शोरगुल का प्रदूषण ( Noise Pollution) हमारे लिए बड़ी समस्या बनती जा रही है। कभी-कभी तो शोरगुल इतना परेशान कर देता है कि हमारे सिर में भारीपन होता है और हमें चिड़चिड़ी आती है। शादी ब्याह, नव दुर्गा, गणपति उत्सव, दशहरा – दिवाली, चुनावी रैली के समय बजने वाले ढोल धमाके डीजे पटाखों की आवाज यह समय अत्यधिक शोरगुल भरे होते हैं। सुबह-सुबह मस्जिद की ऊंची मीनार पर लगे भोंगे से निकलने वाली आवाज, मंदिर में जोर जोर से बजने वाले भक्ति गीत, धार्मिक जुलुस जो भजन गाते हुए निकलते हैं चाहे मान्यता से हो चाहे अंधभक्त भक्ति से जो शोर होता है उसे बंद होना चाहिए। कई बार इतनी जोर से शोर होता है जिससे बीमार व्यक्ति बच्चो की पढ़ाई पर असर पडता है। हम अपने घरों में सुबह मीठी नींद मैं रहते है और उसी वक्त यह शोर बहुत तकलीफ देता है। यह बात अलग है कि हम इन बातों के आदी हो चुके हैं और हम ऐसे किसी भी कार्यक्रम पर अपना विरोध नहीं जताते हैं क्योंकि किसी भी धर्म परायण देश में धर्म के नाम पर होते हुए शोरगुल को आप रोक नहीं सकते। जिंदगी में सुकून और शांति के लिए शोरगुल बंद होना जरूरी है। धर्म के नाम पर होने वाला यह शोरगुल शो ऑफ है ऐसे शोरगुल होने पर भगवान प्रसन्न होते हैं यह सोच गलत है। मस्जिद की मीनार से अल्लाह के नाम से जोर से बोलना भी गलत धारणा है। हां यह सब ठीक था जब घड़ी नहीं हुआ करती थी तब समय की सूचना भी हो जाती थी।
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्)

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