राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) देश का दर्पण है जिसमें देश की सही-सही तस्वीर दिखती थी | इस विभाग का कार्य ही हकीकत से रूबरू रखने और करने का था | अब यह संस्था विवाद में आ गई है और इसमें आमूल चूल परिवर्तन की बात उठने लगी है | प्रश्न यह है यह क्यों हो रहा है ? चर्चित कारण दो उभरे हैं | पहला -भारत में बेरोजगारी की स्थिति पर तैयार रिपोर्ट जारी न होने से उठा विवाद और दूसरा- राष्ट्रीय सांख्यिकीय संगठन (एनएसओ) की घरेलू उपभोग पर तैयार रिपोर्ट का लीक होना | इन विवादों से भारतीय सांख्यिकीय प्रणाली की विश्वसनीयता भी गंभीर रूप से प्रभावित हुई है।
एनएसएसओ ने अपने सर्वेक्षण अभियान की शुरुआत अक्टूबर १९५० से मार्च १९५१ के दौरान ग्रामीण इलाकों में विभिन्न मुद्दों के बारे में पड़ताल से की थी। दसवें दौर का सर्वेक्षण होने तक एनएसएसओ पूरी तरह व्यवस्थित हो चुका था। संसद में १९५९ में अधिनियम पारित होने के बाद भारतीय सांख्यिकी संस्थान (आईएसआई) को भी वैधानिक दर्जा मिल गया। इसकी आम स्वीकृति इससे पता चलती है कि सरकारी संगठन एवं स्वायत्त संस्थान जरूरी आंकड़े जुटाने के लिए एनएसएस की सर्वे पद्धति में रुचि दिखाते थे।
सत्ता पर काबिज हर सरकार को आंकड़ा संग्रह के काम हस्तक्षेप कम और सन्गठन की स्वयत्ता को प्राथमिकता में रखना चाहिए और संक्षिप्त अवधि की अनुबंधित नियुक्तियों से परहेज करना चाहिए। आंकड़े जुटाने के काम में लगे नियमित कर्मचारियों की संख्या में पर्याप्त वृद्धि किए जाने से रोजगार अवसर भी बढ़ेंगे। अधिक स्वायत्तता के लिए एनएसएसओ को सांख्यिकीय आयोग के मातहत रखा जाना चाहिए। इसके अलावा सांख्यिकीय आयोग को कानूनी रूप से अधिक सशक्त भी बनाया जाना चाहिए। ये सन्गठन आईना है और आईने का काम सच दिखाना है | सच दिखाते आईनों को तोड़ने और मोड़ने की कोशिश हमेशा होती है | यह कोशिश कारगर न हो ऐसे प्रयास होना चाहिए, इसी में प्रजातंत्र का भला है |