

– बीकानेर। रण बाँकुरे के गठन के छः माह बाद शेर फिर उठा गुर्राया औऱ…! देवी सिंह भाटी इलाके के जननेता हैं। उनमें जनहित के मुद्दों के प्रति संवेदना है। और व्यवस्था के विरुद्ध खड़ें होने का जज्बा भी। पर वे केवल सिद्धान्तों और आदर्शों की बात कर चुप्पी साध लेते हैं। बापू के नमक आंदोलन पर जवाहरलाल नेहरू ने सवाल उठाया था तो बापू का जवाब था करके देखो…! भाटी जी आपका रण बांकुरा व्यवस्था पीड़ित की सुनने का मंच कहा गया ? सार्वजनिक परिसम्पत्तियों गोचर, औरण, तालाब की आगोर औऱ परम्परागत व्यवस्था का आपका नारा फीका क्यों पड़ गया। आपने सार्वजनिक मुद्दों पर जन जागृति अभियान के लिए एक विशेष बस बनाई थी वो बस चली नहीं..। आयुर्वेदिक नुख्सों की तो कोरोना काल में महती आवश्यकता है भाटी जी।। खैर बीकानेर में दबंगाई की घटनाओं पर आपकी तीखी प्रतिक्रिया वाजिब है, परन्तु अव्यवहारिक भी। आपने अमरीका का हवाला देकर लोकतंत्र पर सवाल खड़े किए। किसी शासन व्यवस्था के गुण दोष धूप छांव की तरह होते हैं। कानून व्यवस्था को विफल बताया जिस समाज व्यवस्था के बारे में आपका वक्तव्य है कि आँख की शर्म खत्म हो गईं है। परम्परा औऱ संस्कार खत्म होते जा रहे हैं क्या इन हालातों में मोहल्ला समितियों की व्यवस्था कारगर होगी इसकी क्या गारंटी है। पहले से मोहल्ला समितियां तो बनी है फिर भी कुछ करके दिखाओ तब बात बनेगी। नहीं तो फिर शेर सो जाएगा।। देवी सिंह भाटी चाहे तो राजस्थान में सार्वजनिक परिसम्पत्तियां गोचर, ओरण, तालाब, आगोर को लेकर प्रदेश में व्यापक जन अभियान चला सकतेन हैं। समाज खुद अपनी सुरक्षा का जिम्मा ओट सकता है। यह तभी संभव जब खुद भाटी करके दिखाएं। उनमें मादा है। मुद्दे जीवन्त है शेर में दम है जनता को भी उम्मीद है। देखो आगे आगे होता है क्या…!
