भारत सहित विश्व की सारी सरकारें चीन से अपने नागरिक वापिस बुलाने में लगी है | जानलेवा कोरोंनावायरस से बचाव के लिए | इस बार सवालों की जद में विश्व स्वास्थ्य सन्गठन है |चीन ने गत ३१ दिसंबर को विश्व स्वास्थ्य संगठन को सूचित किया था कि उसके हुबेई प्रांत की राजधानी वुहान में कुछ लोग कोरोनावायरस से संक्रमित हुए हैं। इसके बाद भी विश्व स्वास्थ्य सन्गठन द्वारा कोई प्रभावी उपाय नहीं हुए | अब विश्व का हर वो देश चिंतित है जिसके नागरिक चीन में कार्यरत थे या किन्ही कारणों से चीन में मौजूद थे | इस वायरस के संक्रमण का पहला मामला चीन में ८ दिसंबर को सामने आया था। अब तक यह वायरस १०००० से अधिक लोगों को अपनी चपेट में ले चुका है और इससे २०० से अधिक की मौत हो चुकी है। एक करोड़ से अधिक आबादी वाले वुहान और कुछ अन्य शहरों को अलग-थलग करने की कोशिशों के बावजूद इस घातक वायरस का प्रसार थम नहीं रहा है। अब चीन से भारत या अन्य देशों से लौट रहे लोगों की सघन जाँच और इस वायरस से संक्रमित लोगो की जन बचाने के उपाय पर फौरन काम करने की जरूरत है |
इस वायरस का प्रसार दुनिया के कई देशों में हो चुका है। भारत के की नगरों से इस वायरस से बीमार लोगों के समाचार आ रहे है। वुहान यूनिवर्सिटी से लौटी केरल निवासी एक छात्रा को संक्रमित पाया गया है। चीन की करीब चार करोड़ आबादी नो-ट्रैवल जोन घोषित किए जा चुके इलाके में रहती है। चीन में कई उड़ानें रद्द की जा चुकी हैं। चीन से आने वाले यात्रियों को दो हफ्ते तक निषिद्ध रखने की बात ब्रिटेन ने की है और भारत भी इसी तरह का प्रतिबंध लगा चुका है। यह जानवरों एवं पक्षियों से फैलने वाला वायरस है जो इंसानों को भी संक्रमित कर देता है। मसलन, चीन में ही दस्तक देने वाला सार्स वायरस भी चमगादड़ों एवं कस्तूरी बिलाव से इंसानों तक पहुंचा था। माना जाता है कि वुहान का नॉवेल कोरोनावायरस भी किसी जानवर या पक्षी से ही इंसान तक पहुंचा है और अब यह एक से दूसरे इंसान तक फैलता जा रहा है। जहां इस बीमारी में फ्लू से मिलते-जुलते लक्षण नजर आते हैं वहीं कई दिनों तक संक्रमण के बाद भी कोई लक्षण नहीं दिखते हैं। संक्रामक बीमारियों का प्रसार कई कारणों पर निर्भर करता है जिनमें से एक बढिय़ा ढांचागत आधार भी है।
सब जानते हैं कि इस इक्कीसवीं सदी में संक्रमित लोग कुछ ही घंटों में दुनिया के दूसरे छोर पर जा सकते हैं। इसके पहले हम २००३ में भी सार्स के संक्रमण के समय इसे देख चुके हैं। चिकित्सा क्षेत्र के जानकार किसी बीमारी की संक्रामक क्षमता को बेसिक रिप्रोडक्शन नंबर (आर0) की गणना से आंकते हैं। आर0 का आशय इससे है कि कोई संक्रमित व्यक्ति स्वस्थ या मृत होने के पहले औसतन कितने लोगों को संक्रमित कर सकता है? जिस बीमारी का आर0 अधिक होता है वह उतना ही अधिक संक्रामक मानी जाती है। अगर आर0 एक से कम है तो फिर वह बीमारी खुद-ब-खुद सिमट जाने वाली है और धीरे-धीरे खत्म हो जाएगी। अगर आर0 एक से अधिक है तो फिर संक्रमित व्यक्ति को अलग न रखने पर बीमारी फैलती जाएगी। आर0 संख्या में काफी भिन्नता भी हो सकती है। मसलन, इन्फ्लुएंजा का आर0 नंबर २ से३ होता है जबकि खसरा का आर0१२ से १८ तक होता है। सामान्य सर्दी-जुकाम जैसा बेहद संक्रामक वायरस भी घातक नहीं होता है लिहाजा उससे डरने की जरूरत नहीं होती है। लेकिन इबोला जैसी उच्च घातक दर वाली एक संक्रामक बीमारी बेहद डरावनी होती है।
जहां तक कोरोना का सवाल है तो इसके आर0 नंबर और न ही इसकी मृत्यु दर के बारे में सटीक आंकड़े उपलब्ध नहीं हो पाए हैं। लेकिन शोधकर्ता प्रारंभिक अनुमान लगा रहे हैं। कई लेखकों की भागीदारी वाले दो शोध-पत्र सामने भी आ चुके हैं। हॉन्गकॉन्ग की एक शोध टीम द्वारा प्रकाशित शोध-पत्र में कहा गया है, ‘हमारा अनुमान है कि इस वायरस का माध्य आर0 २.२४ से लेकर ३.५८ के बीच है और मामले सामने आने की दर दोगुनी से आठ-गुनी है।’ अगर आर0 नंबर को सबसे निचले स्तर २.२४ पर भी रखें तो इसका मतलब है कि यह बीमारी तेजी से फैलने वाली है।
एक शोध-पत्र में कहा है कि कोरोना वायरस से संक्रमित होने के बाद उसके लक्षण उजागर होने में ४.८ दिन लगते हैं। एक बार लक्षण सामने आने के बाद २.९ दिन में मरीज को अलग रखने की नौबत आ जाती है जबकि सार्स वायरस के मामले में यह स्थिति ४.२ दिन में आती है। इसके मुताबिक ‘महामारी फैलाने के लिहाज से सार्स की तुलना में नॉवेल कोरोना अधिक जोखिम वाला है। वैश्विक स्तर पर इसके प्रसार रोकने के लिए अधिक सख्त नियंत्रण एवं रोकथाम संबंधी उपायों की जरूरत है।विश्व स्वास्थ्य संगठन को फौरन कुछ करना चाहिए |