बीकानेर। विश्व संस्कृत दिवस के अवसर रविवार को ई-तकनीक पर विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया । संस्कृत दशा और दिशा विषय पर आयोजित संगोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ वत्सला पांडे ने की एवं मुख्य अतिथि कवयित्री-आलोचक डॉ रेणुका व्यास तथा विशिष्ट अतिथि समाजशास्त्री आशा जोशी थी।

इस अवसर पर डॉ वत्सला पांडे ने कहा कि संस्कृत हमारी भाषाओं का मूल है.. हमारी संस्कृति की जड़े भी उससे जुड़ी हैं.. संस्कृत सीखे बिना हम अपने उस साहित्य को नहीं जान सकते जो ऋषि मुनि और तपस्वी धरोहर के रूप में छोड़ गए हैं.. इस भाषा को बोलने सीखने से उच्चारण शुद्ध और प्रभावी होता है.. इसके अथाह समन्दर में जितनी बार गोते लगाएंगे, उतनी ही बार मोती हाथ लगेंगे..। डॉ वत्सला पांडे ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी कहा है कि पूरे विश्व की भाषाओं में संस्कृत के 97 प्रतिशत शब्द शामिल हैं. इसी से इसके प्राचीनतम वर्चस्व का पता चलता है. संस्कृत को जानने के बाद एक शिक्षक होने के नाते मुझे लगता है कि इसे कक्षा छह से आठ तक नहीं अपितु कक्षा एक से पाँच तक में लगाना चाहिए..कारण कि इस समय बच्चे को जो उच्चारण, व्याकरण आदि सिखाए जाते हैं उनमें ये दोष इस भाषा के कारण स्वतः नष्ट हो जाएंगे..उन्हें आगे जाकर हिन्दी और व्याकरण की समझ से अरुचि नहीं होगी.. अक्सर आज के 9 वीं 10 वीं के बच्चे इससे जूझते दिखाई देते हैं..

अपने दैनिक जीवन में भी वे इसके माध्यम से श्लोकों का प्रयोग कर जीवन को श्रेष्ठ बना सकते हैं.. इन समस्याओं को मैंने बहुत निकट से देखा और जाना है..।

मुख्य अतिथि डॉ रेणुका व्यास ने कहा कि भारत की ही नहीं, विश्व की सबसे प्राचीन भाषा संस्कृत के संरक्षण दिवस के रूप में संस्कृत दिवस मनाया जाता है। भारत सरकार ने इसे 1969में इसे मनाने की शुरुआत की ताकि हममें हमारी प्राचीन ,समृद्ध और सक्षम भाषा के प्रति संरक्षण का भाव जागे। हम इसके अध्ययन के प्रति झुकाव बढें। हमें पता होना चाहिए कि भारतीय संस्कृति के आधार ग्रंथ चारों वेद और उपनिषद, ब्राह्मण, पुराण ,महाकाव्य संस्कृत भाषा में ही हैं। संस्कृत सबसे बड़े शब्द कोश वाली भाषा है। जो आज के कम्प्यूटर के लिए भी सर्वाधिक अनुकूल है। एक विशेष बात यह कि श्रावण पूर्णिमा को ही संस्कृत दिवस इसलिए मनाया जाता है कि प्राचीन भारत में यह दिवस नवीन शिक्षा सत्र के प्रारंभ का दिन होता था। इस दिन ऋषि नया यज्ञोपवीत धारण करते थे। एक दूसरे के हाथ पर रक्षा सूत्र बांधते थे।

इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि समाजशास्त्री आशा जोशी ने कहा कि संस्कृत भाषा हमारी संस्कृति की पहचान है, शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी-हिंदी कोई भी रहें लेकिन संस्कृत भाषा का अध्ययन अनिवार्य रूप से होना चाहिए, जोशी ने कहा कि संस्कृत के निरंतर अध्ययन से वेद-पुराणों को समझने का मौका मिलता है, समाजशास्त्री जोशी ने महिलाओं से आह्वान किया कि वे अपने बच्चों को संस्कृत अवश्य पढाये ।

साहित्यकार राजाराम स्वर्णकार ने कहा कि यह दिवस गुरुकुलों में वेदों की ऋचाएं दोहराने का दिन माना जाता है । इस दिन सँस्कृत के प्रकांड पंडितों द्वारा उपाकर्म करने का है जिसे श्रावणी (शास्त्र पढ़ने की शुरुआत) भी कहते हैं ।

पैरामेडिकल विशेषज्ञ सरोज स्वामी ने कहा कि सँस्कृत हमारे ऋषि मुनियों की देन है,इस भाषा में सारे वेद,ग्रन्थ लिखे है,आज भी पूजा ,अभिषेक,,यज्ञ करते हैं तब सँस्कृत भाषा ही बोली जाती है,हम चाहते कि हमे भी आनी चाहिए।

कवि-आलोचकडॉ नीरज दइया ने कहा कि भारतीय साहित्य के गंभीर अध्येताओं को संस्कृत जानना बहुत जरूरी है। इसके बिना हमारी पूरी भारतीय परंपरा को नहीं जाना जा सकता…।

वरिष्ठ कवि चन्द्रशेखर जोशी ने कहा कि देववाणी संस्कृत दिवस मनाने हेतु 1968 में तत्कालीन शिक्षामंत्री डॉक्टर वी.के.आर.वरदराज राव ने एक प्रस्ताव केंद्र एवं राज्य सरकारों को भेजा और कहा सावन माह की पूर्णिमा अर्थात रक्षाबंधन के पावन दिन को सँस्कृत दिवस के रूप में मनाया जावे ।

इस अवसर पर अनेक महानुभावों ने विचार व्यक्त किये ।