



पं. रविन्द्र शास्त्री लेख
( 7701803003)
महादेव को प्रसन्न करने का सबसे कारगर तरीका हैै। शिव के मंत्रों को जपने से शिव भक्तों के ऊपर शीघ्र ही उनकी कृपा दृष्टि भी बरसती है। शिव जी के मंत्रों में एक रंक को राजा बनाने, एक अज्ञानी को महाज्ञानी और एक निर्बल को सबल बनाने की शक्ति निहित है। इस लेख में शिव जी के प्रमुख मंत्रों और स्तोत्रों की चर्चा विस्तार से की है।
शिव मंत्र को जपने से मिलता है महादेव का आशीर्वाद
वैदिक मंत्रों के महत्व को बताते हुए संस्कृत में एक श्लोक लिखा गया है- ‘मन: तारयति इति मंत्र:’ अर्थात मन को तारने वाली ध्वनि ही मंत्र है। हिन्दू पूजा पद्धति के दौरान पढ़े जाने वाले मंत्रों का संकलन यजुर्वेद में मिलता है। इस वेद में गद्य और पद्य दोनों ही रूपों मंत्र लिखे गए हैं। हालाँकि कई मंत्र हैं ऐसे भी हैं जिनका उद्गम यजुर्वेद की परिधि से बाहर है।
मंत्रों में वह ऊर्जा होती है जिसका उच्चारण विधिपूर्वक किया जाए तो व्यक्ति को उसका वास्तविक फल मिलता है। ऐसे ही भगवान शिव से संबंधित मंत्र और स्तोत्र हैं जिनका जप या पाठ करने से आपके ऊपर शिव कृपा बरसेगी। मनुष्यों की भिन्न-भिन्न कामनाएँ होती हैं इसलिए उनकी कामना प्राप्ति के लिए भी अलग-अलग शिव के मंत्र हैं।
भगवान शिव और उनका स्वरूप
शिव को सृष्टि का संहारक माना जाता है। उन्हें कई नामों से जाना जाता है। इसमें महादेव, भोलेनाथ, कैलाशपति, शंकर जी, नीलकंठ आदि नाम शामिल हैं। हिन्दुओं की धार्मिक पुस्तक “शिव पुराण” में भोलेनाथ के बारे में विस्तार से बताया गया है। इस धार्मिक ग्रंथ में शिव की महिमा का संपूर्ण विवरण है।
शिव शंभु का स्वरूप
देवताओं से बहुत भिन्न है। एक ओर ब्रह्मा जी और भगवान विष्णु जी के स्वरूप को देखें और फिर भगवान शिव की वेशभूषा को निहारें तो इसमें बड़ा अंतर नज़र आता है। कैलाश पर्वत में रहने वाले देवों के देव महादेव तन में जानवर की खाल लपेटे हुए हैं। शंकर जी के गले में नाग देवता लिपटे हुए हैं और माथे पर चंद्र विराजमान है।
महादेव हाथ में डमरू और त्रिशूल लिए हुए हैं और नंदी की सवारी करते हैं। हिन्दू मान्यता के अनुसार, भगवान शिव को मनाना अन्य देवताओं की अपेक्षा आसान है। भगवान शिव सबसे जल्दी आशीर्वाद देने वाले देवता हैं और जिस व्यक्ति के ऊपर शिवजी की कृपा हो जाए उस व्यक्ति का कल्याण होना निश्चित है।
सर्वाधिक लोकप्रिय शिव मंत्र – पंचाक्षरी शिव मंत्र
ॐ नमः शिवाय,
भगवान शिव का सबसे लोकप्रिय मंत्र है। यह शैव मत के अनुयायियों के लिए महत्वपूर्ण मंत्र है। यह मंत्र केवल पाँच अक्षरों का है। इसलिए इसे शिव का पंचाक्षरी मंत्र भी कहते हैं। यहाँ ॐ को अक्षर के रूप में नहीं गिना जाता है। ॐ नमः शिवाय का अर्थ है भगवान शिव ही है
मंत्र
“ॐ नमः शिवाय”
पंचाक्षरी शिव मंत्र की उत्पत्ति
शास्त्रों के अनुसार, पंचाक्षरी शिव मंत्र का वर्णन भी यजुर्वेद में मिलता है। हिन्दू धार्मिक शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि श्री रुद्रम् चमकम् और रुद्राअष्टाध्यायी में ’न’,’ मः’ ‘शि’ ‘वा’ और ‘य’ के रूप में प्रकट हुआ था। श्री रुद्रम चमकम् और रुद्राअष्टाध्यायी क्रमश कृष्ण यजुर्वेद और शुक्ल यजुर्वेद का हिस्सा हैं। शिव पुराण के विद्येश्वर संहिता के अध्याय 1.2.10 और वायवीय संहिता के अध्याय 13 में ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र लिखित रूप में है।
मंत्र के लाभ
