श्री गणेशाय नमः

– पं. रविन्द्र शास्त्री लेख

वैदिक ज्योतिष में राहु-केतु इन दोनों ही ग्रहों को छाया ग्रह का दर्जा दिया गया है। जितना महत्वपूर्ण स्थान ज्योतिष की दुनिया में ये दो ग्रह रखते हैं उतना ही महत्वपूर्ण इन ग्रहों के गोचर को भी माना जाता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि 23 सितंबर-2020 को राहु ग्रह वृषभ राशि में गोचर करने जा रहा है, और इसी दिन केतु ग्रह भी वृश्चिक राशि में गोचर कर जायेगा।

आप इन दोनों ग्रहों के गोचर से जुड़ी संपूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन इन ग्रहों के गोचर से पहले आइये जानते हैं कि राहु-केतु को ज्योतिष में इतना महत्वपूर्ण दर्जा क्यों दिया गया है? कुंडली में मौजूद ये ग्रह कैसे इन्सान का जीवन बदलने की क्षमता रखते हैं और साथ ही जानते हैं राहु-केतु ग्रह को खुश करने के कुछ बेहद सरल उपाय।

वैदिक ज्योतिष में राहु और केतु, इन दोनों ही ग्रहों को विशेष दर्जा दिया गया है। यह ग्रह (और अन्य सभी ग्रह) हमारे जीवन को काफी हद तक प्रभावित करते हैं। ऐसे में अगर आपके मन में भी कोई प्रश्न है या आप यह जानना चाहते हैं कि राहु-केतु आपके व्यवसाय, स्वास्थ्य, शिक्षा या पारिवारिक जीवन पर क्या प्रभाव डाल रहे हैं, तो आप हमसे से प्रश्न पूछ सकते हैं।

तो आइये जानते हैं छाया ग्रह कहे जाने वाले राहु और केतु ग्रह से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण जानकारी, राहु-केतु मंत्र, और इन ग्रहों की शांति के सरल सटीक उपाय।

सबसे पहले बात करते हैं राहु ग्रह के बारे में, बहुत से लोग राहु ग्रह के बारे में ऐसा विचार रखते हैं कि राहु एक अत्यंत ही भयभीत करने वाला और बुरा ग्रह है, हालाँकि वास्तविकता इससे बिल्कुल अलग है। कुंडली में राहु, सूर्य या चंद्रमा के साथ हो तो ग्रहण दोष बनता है और उसका प्रभाव आपके जीवन के विभिन्न पहलुओं, जैसे व्यवसाय, विवाह, परिवार पर भी व्यापक रूप से पड़ता है।

राहु किसी भी व्यक्ति की कुंडली में विशेष स्थिति होने पर जातक को राजा से रंक और रंक से राजा बनाने का सामर्थ्य रखता है। जहाँ एक तरफ़ दुर्बल स्थिति का राहु जीवन में कई तरह की परेशानियों की वजह बनता है, वहीं, कुछ लोगों को राहु की विशेष स्थिति से प्रबल लाभ भी प्राप्त हुआ है।

अब बात करते हैं केतु ग्रह के बारे में। केतु ग्रह को भी बहुत से लोग अशुभ ग्रह मानते हैं जबकि हकीक़त में ऐसा नहीं है। कुंडली के तीसरे छठे और ग्यारहवें भाव में उपस्थित केतु व्यक्ति को जीवन में आगे बढ़ाता है। कुंडली में यह छाया ग्रह सूर्य या चंद्रमा के साथ हो तो ग्रहण दोष बनता है और उसका प्रभाव आपके जीवन के विभिन्न पहलुओं, जैसे व्यवसाय, विवाह, परिवार पर भी व्यापक रूप से पड़ता है।

राहु-केतु के जन्म से जुड़ी कथा
हिंदू धर्म के अनुसार सिंहिका का पुत्र स्वरभानु काफी बलशाली और बुद्धिमान था। समुद्र-मंथन से निकले अमृत को प्राप्त करने के लिए देवताओं और राक्षसों में संग्राम की स्थिति उत्पन्न हो गयी थी। तब भगवान विष्णु जी ने मोहिनी का अवतार धारण किया और दोनों के बीच सुलह की पहल की। इसके बाद उन्होंने सर्वप्रथम देवताओं को अमृत बाँटना शुरु किया। स्वरभानु ने जब यह देखा तो उसने देवताओं का वेष धारण किया और देवताओं के साथ बैठ गया।

जैसे ही उसने अमृत को चखा, सूर्य और चंद्रमा ने स्वरभानु को पहचान लिया और भगवान विष्णु को उसकी सच्चाई बता दी। गुस्से में आकर भगवान विष्णु जी ने सुदर्शन चक्र से उसके सिर को धड़ से अलग कर दिया, लेकिन चूंकि तब तक अमृत उसके कंठ में पहुंच चुका था, इसके कारण उसका शरीर अमर हो गया।

