गणाधीश प्रवर की 31 दिवसीय मौन साधना की पूर्णाहुति पर हुआ महामंागलिक का आयोजन
बाड़मेर, 31 अक्टूबर। श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ चातुर्मास समिति, बाड़मेर तत्वाधान स्थानीय आराधना भवन में परम पूज्य गणाधीश प्रवर श्री विनयकुशलमुनिजी महाराज साहब 31 दिवसीय एकांत पन्यास मंत्र व वर्धमान विद्या की मौन साधना की पूर्णाहुति पर भव्य महामांगलिक का आयोजन किया गया।
मुनिश्री की साधना की पूर्णाहुति के पश्चात् साधना कक्ष से बाहर निकलने पर लाभार्थी मांगीलाल चिंतामणदास संखलेचा परिवार व सकल संघ के द्वारा गुरू भगवंत को केसर के छांटने किए गए तत्पश्चात् युवाओं द्वारा गुरू भगवंत को अपने कंधों पर उठाकर प्रवचन सभागार में ले आए जहां पर गुरूपूजन के लाभार्थी शांतिलाल डामरचंद छाजेड़ परिवार द्वारा सर्वप्रथम गणाधीश प्रवर का गुरूपूजन किया गया तत्पश्चात् प्रोफेसर जगदीशचंद महेता परिवार द्वारा गुरू भगवंत को साधना की पूर्णाहुति की उपरांत सकल संघ के कल्याण व मंगल के लिए महामांगलिक प्रदान करने का निवेदन किया गया।
गणाधीश प्रवर के मुखारविंद पन्यास मंत्र व वर्धमान विद्या के गुंफित बीज मंत्रों से युक्त महामांगलिक प्रदान की गई।
स्थानीय आराधना भवन में उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए विरागमुनि महाराज ने कहा कि भूतकाल का निर्मल चारित्र मुक्ति न दे सका तो वर्तमान का क्या पता लेकिन ज्ञानी भगवंत कहते है कि जागो तभी सवेरा। जाप अनुष्ठान अपनी जगह है लेकिन सर्वप्रथम अपनी आत्मा के कल्याण का लक्ष्य होना चाहिए। संघ का मंगल जरूरी है लेकिन उससे पहले स्वयं की आत्मा का मंगल जरूरी है। गणाधीश प्रवर ने साधना के दौरान शारीरिक आधि-व्याधि-उपाधि होने के बावजूद भी समभाव में रहकर समाधिपूर्वक, अप्रमŸा दशा में रहकर साधना पूर्ण की है। यथा नाम तथा गुणों का वर्णन करते हुए मुनिश्री ने कहा कि जिस प्रकार गुरूदेव का नाम विनयकुशलमुनि है उसी तरह इनके जीवन में विनय गुण व हर कार्य दक्षता व कुशलता गुण आत्मसात किया हुआ है। गुरू भगवंत अपने आप में अनेक गुणों के धारक है।
डा. बी.डी. तातेड़ ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि जब श्रीकृष्ण को पूछा गया महाभारत होने की वजह क्या तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि जब कौरव, पांडवों के महल में पधारे तब अगर द्रौपदी ने अंधो के अंधे पैदा होते है ये वचन बोलने की बजाय मौन धारण कर लिया होता तो महाभारत का सृजन नही होता। तातेड़ ने कहा कि मुनि का अस्तित्व है मौन व मौन का अस्तित्व है मुनि। मुनि से बड़ा कोई होता नही है। जहां मुनि है वहां मौन है। कार्यक्रम में मनीषा छाजेड़ व रक्षिता छाजेड़ द्वारा गुरू भक्ति में गुरूवर तुम हो ज्ञानी, ध्यानी संयम के धनी भजन की प्रस्तुति दी गई। इस अवसर पर गणाधीश प्रवर द्वारा संपादित देवचन्द्रजी महाराज की सज्झाय पुस्तक का विमोचन अतिथिगण द्वारा किया गया एवं अखिल भारतीय खरतरगच्छ महासंघ युवा शाखा बाड़मेर द्वारा चैदह राजलोक के नक्शे समान जैन प्रतीक चिन्ह रूप ज्ञान पुष्प समर्पित किया गया। चातुर्मास समिति व युवा शाखा बाड़मेर द्वारा प्रभावना दी गई। महामांगलिक के कार्यक्रम में गुजरात, मध्यप्रदेश, जयपुर, पाली सहित देशभर के कई स्थानों से भक्तगणों शिरकत की। कार्यक्रम का संचालन सोहनलाल संखलेचा ‘अरटी’ द्वारा किया गया। दोपहर में सामुहिक सामायिक का आयोजन किया गया। सोनु वडेरा, भावना संखलेचा, मनीषा, रक्षिता छाजेड़ द्वारा सुन्दर गंहूली की रचना की गई। साध्वी श्री हेमप्रभाश्रीजी की प्रेरणा से स्थापित खरतरगच्छ जैन युवक परिषद का अनुकरणीय योगदान रहा