संपादकीय…
गरजता बरसता मानसून चला गया | जल जमाव के कारण प्रदूषित पानी से फैलती बीमारियां तथा स्वच्छ पेयजल का अभाव हो रहा है तो सभी ओर से बीमारियों और कुछ तो जानलेवा बीमारियों के समाचार आ रहे हैं । पानी बचाओ का नारा देने वाले अब सफाई अभियान के नाम पर प्रभात फेरी निकल कर प्रसिद्धि बटोर रहे हैं | बड़े समय से मतदाताओं से कटे-हटे नेता भी इस नाम पर सडक पर उतर अपने अस्तित्व का आभास करवाना चाहते हैं और साथ ही इस बहाने जनता को याद भी करवा रहे हैं कि आगामी चुनाव में उनका ध्यान और उनकी पार्टी का ध्यान रखें | कहीं विधानसभा चुनाव हो रहे हैं कही स्थानीय संस्थाओं के चुनाव सामने खड़े हैं |


इस बार मानसून तो खूब बरसा पर करोड़ों लोगों को पीने का स्वच्छ पानी नहीं मिल रहा है , प्रदूषित पानी पीने से अनेक प्रकार के रोगों का लोग शिकार हो रहे हैं| देश में हर साल मरने वाले एक करोड़ तीन लाख लोगों में से लगभग ७ लाख से कुछ ज्यादा लोग प्रदूषित पानी पीने व गंदगी से पैदा होने वाली बीमारियों से मरते हैं। वहीं विकसित देशों में प्रदूषित जल व गंदगी से मरने वालों की तादाद १ प्रतिशत से भी कम है। जलजनित बीमारियों में से केवल डायरिया ही लाखों जीवन समाप्त कर देता है।


इस साल बाढ़ से बिहार की राजधानी पटना के बड़े मेडिकल कालेज अस्पताल में तो रोगी वार्ड में पानी मछलियों समेत पहुंच गया। मध्यप्रदेश सतना ने भी सिविल अस्पताल पानी में डूबा हुआ दिखाई दिया। इसका सीधा अर्थ यह है कि हम प्रकृति के दिए संसाधनों का सदुपयोग करने के लिए अभी तक पूरी तरह से तैयार नहीं हुए।


वर्षों पहले असम के घरों में टीन से बनाई टेढ़ी छतों से वर्षा का जितना पानी भी गिरता था, उसे बड़े-बड़े पक्के टबों में इकट्ठा करके घर का सारा काम उसी से किया जाता था। गांवों में छप्पर और शहरों में तालाब पानी को बचाने और धरती तक पहुंचाने का बहुत बड़ा साधन थे। नहरों के तल सीमेंट से बनाकर पानी का धरती से नाता सरकारी तंत्र ने अथवा आधुनिकीकरण के नाम पर खत्म कर दिया गया है । जब धरती के अंदर जल समाहित होने के रास्ते ही स्वयं आज के आधुनिक मानव ने बंद कर दिए तो धरती कब तक पानी देगी। कभी घरों के आंगन ईंटों से बनाए जाते थे। बड़ी-बड़ी सड़कों के किनारे फुटपाथ भी ईंटों से बनते थे। हमारे बड़े-बड़े शहरों के विशाल भवनों के बाहर सड़क के किनारे हरी-भरी क्यारियां दिखाई देती थीं। अब वहां भी नए युग की टाइलों ने कब्जा कर लिया। धरती के अंदर वर्षा का जल संजोने के लिए जो भी प्राकृतिक साधन थे, वे समाप्त किए जा रहे हैं।अब ऐसा लगता है कि सरकारों ने स्वीकार कर लिया है कि वही पानी अच्छा है जो सरकारी दफ्तरों, बड़े नेताओं की मीटिंगों या होटलों में बोतलबंद मिलता है। जो कई जगह दूध से भी महंगा है।मुद्दा यह है कि पाकिस्तान और बांग्लादेश शुद्ध पानी पिलाने में हमसे आगे हैं, अमेरिका, रूस,जापान तो बहुत आगे हैं फिर हम पीछे क्यों?
