आलेख – मोहनलाल भन्साली,”कलाकार”
काशी की “देव दीपावली” के भव्य दृश्य को देखकर लगा देव स्वयं पावन धरा पर रमण कर रहें हैं, कोरोना काल को परास्त कर मानों नई सृष्टि का सृजन कर रहें हैं, कलयुग में सतयुग का आभास करा रहें हैं।राम जन्म भुमि पर भगवान श्रीराम मंदिर निर्माण के शिलान्यास का वह दृश्य भी अद्भुत व अकल्पनीय था। हमारे यहां न जाने ऐसे ऐतिहासिक रमणीक क्षणों को राजनीति पार्टियों के साथ जोड़कर इसके विशाल दायरे को सीमित क्यों कर दिया जाता हैं, जबकि ऐसे महान कार्य युगोपंरांत कभी कभार संम्पादित होते हैं,ऐसे अविस्मरणीय व प्रेरणादायक मनोहर दिवस को तो सदैव मानवता के कल्याण व मानवीयता के लिए कीर्तियश प्रकाशमय पर्व को मर्यादा महोत्सव जैसे साहित्यिक नाम से सिरोधार्य करना चाहिए।
क्या सृष्टि के नैया खेवनहार महादेव व मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम आदि ने किसी व्यक्ति विशेष के लिए तपोमय साधनाएं की थीं या किसी क्षेत्र विशेष के लिए या किसी जाति धर्म व सम्प्रदाय के लिए अपने धर्मोपदेशना में भेदभाव किया था?
विचित्र विडंबना हैं कि चकाचौंध युग में सवार्थ में मुग्ध, चंचलमना व्यक्ति का सोच ईतना संक्रीण हो गया है कि वह भगवान को भी बांटने का ठेकेदार बन गया हैं!

उन्हें ज्ञात होना चाहिए! कि भगवान श्रीराम के युग में हिन्दू, मुस्लिम, सीख,ईसाई आदि श्रृंखलाओं का कोई अपवाद ही नहीं था। सम्प्रदायवाद तो आज के युग के सवार्थी इन्सान की देन हैं,उस समय तो सीर्फ मानवीय सेवा ही सर्वोपरि सेवा थीं।
टीवी पर राजनैतिक विशलेषको, पार्टियों के प्रवक्ताओं व चिन्तनशील वर्ग के बीच धर्मावलंबी गुरुजनों द्वारा डिबेट के दौरान मानवता के पाठ पढा़ने वालें श्रेष्ठियों के मुखारविंद से भी मानवीय विचारधाराओं के वनिस्पत किसी न किसी राजनीति पार्टी के पक्षधरों की भाषाओं के बोल सुनने को मिलते हैं।
आज के दुषित वातावरण के आधार पर, चिंता का विषय हैं कि सृष्टि के सृजनकर्ताओं और प्रकाशपुंज की बहती सरिता को बाटनें वाले बौध्दिकजनों व प्रबुद्धजनों की बदौलत भावी पीढी का “सर्वांगीण विकास” कैसे होगा?
शिक्षा एक इण्डस्ट्रीज का रुप ले चुका हैं, अंग्रेजी माध्यम शिक्षा प्रणाली का आकर्षण बढा हैं, किन्तु वहां के माहौल में शुद्ध खान पान,आचार-विचार एवं सयुंक्त परिवारों के संस्कार व भारतीय संस्कृति की भिन्नता में वहां प्रचलित पाश्चात्य संस्कृति से ज्यादातर प्रभावित होने के कारण आज युवाओं में सहनशीलता की कमी देखने को मिलती हैं।
क्या राजनीति गलियारों के सर्वोच्च मंदिर में खेलते हुए स्कूली बच्चों की तरह बात-बात पर लड़ने का तथा बच्चों के कट्टी करने की तरह सांसदो के द्वारा आए दिन सभा परिषदों को वाँकआउट करने का दृश्य ही देश व दुनिया को टीवी चैनलों के माध्यम से देखने को मिलता रहेगा? क्या हमारे माननीय देश के कर्णधार अमूलचूल परिवर्तन के लिए इस संन्दर्भ में कोई महत्वपूर्ण बदलाव करके संसद की गरिमा,भारतीय संस्कृति, भाषाओं की महत्ता को परिभाषित करने का प्रयास करेंगे?
