भ्रष्ट नेता और अधिकारियों की सांठगांठ टूटना चाहिए। नेता जब विधानसभा भवन या संसद भवन में बैठने योग्य होता है तो वहां से सुप्रीम बनने की पूरी कोशिश करता है और भ्रष्ट अधिकारी अपनी मनपसंद जगह नौकरी करने के लिए उनकी चाटुकारिता करते हैं। यह बड़ा अजीब सिलसिला है यदि अधिकारी ईमानदार है तो उसे चाटुकारिता करने की कोई जरूरत नहीं परंतु उनके मन में एक अनजान सा डर बैठा हुआ है जिसे उन्हें बाहर निकालना होगा। नेता और अधिकारी जिस दिन यह सोच ले कि हम जनता के सेवक हैं तो उस दिन राम राज्य की पुनःस्थापना हो जाएगी। अक्सर देखने में आता है जैसे ही सरकारें बदलती है मनपसंद अफसरों के तबादले होना शुरू हो जाते हैं। आम जनता पर कई कानून लागू होते हैं और उन्हें कदम कदम पर चालान भरना होता है पनिशमेंट भुगतना होता है। परंतु यह दोनों वर्ग हमेशा वंचित रहते हैं। नेता लोगों का लचरपन सिर्फ वोट मांगने तक रहता है वह हर किसी के चरण छूते हुए दिख जाएंगे पर जीतने के बाद जनता उनके चरण छूने को तरसती रहती है। मैं यह नहीं कह रहा कि सभी भ्रष्ट है खराब है बहुत से अच्छे अधिकारी हैं बहुत से अच्छे नेता हैं। जिस प्रकार दूध मे जावन मिलने से दूध फट जाता है उसी तरह कुछ लोगों के जावन रूपी व्यवहार से पूरा सिस्टम बिगड़ जाता है। अतः इनकी सांठगांठ रुके तो स्वर्ग दिखने के कोई आसार नजर आ जाए।
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, वास्तुविद)