बता दें कि उसी स्वरभानु के कटे हुए सिर को राहु और धड़ को केतु कहा गया है, और यही वजह है कि राहु और केतु, सूर्य और चंद्रमा को ग्रसित करते हैं।

राहु-केतु का धार्मिक महत्व और उससे जीवन पर पड़ने वाला प्रभाव
राहु और केतु सदैव वक्री अवस्था में माने जाते हैं। इन्हें प्रत्यक्ष ग्रह तो नहीं लेकिन छाया ग्रह के रूप में मान्यता मिली है। राहु को किसी विशेष राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है फिर भी कन्या राशि को इसका घर माना गया है, और मिथुन तथा धनु राशि में यह क्रमशः उच्च एवं नीच अवस्था में माना गया है। मतान्तर से वृषभ राशि में भी उच्च और वृश्चिक नीच अवस्था में माना जाता है।

राहु ग्रह
अर्धकायं महावीर्यं चन्द्रादित्यविमर्दनम।

सिंहिकागर्भसम्भूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम।।

अर्थात : जो आधे शरीर वाले हैं, महान पराक्रम से पूर्ण संपन्न हैं, चंद्र तथा सूर्य को ग्रसित करने वाले हैं तथा सिंहिका के गर्भ से उत्पन्न हैं, उन राहु को मैं प्रणाम करता हूं।

अगर राहु किसी की कुंडली के केंद्र भाव में त्रिकोण के स्वामी के साथ स्थित हो अथवा कुंडली के त्रिकोण भाव में केंद्र भाव के स्वामी के साथ स्थित हो तो प्रबल राजयोग कारक हो जाता है और ऐसी स्थिति में बहुत ही जल्दी व्यक्ति को सफलता की ऊँचाइयों तक पहुंचा देता है। राजनीति और कूट-नीति में माहिर बनना हो तो उसके लिए राहु का आशीर्वाद आवश्यक है।

केतु ग्रह
पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रहमस्तकम।

रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम।।

अर्थात : जिनकी आभा पलाश पुष्प के समान है, जो रूद्र स्वभाव वाले हैं और रूद्र के पुत्र हैं, अति भयंकर हैं, तारक आदि ग्रहों में प्रधान हैं, उन केतु को मैं प्रणाम करता हूं।

अगर केतु किसी की कुंडली के केंद्र भाव में त्रिकोण के स्वामी के साथ स्थित हो अथवा कुंडली के त्रिकोण भाव में केंद्र भाव के स्वामी के साथ स्थित हो तो प्रबल राजयोग कारक हो जाता है और ऐसी स्थिति में व्यक्ति बहुत ही जल्दी सफलता की ऊँचाइयों तक पहुंच जाता है। यह आपको धार्मिक बनाता है और यदि यह अत्यंत शुभ स्थिति में हो तो आपको किसी मंदिर अथवा धार्मिक स्थल या धार्मिक संस्था का प्रधान भी बनवा सकता है। केतु से प्रभावित जातक अपने वाहनों पर झंडा लगाकर घूमते हैं।

राहु से मिलने वाले विभिन्न फल
अच्छा और शुभ राहु: तीव्र बुद्धि, मान मर्यादाओं की बेड़ियों में नहीं बाँधता है बल्कि इनसे बाहर निकाल कर आगे बढ़ाने में मदद करता है।

अशुभ राहु: सोचने समझने की शक्ति में बाधा आती है, अच्छे मित्रों का साथ नहीं मिलता, हिचकी, आँतों की समस्या, अल्सर, गैस्ट्रिक और पागलपन जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

राहु का रंग: नीला

राहु का प्रतीक: शत्रु, बिजली, नीचता, कपट, हाथी, बिल्ली

कैसे हासिल करें राहु की प्रसन्नता
विभिन्न शास्त्रों में राहु ग्रह की प्रसन्नता और अनुकूलता प्राप्त करने के लिए अनेक प्रकार से किए जाने वाले उपायों का वर्णन किया गया है। आइये जानते हैं इनमें से कुछ उपाय जिससे आप भी राहु की प्रसन्नता हासिल कर सकते हैं।

राहु को प्रसन्न करने के लिए गोमेद रत्न धारण करना बेहद उपयोगी बताया गया है। अगर गोमेद रत्न नहीं धारण कर सकते तो तुरसा या फिर साफी उप-रत्न भी धारण किया जा सकता है।

राहु के लिए व्रत
राहु के लिए व्रत शनिवार को किया जा सकता है। इसके अलावा, राहु कुंडली के जिस भाव में स्थित हो, उस भाव के स्वामी का जो वार हो, उस दिन भी राहु का व्रत भी किया जा सकता है। राहु का व्रत अट्ठारह शनिवारों तक करना चाहिए।

