– प्रतिदिन -राकेश दुबे
दिल्ली के अखाड़े में सरकार और किसान आमने सामने हैं ।दोनों बात करना चाहते हैं, पर अपनी शर्तों पर, कोई टस से मस नहीं होना चाहता । सम्पूर्ण निदान के लिए कुछ जरूरी बातें सारे देश को समझना चाहिए ।जैसे कहने को कृषि का अर्थव्यवस्था में योगदान सिर्फ १५ प्रतिशत है, लेकिन इसके विपरीत करीब ४५ से ६० प्रतिशत लोग कृषि पर निर्भर है़ं ऐसे में कृषि का यदि अच्छे से विकास हो, किसानों को उनकी उपज का अच्छा पैसा मिले, तो कृषि कार्यों से जुड़े ४५ से ६० प्रतिशत लोगों की जिंदगी बेहतर हो जाये।
जैसा कि दूसरे क्षेत्रों के साथ हुआ है़ कृषि में किया जा सकता है ।सबको इसकी बेहतरी के लिए जरूर सोचना चाहिए।इसके लिए सिंचाई, तकनीक, बाजार आदि से संबंधित समस्याओं को दूर करना प्राथमिकता ओना चाहिए। इससे पूरे देश का पेट भरता है ।अर्थव्यवस्था का चक्र चलता है । आंकड़े बताते हैं, अभी देश की मात्र ५० प्रतिशत भूमि ही सिंचित हो पायी है, जबकि १९८० तक एक तिहाई भूमि सिंचित हो चुकी थी़।इसके बाद की सुस्त रफ्तार अपने आप में सवाल है।
तो कभी कई दिन तक पानी ही नहीं बरसता और सूखा हो जाता है़। इससे खेती काफी प्रभावित हो रही है़ जलवायु परिवर्तन के कारण इसमें अभी और वृद्धि होगी़ इसलिए जल संरक्षण संरचना को बनाया चाहिए ।जल निकायों में जमा बरसात का पानी भूमिगत जल स्तर को रिचार्ज करेगा और उसका इस्तेमाल सिंचाई में भी हो सकेगा़ ये जल संरक्षण संरचना अत्यधिक वर्षा के कारण आनेवाली बाढ़ को भी रोकने में सहायक सिद्ध होंगे़ मनरेगा के तहत यह कार्य हो भी रहा है़।इसमें समन्वय की जरुरत है। इसकी गति और संखया बढ़ाने की जरूरत है़ इसमें सूक्ष्म सिंचाई योजनाओं का बढ़ाया जा सकता है।सूक्ष्म सिंचाई योजनाओ का क्षेत्र अभी बहुत कम है।
जमीन का दुरुस्त रिकार्डभी एक समस्या है । लैंड रिकॉर्ड का ठीक होना जरूरी है, क्योंकि इससे फिर हमारा लैंड मार्केट ठीक होगा़ खेती से संबद्ध और गैर-कृषि क्षेत्रों का गांव के आस-पास होना भी बहुत आवश्यक है़ संबद्ध क्षेत्रों जैसे पशु पालन में तो काम हुआ है लेकिन इससे जुड़े मत्स्य पालन, मधुमक्खी पालन, रेशमकीट पालन के क्षेत्र में अभी ज्यादा काम नहीं हुआ है।इनमें काफी संभावनाएं है़ं तो इन क्षेत्रों को बढ़ावा देने की जरूरत है़। किसानों को तकनीकी माध्यम से किसानी की जानकारी देना आवश्यक है़ आजकल मोबाइल से यह हो रहा है, लेकिन अभी इसकी पहुंच ज्यादा नहीं है़ इसे सही तरीके से और ज्यादा विस्तार देना होगा, ताकि ज्यादा से ज्यादा किसान जुड़ सके़ं इसके लिए संबंधित इलाके के कृषि विश्वविद्यालय को काफी गंभीरता दिखानी होगी़।
सरकार संविदा खेती का नया कृषि कानून लेकर आयी है़ यह एक अच्छा कदम है़ बाजार से जुड़े दो कानून भी अभी सरकार लेकर आयी है़ इसमें निजी गतिविधियों को बढ़ावा दिया गया है और मार्केट की मोनोपॉली को खत्म की गयी है़ निजी लोगों के आने से निवेश ज्यादा होगा और किसानों को ज्यादा विकल्प भी उपलब्ध हो सकेंगे । उत्पादों के रख-रखाव और प्रसंस्करण के लिए भी नये उपाय किये जा सकते हैं ।मनरेगा के माध्यम से इसे बेहतर किया जा सकता है़ कृषि में बेहतरी के साथ-साथ ग्रामीण विकास भी बहुत जरूरी है़।
ग्रामीण विकास नहीं होने से यहां शिक्षा, स्वास्थ्य समेत तमाम तरह की परेशानियां हैं, इस कारण लोग गांवों में रहना नहीं चाहते हैं. खासकर जो थोड़े से भी पढ़-लिखे हैं वे आस-पास के शहरों में पलायन कर जाते हैं. इस समस्याओं के निदान में कितना समय लगेगा।इस हेतु एक विस्तृत कार्यक्रम बनाने की जरूरत है । बातचीत इन विषयों को ध्यान में रखकर की जाये तो सालों से पिछड़े किसान और किसानी से न्याय होगा ।