– संगीत मनीषी डॉ.जयचन्द्र शर्मा की 101 वीं जयंती पर नमन किया
बीकानेर। संगीत मनीषी डॉ. जयचंद्र शर्मा की 101 वीं जयंती पर श्रद्धासुमन अर्पित कर उनके कार्यों को याद करते हुए उन्हें नमन किया गया | ऑनलाइन समारोह में अपने विचार व्यक्त करते हुए जोधपुर से वरिष्ठ साहित्यकार भवानीशंकर व्यास ‘विनोद’ ने कहा कि हुकमीचन्दजी व मगी देवी की इकलौती संतान जयचन्द्रजी शर्मा का जन्म बीकानेर रियासत के चूरू कस्बे में 19 सितम्बर 1919 ई, को हुआ । जन्म से ही राष्ट्र प्रेम और संगीत के संस्कार आप में पाए गए । संगीत साधना के साथ-साथ चूरू प्रजा परिषद के उपाध्यक्ष तथा स्वतंत्रता प्राप्ति तक कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता का दायित्व निभाया । डॉ. शर्मा का विवाह पं.शालिग्रामजी की पुत्री जयंती देवी के साथ सम्पन्न हुआ । डॉ.शर्मा नाट्य, नृत और नृत्य तीनों विषयों के अधिकारिक विध्वान थे । उन्होंने तीनों विधाओं का शास्त्रीय विवेचन प्रस्तुत करते हुए अनेक आलेख लिखे जो भारतीय शास्त्रीय नृत्यों की परम्परा को बरकरार रखने की दिशा में महत्वपूर्ण माने गए हैं ।
“कथक नृत्य” पर माहेश्वर सूत्र की व्याख्या करके विभिन्न वर्णों से नृत्यात्मक ध्वनियों का शास्त्रीय विवेचन प्रस्तुत किया । बीकानेर का सौभाग्य था कि ऐसे संगीत मनीषी ने यहाँ संगीत साधना की | सखा संगम के चंद्रशेखर जोशी ने कहा कि डॉ.जयचन्द्रजी ने घुंघरुओं की लघु और मूल ध्वनियों के साथ विभिन्न वर्गों की ध्वनियों से सह सम्बन्ध स्थापित करने के अतिरिक्त कथक रचनाओं के वर्गीकरण जैसे अछूते विषय को परखा और ध्वनि प्रधान रचनाओं में प्रयुक्त अक्षर-पटाक्षर से उत्पन्न ध्वनियों, ताल वाध्यों, प्राकृतिक ध्वनियों, नृत्यात्मक ध्वनियों तथा पशु-पक्षियों द्वारा उत्पन्न उच्चारणों को स्वरित, मिश्रित और नपुसंक श्रेणियों में विभक्त किया जबकि शब्द प्रधान रचनाओं को श्लोक, छन्द, कवित आदि के अनुसार वर्गीकरण किया । शब्दरंग साहित्य एवं कला संस्थान के राजाराम स्वर्णकार ने कहा कि डॉ.जयचन्द्र शर्मा ने तत्कार साधना, ठाठ क्रिया, अराल हस्त सलामी, तिहाई जैसी कथक रचनाओं के उद्धेश्य व महत्व पर आध्यात्मिक चिंतन प्रस्तुत कर समाज को एक नई दिशा प्रदान की । व्यंग्यकार डॉ.अजय जोशी ने कहा कि कथक शैली को राजमहलों से बाहर निकाल आम जन की परम्परा में ढालने में शर्मा सक्षम रहे । मुक्ति संस्था के राजेन्द्र जोशी ने कहा कि कथक की परम्परा शैली के साथ डॉ.शर्मा ने समसामयिक नृत्य रचनाएं मातृभूमि वंदना, देश पताका, खेती अभियान किसान परन, लू रा लपका, नहर शोभा, अल्प बचत, देश प्रगति, नारी उत्थान, पथ प्रदर्शन, अनुशासन परन, सागर तट, हृदय मंथन, मनन, जन जागरण और अमृत ध्वनि जैसी अनेक रचनाओं में तोडे-टुकडे, परन आदि देशकाल की मंचीय आवश्यकता को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किए ।
नागेश्वर जोशी, एन.डी.रंगा, ब्रजगोपाल जोशी, शिक्षाविद भगवानदास पडिहार, खुमराज पंवार, हीरालाल हर्ष, डॉ.कल्पना शर्मा, पत्रकार कनय शर्मा, जन्मेजय व्यास, गिरिराज पारीक, ऋषिकुमार अग्रवाल, हनुमान कच्छावा ने भी अपने विचार व्यक्त किए ।अंत में शिक्षा को पूरी जिन्दगी समर्पित रहने वाले शिक्षाविद, पर्यावरण प्रेमी, समाज सेवी, जनाब अशफाक कादरी के पिता श्री हाजी मोहम्मद अली को मौन रहकर श्रद्धासुमन अर्पित किए।