भगवान शिव का यह मंत्र बड़ा ही प्रभावशाली है। इस मंत्र के जाप से न केवल भगवान शिव की प्रार्थना की जा सकती है। बल्कि इससे परमात्मा प्रेम, करुणा, सत्य और परम सुख जैसे गहन विषयों का अनुभव किया जा सकता है। यदि व्यक्ति इस मंत्र का सही और शुद्ध रूप से उच्चारण करे तो उसे आत्मिक शांति और आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि का साक्षात आभास हो जाएगा। मानसिक और दैहिक सुख प्राप्त करने के लिए यह मंत्र बेहद ही कारगर माना जाता है।
मंत्र को जपने की विधि
यह मंत्र के मौखिक या मानसिक रूप से जपा जाता है।
मंत्र जाप के समय मन में भगवान शिव ध्यान होना चाहिए।
इसे रुद्राक्ष माला पर 108 बार दोहराया जाता है। इसे जप योग कहा जाता है।
इसका जाप हर कोई कर सकता है, परन्तु गुरु द्वारा मंत्र दीक्षा के बाद इस मंत्र का प्रभाव बढ़ जाता है।
शिव बीज मंत्र और उसके लाभ
मंत्र शास्त्र में सभी देवी-देवताओं के लिए बीज मंत्र दिए गये हैं। ईश्वर की स्तुति के लिए बीज मंत्रों का विशेष स्थान है। शास्त्रों में इन मंत्रों को शिरोमणि भी माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि जिस प्रकार बीज से पौधे और वृक्षों की उत्पत्ति होती है, वैसे ही बीज मंत्रों के जाप से ईश्वरीय शक्ति उत्पन्न होती है। इसी प्रकार भगवान शिव का बीज मंत्र *ह्रौं”* है। भगवान शिव के बीज मंत्र लोगों को अकाल मृत्यु, रोग एवं संकटों से मुक्ति दिलाता है। यदि कोई व्यक्ति इस मंत्र को विधिनुसार करे तो उस व्यक्ति का चहुमुखी विकास होता है और उसकी मोक्ष प्राप्ति की कामना भी पूर्ण होती है।
शिव बीज मंत्र
“ह्रौं”
मंत्र को जपने की विधि
श्वेत आसन पर उत्तर या पूर्व की ओर मुख करके बैठें।
मन में भगवान शिव का ध्यान करें।
इसे रुद्राक्ष की माला के साथ नित्य एक हज़ार बार जपें।
इस मंत्र को कोई भी जप सकता है।
मृत्युंजय मंत्र
*“ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥”*
मृत्युंजय मंत्र अर्थात मृत्यु को जीतने वाला मंत्र, यह मंत्र भगवान शिव को समर्पित है। यह मंत्र भगवान शिव की स्तुति के लिए यजुर्वेद के रुद्र अध्याय में है। यह मंत्र शिव के रुद्र अवतार (रौद्र रूप) से संबंध रखता है इसी कारण इसे रुद्र मंत्र अथवा त्रंयम्बकम (तीन नेत्रों वाला) मंत्र भी कहते हैं। वैदिक कालीन ऋषि मुनियों ने महामृत्युंजय मंत्र को वेद का हृदय कहा है। शास्त्रों में कहा गया है कि असुरों के ऋषि शुक्राचार्य ने कठोर तपस्या कर मृत्यु पर विजय पाने वाली इस विद्या को प्राप्त किया था।
महामृत्युंजय मंत्र के लाभ
शास्त्रों के अनुसार कलयुग में भगवान शिव का अधिक प्रभाव बताया गया है। भगवान शिव के महामृत्युंजय मंत्र के जाप से व्यक्ति को अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। इसका जाप व्यक्ति को समस्त पापं एवं दुख भय शोक से मुक्ति दिलाता है। निःसंतान दंपत्ति यदि महामृत्यंजमंत्र का सच्चे हृदय से जाप करें तो उन्हें संतान प्राप्ति होती है। यह मंत्र नौकरी/व्यवसाय में आ रही बाधाओं को भी दूर करता है।
मंत्र को जपने की विधि
मंत्र के शुद्ध उच्चारण पर विशेष ध्यान दें।
मंत्र जाप के लिए एक निश्चित संख्या निर्धारित करें।
मंत्र जाप से पूर्व आसन बिछाएँ और उस पर उत्तर/पूर्व की ओर मुख करके बैठें।
भगवान शिव का ध्यान कर मंत्र का जाप करें।
मंत्र का जाप रुद्राक्ष माला के साथ करें।
शिव गायत्री मंत्र
वैदिक ज्योतिष शास्त्र में शिव गायत्री का बड़ा महत्व है। जिस व्यक्ति की जन्म कुंडली में काल सर्प दोष हो तो उस व्यक्ति के लिए शिव गायत्री मंत्र का जाप वरदान होता है। काल सर्प दोष जन्म कुण्डली में स्थित एक ऐसा दोष है जिसके कारण पीड़ित व्यक्ति को आर्थिक हानि, शारीरिक कष्ट और संतान संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस दोष के प्रभाव से जातक या तो निःसंतान रहता है या फिर उसकी संतान शारीरिक रूप से बहुत ज़्यादा कमज़ोर होती है। इस दोष से बचने के लिए शिव गायत्री मंत्र अचूक उपाय है।
