बीकानेर/ साहित्य अकादेमी नई दिल्ली के तत्वावधान में कवि संधि कार्यक्रम के तहत हिन्दी-राजस्थानी के कवि राजेन्द्र जोशी का राजस्थानी काव्यपाठ का आनलाइन कार्यक्रम सोमवार को आयोजित किया गया । कार्यक्रम के प्रारंभ में अकादेमी की और से स्वागत करते कार्यक्रम प्रभारी ज्योति कृष्ण वर्मा ने कवि राजेन्द्र जोशी का साहित्यक परिचय प्रस्तुत किया, इस अवसर पर वर्मा ने कहा कि कविता विचारों और संवेदना की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है , वर्मा ने जोशी की कविताओं पर टिप्पणी करते हुए कहा कि जोशी एक संवेदनशील कवि हैं वह वैचारिक रूप से प्रतिबद्ध कवि होने के साथ-साथ जातिवाद, साम्प्रदायिक असहिष्णुता के खतरों को समझते हैं । वर्मा ने कहा कि जोशी का कवि मन नास्तिक नहीं है । उन्होंने ने कहा कि जोशी की कविताओं में आस पास का परिवेश स्पष्ट दिखाई देता है तथा इनकी कविताओं में ओढ़ी हुई बौद्धिकता नहीं है, उन्होंने जोशी को गम्भीर रचनाकार बताते हुए कहा कि जोशी के चार कविता संग्रह एवं दो कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके है ।

इस अवसर पर कवि-कथाकार राजेन्द्र जोशी ने लगभग दर्जन भर राजस्थानी कविताओं का वाचन करते हुए माँ शीर्षक कविता से पढ़ना प्रारंभ करते हुए माँ-दोय कूड़ो है औ संसार, इण माथै पाप री छियां है, अबोट अर अछूती है इण धरती माथै म्हारी मां री छियां । ,मूरत्यां, शीर्षक कविता में अचरज हुवै, जद मूरत्यां मोह नीं राखै । सुण म्हारा इस्ट , मैंधी रा हाथ , में कवि कहते हैं कि हाथां मांय मांड रैयी है बा छोरी मैंधी । छोरी रो सुपनो ,

कोट गेट रो भायलो , कविता के माध्यम से कवि मालिक और मजदूर के रिश्तों की बानगी प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि बण रैयी है एक हवेली लांबी अर फूठरी स्हैर री गळियां मांय,।

रेत – छव कविता के माध्यम से कवि रेत की खूबसूरती को प्रकट किया कित्तो धीजो राखै हिवड़ै री गैराई मांय इण तपतै जेठ रै दोपारै ।

पाळसिया कविता में दरख्त और पतझड़ के साथ चिड़ियों की प्यास की चिंता करते हैं । ,नीं मांडणो अड़ो इंदर री उडीक ,रेत – 4 ,रेत – 8 ,तिरसा किरसा कविता में कवि आड़तियों द्वारा किसानों को लूटने का बखान करते हुए किसानों का दर्द की पैरवी करते हैं । दिन रा सुपना राजस्थानी कविताओं की प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया । कार्यक्रम में साहित्य अकादेमी में राजस्थानी भाषा परामर्श मंडल के संयोजक मधु आचार्य ने आभार प्रकट किया ।