रिपोर्ट – कविता कंवर राठौड़

बीकानेर,। राजस्थानी केवल राजस्थान में ही नहीं, विदेशों में भी बहुत चाव से बोली जाती है। लंदन और उसके आस-पास के क्षेत्रों में रहनेवाले प्रवासी राजस्थानी अपनी मातृभाषा राजस्थानी में ही बातचीत करते हैं। उनमें अपनी भाषा, साहित्य और सांस्कृतिक विरासत को बचाने का उत्साह और जबरदस्त उमंग है। ये विचार द राजस्थान एसोसिएशन यूके के अध्यक्ष हरेन्द्र सिंह जोधा ने अंतरराष्ट्रीय राजस्थानी समाज की ओर से आयोजित ‘कोरोनाकाल में मातभासा भणाई’ विषयक ऑनलाइन संगोष्ठी में व्यक्त किए।
जोधा ने कहा कि इंग्लैंड, अमेरिका आदि देशों में मातृभाषा राजस्थानी के प्रति गहरा लगाव है। वहां इसको सिखाने की कोचिंग क्लासें चलती हैं। जोधा ने कहा कि रायचंद की तुलना में आज जरूरत है कि हम कर्मचंद बनकर अपने बच्चों को अपनी मातृभाषा राजस्थानी की अमूल्य विरासत सौंपें। हमारा महत्त्वपूर्ण दायित्व है कि अपनी भाषा, साहित्य और संस्कृति की थाती को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे ले जाएं। जोधा ने अपनी बात ठेठ राजस्थानी भाषा में करते हुए कहा कि हम बहुत बड़े काम नहीं कर रहे हैं वरन छोटे-छोटे कार्यों को करते हुए अपने संस्कारों की विरासत को आगे बढ़ाने के प्रयास में हैं।
डूंगर महाविद्यालय के राजस्थानी विभाग की पूर्व विभागाध्यक्ष कहानीकार-कवयित्री डॉ. प्रकाश अमरावत ने कहा कि कॉलेज शिक्षा में विद्यार्थियों की संख्या में इजाफा इस बात का प्रमाण है कि राजस्थानी समाज में धीरे-धीरे भाषाई चेतना जोर पकड़ रही है। कोरोना काल में विद्यार्थियों की शिक्षा के लिए अनेक ऑनलाइन विकल्पों से उनकी रुचि परिष्कृत हुई है। डॉ. अमरावत ने कहा कि राजस्थानी भाषा का विपुल शब्द-सामर्थ्य हृदय के मनोभावों को अनुकूल ढंग से अभिव्यक्त कर सकता है, जो किसी अन्य भाषा में संभव नहीं है। सभी भाषाओं का हम सम्मान करते है, किंतु मातृभाषा और मां से बढ़कर संसार में कुछ भी नहीं है।

परलीका हनुमानगढ़ से जुड़े प्रख्यात कहानीकार संपादक डॉ. सत्यनारायण सोनी ने कहा कि गांधी जी और देश-विदेश के हरेक शिक्षाविद ने प्राथमिक शिक्षा को बालक की मातृभाषा में दिए जाने का उसका जन्मसिद्ध अधिकार कहा है फिर राजस्थान के बच्चे इस अधिकार से वंचित क्यों है। अभी भी प्राथमिक शिक्षा में बच्चों को हिंदी और अंग्रेजी को पढ़ाने के लिए राजस्थानी का सहारा लिया जा रहा है ऐसे में यदि राजस्थानी को माध्यम भाषा कर दें तो बालकों का सर्वांगीण विकास होगा और वे अधिक प्रगति करेंगे।
अंतरराष्ट्रीय राजस्थानी समाज द्वारा आयोजित ऑनलाइन गोष्ठी का संचालन करते हुए सुप्रसिद्ध कवि-आलोचक डॉ. नीरज दइया ने कहा कि पूरे राजस्थान में साक्षरता जैसा बड़ा अभियान स्थानीय भाषा जिसे राजस्थानी कह सकते हैं में चला जो अपने आप में अकाट्य प्रमाण है कि प्राथमिक शिक्षा और संपूर्ण साक्षरता विकास के लिए राजस्थानी भाषा ही एकमात्र विकल्प है। ऑनलाइन संगोष्ठी में बुलाकी शर्मा, जितेंद्र कुमार सोनी, डॉ. हंसा स्वामी, राजेन्द्र जोशी, मधु आचार्य, प्रशांत जैन, श्याम सुंदर भारती, डॉ. शारदा कृष्ण, प्रशांत जैन, ओम नागर, रेखा लोढ़ा स्मित, मीठेश निर्मोही, हिंगराज रतनू, छत्रमल छाजेड़, डॉ. नमामीशंकर आचार्य, डॉ. अनिता जैन, करुणा दशोरा, तोलाराम स्वामी, प्रमोद कुमार शर्मा, बुध राम, जगदीश प्रसाद सोनी आदि ने चर्चा में भाग लिया।
अंतरराष्ट्रीय राजस्थानी समाज के संयोजक डॉ. नीरज दइया ने बताया अगला कार्यक्रम राजस्थानी के प्रख्यात लेखक कवि सांवर दइया की स्मृति में 30 जुलाई को होगा, जिसमें लंदन से इंदू बारोट, जोधपुर से मनोहरसिंह राठौड़, जयपुर से फारूख आफरीदी और बीकानेर से बुलाकी शर्मा स्मृतिशेष दइया के व्यक्तित्व और कृतित्व पर चर्चा करेंगे।