी राज्यों में केंद्रीय प्रतिनिधि का चुनाव होता है। सभी राज्यों में 50 सक्रिय व प्रतिज्ञाधारी स्वयंसेवक पर एक प्रांतीय प्रतिनिधि चुने जाते हैं। फिर 40 प्रांतीय प्रतिनिधि पर एक केंद्रीय प्रतिनिधि चुने जाते हैं।
सरकार्यवाह के चुनाव के लिए एक चुनाव पदाधिकारी और एक पर्यवेक्षक को पहले से ही तय कर दिया जाता है। चुनाव प्रक्रिया शुरू होने के बाद चुनाव पदाधिकारी इस प्रक्रिया में शामिल लोगों से सरकार्यवाह के नाम का प्रस्ताव मांगते हैं। कोई व्यक्ति खड़ा होकर नाम की घोषणा करता है। दूसरा उसका अनुमोदन कर देता है। इसके बाद सर्वसम्मति से सरकार्यवाह के लिए उस नाम की घोषणा चुनाव पदाधिकारी की ओर से की जाती है।
सर संघचालक चुनता है अपना उत्तराधिकारी
संगठन के अंतिम निर्णय सर संघचालक ही करता है लेकिन यह एक तरीके से मार्गदर्शक का पद होता है। सरसंघचालक अपना उत्तराधिकारी स्वयं चुनता है। संगठन के नियमित कार्यों के संचालन की जिम्मेदारी सरकार्यवाह की होती है। इसे महासचिव के तौर पर भी समझा जा सकता है। इस चुनाव की प्रक्रिया में पूरी केंद्रीय कार्यकारिणी, क्षेत्र व प्रांत के संघचालक, कार्यवाह व प्रचारक और संघ की प्रतिज्ञा किए हुए सक्रिय स्वयंसेवकों की ओर से चुने गए प्रतिनिधि शामिल होते हैं।