साध्वीजी गुरुवार को अरिहंतशरण हो गई थी। उनके पार्थिक देह की बैकुंठी जैन बहुल्य मोहल्लों से होते हुए श्मशान पहुंची। उनके पार्थिह देह को उनके सांसारिक भतीजे श्रीपाल कोठारी ने मुखाग्नि दी। विभिन्न जैन संघों के पदाधिकारियों व सदस्यों और बड़ी संख्या में श्राविकाओं ने भी अंतिम यात्रा में शामिल होकर अरिहंत शरण हुई साध्वी के प्रति श्रद्धा सुमन अर्पित किए।
सुगनजी महाराज का उपासरा ट्रस्ट के मंत्री रतन लाल नाहटा ने बताया कि साध्वीश्री संयमपूर्णाश्रीजी का बीकानेर में लगातार दूसरा चातुर्मास था। यह संयोग ही रहा कि साध्वीश्री का जन्म, दीक्षा व महाप्रयाण तीनों ही बीकानेर में ही हुए। नाहटा ने बताया कि संयमपूर्णाश्रीजी का जन्म भादवा सुदी अष्टमी विक्रम संवत 2014 को बीकानेर में सुश्रावक सोहन लाल कोठारी के यहां हुआ। इन्होंने अपनी माताश्री अंतर बाई से धार्मिक तथा मैट्रिक और साहित्य रत्न की एकेडमिक शिक्षा प्राप्त की। इन्होंने बीकानेर में माघ शुक्ला पंचमी विक्रम संवत् 2031 में विचक्षण ज्योति चन्द्रप्रभाजी म.सा. की सुशिष्या के रूप् में आचार्यश्री कैलाश सागरजी म.सा. से दीक्षा लेकर सुशीला कोठारी से संयमपूर्णा बन गई। संघ की ओर से कोकिल कंठी की उपाधि प्राप्त साध्वीश्री संयमपूर्णाश्रीजी की संगीत व भक्ति गायन में विशेष रूचि और विशिष्टता थीं। इन्होंने देश के प्रमुख शहरों में पैदल यात्राएं कर भगवान महावीर के सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अचैर्य, अपरिग्रह के सिद्धान्तों का प्रचार किया। अनेक तपस्याएं स्वयं की तथा श्रावक-श्राविकाओं से भी करवाई।
जैनचार्य मणि प्रभ सूरिश्वरजी, पीयूष सागरजी, मनोज्ञ सागरजी, साध्वीश्री शशि प्रभा और देश के अनेक स्थानों पर विचरण कर रहे मुनियों व साध्वियों और खरतरगच्छ संघ के पदाधिकारियों ने स्थानीय संघों के पदाधिकारियों और उनकी सहवृृति साध्वी श्रद्धानिधि को भेजे संदेश में उनके आत्म कल्याण की कामना की।