शिव गायत्री मंत्र
*‘ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात।’*
मंत्र को जपने की विधि
इस मंत्र को सोमवार के दिन जपना चाहिए।
मंत्र का शुद्ध उच्चारण करें।
मंत्र जाप से पूर्व आसन बिछाएँ और उस पर उत्तर/पूर्व की ओर मुख करके बैठें।
भगवान शिव का ध्यान कर मंत्र का जाप 108 बार करें।
मंत्र का जाप रुद्राक्ष माला के साथ करें।
इस मंत्र को कोई भी जप सकता है।
मनोवांछित फल पाने के लिए जपें श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र
श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र के जाप से व्यक्ति की मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। यह शिव स्तोत्र शिव का पंचाक्षरी मंत्र ॐ नमः शिवाय पर आधारित है। परमपूज्य श्री आदि गुरु शंकराचार्य ने शिव जी की स्तुति के लिए इस स्तोत्र की रचना की थी। कहते हैं कि इस मंत्र को जपने से शिव जी शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं और जपने वाले व्यक्ति को तीर्थों में किया जाने वाला स्नान के समान पुण्य की प्राप्ति होती है।
*श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र*
नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मै न काराय नम: शिवाय:॥
मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय
मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मै म काराय नम: शिवाय:॥
शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय
श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै शि काराय नम: शिवाय:॥
अवन्तिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम्।
अकालमृत्यो: परिरक्षणार्थं वन्दे महाकालमहासुरेशम्।।
मंत्र की उच्चारण विधि
इस मंत्र का उच्चारण सही होना चाहिए।
भगवान शिव का स्मरण करते समय आप एक रुद्राक्ष की माला के साथ लें।
इस मंत्र को 11 या फिर 21 बार उच्चारण कर सकते हैं।
मंत्र जाप करते समय पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख होना चाहिए।
जप के पूर्व शिवजी को बिल्व पत्र अर्पित करना चाहिए और उनका जलाभिषेक करना चाहिए।
शिव तांडव स्तोत्र
शिव के भक्तों में रावण का नाम सबसे पहले आता है। शास्त्रों के अनुसार, रावण ने भगवान शिव की स्तुति करने के लिए शिव तांडव स्तोत्र की रचना की थी। इसी स्तोत्र के जाप से ही उन्हें भगवान शिव की असीम कृपा प्राप्त हुई। कहने का यह तात्पर्य है कि शिव मंत्र में इतनी शक्ति है, जिसके जाप से व्यक्ति शिवजी का कृपा पात्र बन जाता है। शैव मत के अनुसार, शिव तांडव स्तोत्र अपने काव्य-शैली के कारण अधिक लोक प्रिय है। यह काव्य और छन्द रूप में लिखा गया है। इसकी संगीतमय ध्वनि शिवभक्तों में प्रचलित है। लेकिन इसमें उपयोग किए गए शब्द कठिन अवश्य हैं।
*शिव तांडव स्तोत्र*
जटाटवीग लज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डम न्निनादवड्डमर्वयं
चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम ॥1॥
जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी ।
विलोलवी चिवल्लरी विराजमानमूर्धनि ।
धगद्धगद्ध गज्ज्वलल्ललाट पट्टपावके
किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥2॥
धरा धरेंद्र नंदिनी विलास बंधुवंधुर-
स्फुरदृगंत संतति प्रमोद मानमानसे ।
कृपाकटा क्षधारणी निरुद्धदुर्धरापदि
