देवकिशन राजपुरोहित
व्यंग्य जहां तक मैं समझ पाया हूं बहुत बड़ी विधा है।इस विधा में तीर तलवार धनुष बाण न चला कर शब्दों के हथियारों से मार की जाती है।मार भी ऐसी कि शरीर मै खून घाव नहीं होता मगर जिस पर व्यंग्य किया गया है उसका कलेजा तार तार हो जाता।वह इस मार से तिलमिला उठता है मगर दिखावे में हस कर टाल जाता है।
राजस्थान में एक शब्द प्रचलित है,,चिलम भरना,,चिलम एक मिट्टी की बनी हुई होती है जिसमे तंबाखू डाल कर ऊपर आग का खीरा रख कर लोग धूम्रपान करते हैं।बड़े आदमी बैठे रहते हैं जो उनसे आयु या पद में छोटे होते हैं वे चिलम भर कर बड़े को देते हैं फिर लोग बारी बारी से धूम्रपान करते हैं।
जब कोई बड़ा नेता,मंत्री,अफसर आता है और कोई उनकी जी हजूरी में लग जाता है तो लोग उसे ही कह देते हैं आज कल तो आप अमुक की चिलम भर रहे हो।जिसे आज कल चमचागिरी कहते हैं उसी का मतलब है चिलम भरो।
व्यंग्य में कम से कम शब्दों में मार की जाती है।कोई बहुत बड़ा भाषण झड़ने की आवश्यकता नहीं होती।
व्यंग्य और हास्य
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आज कल लोग व्यंग्य और हास्य को एक ही विधा मान लेते हैं जबकि दोनों में काफी अंतर है।
दोनो के बीच एक बारीक सीमारेखा है जिस को पार करते ही दोनों एक दूसरी में गद्दमढ़ हो जाती है फिर दोनों में से किसी का भी स्वाद नहीं आ पाता। जहां तक मैं समझता हूं इन्हे रेखा का अतिक्रमण नहीं करना चाहिए।
आज कल के कविसम्मेलन ऐसी रेखा के अतिक्रमण का ही परिणाम है जहां कविता कभी नहीं होती केवल हास्यात्मक चुटकुले होते हैं।इन कवि सम्मेलनों को के सम्मेलन की संज्ञा दे दी जाय तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
इस लिए हास्य,व्यंग्य और चुटकुलों को अलग नजरिए से देखा और व्यवहार में लाना चाहिए।
व्यंग्य कब से
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आज कल व्यंग्यकार कबीर और तुलसी से व्यंग्य को जोड़ कर देखते है।कुछ तो इन्हीं को व्यंग्य विधा का जनक भी कहते हैं।लेकिन मैं इस बात से सहमत नहीं हूं।
मै तो कहता हूं जब से saristhi की रचना हुई तभी से व्यंग्य है।ब्रह्मा के मानस पुत्र आदि व्यंग्यकार हैं।वे ब्रह्मा विष्णु महेश इंद्र चंद्र पर निरंतर व्यंग्य करते रहते हैं जिसके प्रमाण शास्त्रों में यत्र तत्र मिलते हैं।तो क्या केवल व्यंग्यकार केवल नारद ही हैं।नहीं।
मै विगत तीनों युगों के तीन व्यंग्य बानगी स्वरूप रख रहा हूं।
सत्ययुग
सर्व प्रथम सत्य युग की बात करें तो एक बहुत ही बढ़िया व्यंग्य है।भगवान शंकर हिमाचल के यह दुलहा बन कर शादी रचाने जा रहे हैं।विचित्र वेशभूषा में दूल्हा और भूत प्रेत बाराती देख कर भगवान विष्णु मुस्कुरा कर कहते हैं
वाह क्या सुंदर दूल्हा है और कितने सुंदर बाराती हैं।यह व्यंग्य कितना मारक था कि भगवान शंकर के कलेजे को झकझोर दिया और उन को अपना रूप बदल कर दूल्हा बनना पड़ा और भूत प्रेत भाग खड़े हुए।
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दूसरा त्रेता युग था।राम का युग।इस युग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम हुए थे।वे वनवास में थे।छली मारीच स्वर्ण मृग बन कर आया।राम उसका शिकार करने गए।पीछे से रावण ने सीता हरण कर लिया।सारी कथा सब जानते है इस लिए सीधा आपको व्यंग्य पर ले चलता हूं।
राम और लक्ष्मण धनुष बाण लिए वन वन सीता को खोजते फिर रहे थे।अचानक एक हरिणो के टोले ने इनको देख लिया।शिकारी समझ कर भागने ही वाले थे कि एक बूढ़े हरिण ने कहा आराम करो।कहीं भागने की जरूरत नहीं।ये साधारण हरिणों का शिकार नहीं करते केवल सोने के हरण का ही शिकार करते हैं।यह बात स्वयं श्री राम ने भी सुनी।एक मामूली जंगली हरिन ने कितना बड़ा व्यंग्य स्वयं राम पर कर दिया।भगवान का कलेजा कराह उठा होगा।
द्वापर युग
तीसरा युग द्वापर युग था।यह युग सदेव मानव जाति में स्मरणीय होगा क्योंकि सर्वाधिक जन हानि इसी युग में हुई थी।एक भीषण महाभारत जैसा युद्ध हुआ था और दुनिया के सभी राजा महाराजाओं ने इस युद्ध में भाग लिया था।कोई कौरव पक्ष की तरफ से लदे तो कोई पांडव पक्ष की ओर से लड़े थे।मेरी राय में यह प्रथम विश्वयुद्ध था।
