“देख तो दिल कि जां से उठता है
ये धुआं सा कहां से उठता है ”

बीकानेर, ( ओम एक्सप्रेस )18 वीं सदी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार, शायर और गद्य लेखक श्री मीर तकी मीर साहब की 298 वीं जयंती पर शबनम साहित्य परिषद सोजत व प्रज्ञालय संस्थान बीकानेर द्वारा आयोजित ऑनलाइन विचार गोष्ठी में उन्हें श्रद्धा से याद किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए बीकानेर के वरिष्ठ साहित्यकार कमल रंगा ने कहा कि मीर तकी मीर उर्दू फारसी भाषा के महान शायर थे। उन्होंने उर्दू शायरी को नए आयाम दिए। सोजत के राजस्थानी गजलकार वरिष्ठ साहित्यकार विरेंद्र लखावत ने कहा कि मीर को उर्दू के उस प्रचलन के लिए याद किया जाता है जिसमें फ़ारसी और हिन्दुस्तानी के शब्दों का अच्छा मिश्रण और सामंजस्य हो। कार्यक्रम का संचालन करते हुए अब्दुल समद राही ने मीर तकी मीर का परिचय दिया और बताया कि उनका जन्म -28 मई 1723, को आगरा में हुआ था।

उर्दू के सर्वकालिक महान शायरों में उनका शुमार किया जाता है। कहते हैं ग़ालिब ने जब एक फकीर से मीर की एक नज्म सुनी तो उनके मुंह से बेसाख्ता निकला, ‘रेख्ते के तुम ही नहीं हो उस्ताद ग़ालिब, कहते हैं पिछले ज़माने में कोई मीर भी था। डॉ लीला मोदी कोटा ने मीर के कुछ शेर सुनाए जिसमें- देख तो दिल कि जां से उठता है,ये धुआं सा कहां से उठता है पर खूब वाहवाही बटोरी। कार्यक्रम में कासिम बीकानेरी बीकानेर, जेबा रशीद व इकबाल कैफ़ जोधपुर मुनव्वर अली ताज उज्जैन अयूब सादिक सहारनपुर महताब आजाद देवबंद आदि ने शिरकत की।