कवचिद्विगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥3॥
जटा भुजं गपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा-
कदंबकुंकुम द्रवप्रलिप्त दिग्वधूमुखे ।
मदांध सिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदद्भुतं बिंभर्तु भूतभर्तरि ॥4॥
सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर-
प्रसून धूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः ।
भुजंगराज मालया निबद्धजाटजूटकः
श्रिये चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः ॥5॥
ललाट चत्वरज्वलद्धनंजयस्फुरिगभा-
निपीतपंचसायकं निमन्निलिंपनायम् ।
सुधा मयुख लेखया विराजमानशेखरं
महा कपालि संपदे शिरोजयालमस्तू नः ॥6॥
कराल भाल पट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके ।
धराधरेंद्र नंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक-
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने मतिर्मम ॥7॥
नवीन मेघ मंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर-
त्कुहु निशीथिनीतमः प्रबंधबंधुकंधरः ।
निलिम्पनिर्झरि धरस्तनोतु कृत्ति सिंधुरः
कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥8॥
प्रफुल्ल नील पंकज प्रपंचकालिमच्छटा-
विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥9॥
अगर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी-
रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम् ।
स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं
गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥10॥
जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुर-
द्धगद्धगद्वि निर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्-
धिमिद्धिमिद्धिमि नन्मृदंगतुंगमंगल-
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥11॥
दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंग मौक्तिकमस्रजो-
र्गरिष्ठरत्नलोष्टयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥12॥
कदा निलिंपनिर्झरी निकुजकोटरे वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन् ।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥13॥
निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-
निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं
परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥14॥
प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी
महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम् ॥15॥
इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं
पठन्स्मरन् ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम् ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नांयथा गतिं
विमोहनं हि देहना तु शंकरस्य चिंतनम ॥16॥
पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं
यः शम्भूपूजनमिदं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां
लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥17॥
शिव तांडव स्तोत्र को जपने से व्यक्ति को सिद्धि प्राप्त होती है। यदि कोई व्यक्ति शिव तांडव स्तोत्र को सच्चे हृदय और शुद्ध उच्चारण के साथ विधि अऩुसार जपे तो उसका जीवन कल्याणमय हो जाता है।
इस तरह, रावण के द्वारा रचा गया शिव तांडव स्तोत्र
पौराणिक कथा के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि एक बार रावण ने कैलाश पर्वत ही उठा लिया था और जब पूरे पर्वत को लंका ले जाने लगा तो, महादेव ने अपने अंगूठे से तनिक सा जो दबाया तो कैलाश जहां था फिर वहीं अवस्थित हो गया। इस दौरान पर्वत से रावण का हाथ दब गया और फिर उसने शिव जी से क्षमा याचना की। साथ ही उनकी स्तुति गान करने लगे। उनकी यही स्तुति कालांतर में शिव तांडव स्तोत्र कहलाया।