कौरवों ने हस्तिनापुर रख लिया पांडवों ने अपने हिस्से में आए खांडव वन के स्थान पर इंद्रप्रस्थ बसा लिया।सारे झगड़े खत्म हो चुके थे।इंद्रप्रस्थ के राजसूय यज्ञ में दुनिया के सभी राजा महाराजा आए हुए थे।कौरव भी अपने ज्येष्ठ दुर्योधन के साथ आए थे।
राजभवन के आंगन को तिलिस्म का रूप दिया गया था। जहा पानी दिखता था वहा आंगन था और जहा आंगन दिखता था वहा पानी के कुंड थे।
दुर्योधन अपने भाइयों के साथ आ रहे थे।महल के झरोखे से द्रोपदी देख रही थी।अचानक आंगन समझ कर दुर्योधन चला तो वह पानी के कुंड में गिर गया।
यह नजारा देख कर द्रोपदी अपनी सखियों के साथ खूब हसी और दुर्योधन को सुना कर एक धारदार व्यंग्य कस दिया,, अंधों के तो अंधे ही होंगे।,,यह व्यंग्य ही महाभारत का कारण बना।
यह युग तो व्यंग्यों की भरमार लिए हुए है।इस युग में हल्दी घाटी का युद्ध भी मात्र महाराणा प्रताप के एक मंत्री द्वारा मानसिंह पर किया गया व्यंग्य ही था कि मुगलों के साले के साथ महाराणा भोजन नहीं करेंगे।फिर क्या था।मानसिंह फोज ले आए।आगे की कथा कहने की जरूरत ही नही है।
अकबर के एक रत्न तो नित्य अकबर और उसके दरबारियों पर निरंतर व्यंग्य करते ही रहते थे।कबीर ने तो व्यंग्य की धारा ही प्रवाहित कर दी।रही सही कसर तुलसीदास जी ने निकाल दी।परसाई,शरद जोशी,तांबेकर आदि अनेक नाम हैं जिन्होंने व्यंग्य में जीवन जिया।एक बार शरद जी परसाई जी के घर गए।परसाई जी की पत्नी घर पर नहीं थी। कहीं गई हुई थी। ।
लोकसभा,राज्यसभा और विधान सभाओं की कार्यवाही देखेंगे तो हजारों हजार व्यंग्य मिल जाएंगे।
राजस्थान में चुनाव हार कर भैरों सिंह जी शेखावत विपक्ष के नेता बने।हरिदेव जोशी मुख्यमंत्री बने।उनके एक हाथ नहीं था।गुलाबसिंह जी शक्तावत पैर से लंगड़े थे।एक मंत्री एक आंख वाले थे।शेखावत साहब बोले यह लूली लंगड़ी कानी खोड़ी सरकार क्या करेगी।जोशी जी ने जबान दिया हाल फिलहाल तो आपको विपक्ष में बिठा दिया।आगे आगे देखिए होता है क्या।
एक बार कानून व्यवस्था पर शेखावत साहब ने जोशी जी को व्यंग्य में कहा आपकी सरकार आने के बाद कोई स्त्री रात को चांद पोल से बाहर नहीं जा सकती।जोशी जी कब चुकने वाले थे बोले आपके राज में तो दिन में भी कोई मर्द चांद पोल से बाहर नहीं निकल सकता था।बहुत उदाहरण हैं।
व्यंग्य का साहित्यिक महत्व
साहित्य में व्यंग्य बहुत महत्वपूर्ण विधा है।जिस प्रकार अनेक व्यंजन युक्त भोजन में चरका, चटपटा,आचार,चटनी,पापड़,सलाद के बिना संपूर्ण भोजन अधूरा है उसी प्रकार व्यंग्य विधा बिना साहित्य भी अपूर्ण है।
क्या व्यंग्य विधा नही है?
अनेक लोग व्यंग्य को विधा ही नहीं मानते थे।एक समीक्षक कम आलोचक ने कहा यह कोई विधा नही है।मैने उत्तर दिया यह विधा नहीं है तो मैं आपको आलोचक या समीक्षक ही नहीं मानता।जब मैंने अनेक उदाहरण व्यंग्य के दिए तो उनकी बोलती बन्द हो गई।
पत्र पत्रिकाएं और व्यंग्य
आज के युग में व्यंग्य के पाठकों की वृद्धि को देखते हुए हर दैनिक समाचार पत्र एक व्यंग्य का स्थाई कालम प्रकाशित करने लग गए जिससे व्यंग्यकारों की एक बढ़ सी आने लग गई है।अनेक कच्चे पक्के व्यंग्य नियमित पढ़ने को मिल रहे हैं।अनेक व्यंग्य की राष्ट्रीय स्तर की पत्रिकाए भी नियमित प्रकाशित हो रही हैं यथा व्यंग्य यात्रा अट्टहास आदि।
जाने माने व्यंग्यकार
व्यंग्य में अपनी कलम की कारीगरी अनेक मनीषियों ने की है जिनकी सूची बहुत लंबी है जैसे काका हाथरसी,हरिशंकर परसाई,शरद जोशी,पुरुषोत्म पुणतांबेकर,हरीश नवल ,ललित लालित्य उर्फ ललित मंडोरा,फारुक आफरीदी,अरविंद तिवारी,नीरज दईया, बुलाकी शर्मा,वागिस सारस्वत एम एम चंद्रा ,ज्ञान चतुर्वेदी,रमेश तिवारी,प्रभात गोस्वामी,रमेश सैनी,कुंदनसिंह परिहार,प्रभा शंकर उपाध्याय राजेश कुमार,सुनीता शानू,एवम शंकर सिंह राजपुरोहित,मधु आचार्य, आदि आदि