राहु का दान
नीलाम्बरो नीलवपुः किरीटी करालवक्त्रः करवालशूली।

चतुर्भुजश्चर्मधरश्च राहुः सिंहासनस्थो वरदोऽस्तु मह्यम्।।

अर्थात: नीले अंबर अर्थात् नीले वस्त्र धारण करने वाले, नीले विग्रह वाले, मुकुट धारी, विकराल मुख वाले, हाथ में ढाल, तलवार तथा शूल धारण करने वाले एवं सिंहासन पर स्थित राहु मेरे लिए वरदायी रहें।

राहु ग्रह के दोष के निवारण करने के लिए काली भेड़, गोमेद रत्न, लोहा, कंबल, सोने का बना नाग, तिल से भरे हुए तांबे के बर्तन का दान करना अत्यंत शुभ होता है।

राहु के कारण होने वाले रोग
कब्ज, चेचक, मस्तिष्क रोग, स्मरण शक्ति कमजोर होना, गठिया, कुष्ठ रोग, अतिसार, भूत प्रेत का डर, रीढ़ की हड्डी में दर्द या उसका टूटना, भूख प्यास से संबंधित बीमारी, वायु विकार, त्वचा रोग, हृदय रोग अथवा पेट में कीड़े जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।

*राहु के मंत्र*
*ॐ ऐं ह्रीं राहवे नमः*
*ॐ रां राहवे नमः*
*ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः*
*ॐ कया नश्चित्र आ भुवदूती सदावृधः सखा। कया शचिष्ठया वृता।।* (यजुर्वेद ३६/४)

राहु के उपाय
राहु ग्रह की शांति के लिए शिवलिंग पर चाँदी के नाग-नागिन चढ़ाना शुभ रहता है।
शनिवार के दिन नीले रंग के कपड़े में काले रंग के तिल भर कर दान करना भी अति शुभकारी साबित होता है।
रुद्राभिषेक से भी राहु दोष के निवारण में मदद मिलती है।

केतु से मिलने वाले विभिन्न फल
अच्छा और शुभ केतु: जीवन में यश और सफ़लता, साहस, आध्यात्मिकता और वैराग्य।

अशुभ केतु: पैरों में कमज़ोरी, नाना और मामा के प्यार से विमुख होना, रीढ़ की हड्डी, घुटने, लिंग, जोड़ों के दर्द, किडनी, पैर, कान, आदि जुड़ी समस्याओं से पीड़ित हो सकता है।

केतु का रंग: भूरा

केतु का प्रतीक: जहरीले जीव, भूरे एवं काले रंग के पशु–पक्षी।

कैसे हासिल करें केतु की प्रसन्नता
विभिन्न फलित ग्रंथों के अनुसार केतु को प्रसन्न करने के लिए लहसुनिया (वैदूर्य) रत्न धारण करना चाहिए, जिससे केतु का अनिष्ट दूर होता है। लहसुनिया की अनुपस्थिति में फिरोजा उपरत्न भी धारण किया जा सकता है।

केतु के लिए व्रत
केतु के लिए शनिवार को व्रत रखा जाता है। इसके अतिरिक्त, केतु कुंडली के जिस भाव में स्थित हो, उस भाव के स्वामी का जो वार हो, उस दिन भी यह व्रत किया जा सकता है। केतु का व्रत अट्ठारह शनिवारों तक करना चाहिए।

केतु का दान
केतोर्वैदूर्यममलं तैलं मृगमदं तथा।

ऊर्णांस्तिलैस्तु संयुक्ता दद्यात्क्लेशानुपत्तये।।

छाया ग्रह केतु के दोष के निवारण करने के लिए छाग (बकरी) का दान करना अत्यंत शुभ होता है।

केतु के कारण होने वाले रोग
हैजा, कैंसर, रक्ताल्पता, निमोनिया, जल जाना, त्वचा रोग, छूत की बीमारी अर्थात संक्रामक रोग, दमा रोग, मूत्र रोग, पित्त रोग, शरीर में खुजली होना, दस्त बंद हो जाना, प्रेत पीड़ा, चित्ती निकलना, तांत्रिक पीड़ा, काला जादू, अथवा बवासीर जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

– केतु के मंत्र
ॐ ह्रीं ऐं केतवे नमः
ॐ कें केतवे नमः

ॐ स्रां स्रीं स्रौं सः केतवे नमः

ॐ केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे।समुषद्भिरजायथाः ।। (यजुर्वेद २९|३७)

केतु के उपाय
किसी मंदिर में जाकर झंडा लगाना केतु ग्रह की शांति में मददगार साबित होता है।
केतु ग्रह की शांति के लिए अश्वगंधा का पेड़ लगायें।
रुद्राभिषेक से भी केतु दोष के निवारण में मदद मिलती है।

राहु-केतु ग्रह के राशि परिवर्तन की संपूर्ण जानकारी*

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केतु गोचर (23-सितंबर) का अपने जीवन पर प्रभाव जानने के लिए संपर्क करे।

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