शिव तांडव स्तोत्र की पाठ विधि
प्रातः काल या प्रदोष काल में शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करना सर्वोत्तम माना है।
पहले शिव जी को प्रणाम करके उन्हें धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें।
इसके बाद शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करें।
अगर नृत्य के साथ इसका पाठ करें तो सर्वोत्तम होगा।
पाठ के बाद शिव जी का ध्यान करें और अपनी प्रार्थना करें।
शिवाष्टक
शिवाष्टक शिव जी की आराधना में पढ़ा जाने वाला प्रभावशाली स्तोत्र है। शास्त्रों में इसे रुद्राष्टक भी कहते हैं। इस स्तोत्र की रचना आदि गुरु शंकराचार्य जी ने की थी। तुलसी दास जी ने भी ‘राम चरित मानस’ में शिवाष्टक का वर्णन किया है। इसे आठ पदों में विभाजित किया गया है। इसका पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में आने वाली विपदाएँ दूर हो जाती हैं। श्रावण में यदि कोई शिव भक्त शिवाष्टक का पाठ करे तो उस व्यक्ति का भाग्य चमक जाता है।
– शिवाष्टक
प्रभुं प्राणनाथं विभुं विश्वनाथं जगन्नाथ नाथं सदानन्द भाजाम् ।
भवद्भव्य भूतेश्वरं भूतनाथं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडे ॥ 1 ॥
गले रुण्डमालं तनौ सर्पजालं महाकाल कालं गणेशादि पालम् । जटाजूट गङ्गोत्तरङ्गै र्विशालं,
शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडे ॥ 2॥
मुदामाकरं मण्डनं मण्डयन्तं महा मण्डलं भस्म भूषाधरं तम् । अनादिं ह्यपारं महा मोहमारं,
शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडे ॥ 3 ॥
वटाधो निवासं महाट्टाट्टहासं महापाप नाशं सदा सुप्रकाशम् । गिरीशं गणेशं सुरेशं महेशं,
शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडे ॥ 4 ॥
गिरीन्द्रात्मजा सङ्गृहीतार्धदेहं गिरौ संस्थितं सर्वदापन्न गेहम् । परब्रह्म ब्रह्मादिभिर्-वन्द्यमानं,
शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडे ॥ 5 ॥
कपालं त्रिशूलं कराभ्यां दधानं पदाम्भोज नम्राय कामं ददानम् । बलीवर्धमानं सुराणां प्रधानं,
शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडे ॥ 6 ॥
शरच्चन्द्र गात्रं गणानन्दपात्रं त्रिनेत्रं पवित्रं धनेशस्य मित्रम् । अपर्णा कलत्रं
सदा सच्चरित्रं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडे ॥ 7 ॥
हरं सर्पहारं चिता भूविहारं भवं वेदसारं सदा निर्विकारं। श्मशाने वसन्तं मनोजं दहन्तं,
शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडे ॥ 8 ॥
स्वयं यः प्रभाते नरश्शूल पाणे पठेत् स्तोत्ररत्नं त्विहप्राप्यरत्नम् । सुपुत्रं सुधान्यं
सुमित्रं कलत्रं विचित्रैस्समाराध्य मोक्षं प्रयाति ॥
शिवाष्टक स्तोत्र की पाठ विधि
प्रातः काल या प्रदोष काल में इसका पाठ करना चाहिए।
पहले शिव जी को प्रणाम करके उन्हें धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें।
इसके बाद स्तोत्र का पाठ करें।
शिवाष्टक का पाठ सोमवार के दिन करना चाहिए।
पाठ करते समय महादेव का ध्यान करना चाहिए।
शंकर जी की पूजा करते समय इन बातों अवश्य रखें ध्यान
सबसे पहले भगवान् गणेश की पूजा अवश्य करें।
शिवजी की पूजा सप्ताह में एक बार शिव मंदिर में जाकर अवश्य करें।
भगवान् शिव को दूध, बिल्व पत्र, धतूरा भांग अर्पित करें।
भगवान शिव को शंख से जल, नारियल का पानी, हल्दी, केतकी के फूल, और कुमकुम कभी भी नहीं चढ़ाना चाहिए।