मूल्यांकन के लिए पीछले छह-सात वर्षों के चुनावी भाषणबाजी में जाति, भाषा, धर्म व सम्प्रदाय पर कार्ड खेलने वाले एवं भाषाओं की गरिमा खोने वालें नेताओं की पार्टियां प्रायः प्रायः आज नीचले पायदान पर खड़ी हैं।

यह कोरोना काल है, महामारी की मार का भुगतान जनता जनार्दन कर रहीं हैं, दुनिया के ताकतवर देशों से लेकर विस्तारवादी देशों के चरित्र और उनके चहेतों के चरित्र को एवं कथनी और करनी में अंतर करने वाले दल-बदलु नेताओं तथा निष्ठावान चेहरों को भी जनता ने देखा व परखा हैं।
देश व दुनिया की बैबटरी पर लड़खड़ाई हुई आर्थिक स्थिति को सुधारने में लंबे संघर्षों की जरूरत है तो वहीं नैतिक,कर्मठ,राष्ट्रीयहित के स्थिर मनोवर्ती नेताओं की भी जरूरत हैं, किन्तु ऐसा तभी संभावित होगा जब देश का जिम्मेदार नागरिक नेताओं के बहकावे में आने से पूर्व “कोरोना काल के दृश्यों” के परिपार्श्व में दृष्टिपात करता रहेगा।
आज कोरोना रोकथाम में केन्द्र, राज्य व स्थानीय प्रशासनों द्वारा गाईड लाईनें जारी की जाती हैं, परन्तु सरकारों को बचाने, बनाने, बिगाड़ने व चुनावी रैलियों एवं जनसभाओं में विशाल भीड़ का प्रदर्शन करने वाले ही गाईड लाईन की धज्जियां उड़ाने को मजबूर से होते दिखाई देतें हैं,इसी तरह अनेकानेक प्रकार से बढ़ती हुई लापरवाही की वजह से चहुंमुखी महामारी बाहें फैलाएं हुए राजघरानों से आमजन को अपना शिकार बनाने को आतुर हैं।
शीर्षस्थ वर्ग को सोचना होगा कि संभवतः दुनिया में करोड़ों “युवा” रोजगार की तलाश में हैं, और करोड़ों छोटे,मंझोले व सेमी थोक व्यापारी बेरोजगारी के कगार पर हैं जो कि दुनिया के सुपर पावर करोड़ों पुंजीपतियों की चैन के सहायक हैं, इसलिए गरीबी रेखा से नीचें की श्रृंखलाओं को बढ़ने से रोकने के लिए एवं उजड़ने वाले कारोबारियों को सशक्त बनाने के लिए हमें विश्व स्तरीय समाधान खोजना चाहिए।
विकसित व विकासशील देश खुशनुमा माहौल में निरंतर गतिशीलता की और अन्तरिक्ष यात्रा की प्रगति के लिए उन्मुक्त था। किन्तु दुर्भाग्य है कि आज सम्पूर्ण विश्व को दहला देने वालें दोषी व दोषी संस्थान तक का नाम भी अज्ञात हैं जिसके कारण पहली बार दुनिया में चक्का जाम होने से अर्थ एक जटिल समस्या बनती जा रहीं हैं,उसके बावजूद युद्ध की बातें सर्वव्यापी गर्मजोशी पर हैं जिससे प्रत्येक देश को अपनी संम्प्रभुता की रक्षा में अतिरिक्त बजट खर्च करना भी वर्तमान परिस्थितियों में विकास का बाधक सुचक बन सकता हैं!
मानवता की खुसहाली के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर राम,रहीम, ईसा, कृष्ण, बुद्ध, महावीर व महान दार्शनिक विवेकानंद,गुरु नानक, तुलसी व महाप्रज्ञ आदि महापुरुषों एवं अणुव्रतों के आदर्शों पर एक बहुउद्देश्यीय मंच व प्रशिक्षित सदस्यों को तैयार करें एवं वें सदस्य अहिंसात्मक एवं शांतिपूर्ण वातावरण को पोषित करके सार्वभौमिक युद्ध विराम और मानव विकास में मैत्रीमय माहौल का निर्माण करें!ताकि इस मंच से चहुंओर हिंसा में लिप्तजनों को अहिंसक व नैतिक समाज से जोड़कर ” मर्यादा महापर्व ” का रचनात्मक सर्जन कर सकें।