प्रख्यात व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई ने व्यक्ति और समाज में उपस्थित विसंगति को सामने लाले में व्यंग्य को सहायक माना है। उनका यह भी मानना था कि व्यंग्य जीवन से साक्षात्कार कराता है, जीवन की आलोचना करता है, विसंगतियों, मिथ्याबातों और पाखण्डों का पर्दाफाश करता है। यदि हम परसाई जी के विचारों की दृष्टि से वरिष्ठ एवं चर्चित व्यंग्यकार श्री फारूक आफरीदी के नवीनतम व्यंग्य संग्रह ‘धन्य है आम आदमी’ की बात करें तो हमें लगेगा कि व्यंग्यकार ने परसाई जी द्वारा जिन बातों की ओर संकेत किया है वे सभी इस संग्रह में सम्मिलित कुल इकतालीस व्यंग्यों में किसी न किसी रूप में अवश्य ही परिलक्षित होती है। लेखक स्वयं जनसंपर्क सेवा से लम्बे समय तक जुड़े रहे हैं, उन्होंने प्रशासन तन्त्र और सत्ता के गलियारों को बहुत नजदीक से देखा है। वर्तमान में भी वे राजस्थान के मुख्यमंत्री के विशेषाधिकारी हैं।
जब कोई व्यंग्यकार जिस परिवेश में वह रहता है, उस परिवेश पर उसकी व्यंग्य दृष्टि अवश्य ही जाती है। यही व्यंग्य दृष्टि इस संग्रह में सम्मिलित व्यंग्यों में स्पष्ट नजर आती है। आफरीदी जी वरिष्ठ साहित्यकार है इसलिए साहित्य भी उनकी व्यंग्य दृष्टि से बच जाए यह कैसे संभव था?
इस संग्रह में अधिकांश व्यंग्य राजनीति एवं साहित्य से जुडे़ हैं आम जन-जीवन और समाज में व्याप्त विसंगतियां भी उनकी नजर से बच नहीं सकी हैं। इस सभी को केेन्द्र बिन्दु मानकर जो व्यंग्य रचे गये हैं उनकी प्रस्तुति में भी विविधता विद्यमान है। कहीं पर वे व्यंग्य की परम्परागत निबन्ध शैली में व्यंग्य करते हैं तो कहीं कहानी, नाटक, साक्षात्कार, पत्र लेखन, आप बीती आदि के रूप में अपने व्यंग्यबाण छोड़ते हैं। इन सभी व्यंग्यों में एक बात कोमन है, वह है व्यंग्यों की भाषा शैली और प्रभावी प्रस्तुति। इनमें अनावश्यक शब्दाडम्बर नहीं है। आम पाठक आसानी से व्यंग्य के माध्यम जहां चोट की जा रही है,वहां तक पहुंच सकता है। कहीं पर भी उसे अपने दिमाग पर अनावश्यक जोर देने की जरुरत नहीं पड़ती। यह सहज सम्प्रेषणीयता ही पाठक को पूरी पुस्तक में बांध कर रखती है। मेरी नजर में यही व्यंग्यकार की सफलता है।
राजनीति से जुड़े व्यंगों में व्यंग्यकार ने सता के खेल मेें जो-जो कारस्तानियां होती है, उनको खुलकर उजागर किया है। उनके राजनीति से जुडे़ व्यंग्यों में पुस्तक के शीर्षक का व्यंग्य धन्य है आम आदमी, कुर्सियाने की बाद की कथा,लोकतंत्र को कोई खतरा नहीं, नेताजी का विन्रम आदेश, सरकार से साक्षात्कार, नेताजी का एक्शन प्लान, मतदाता के नाम नेताजी का पत्र, गुड गवर्नेंस आदि विशेष उल्लेखनीय है। इनमें उन्होंने सता के गलियारे में होने वाली खरीद फरोख्त, दलबदल,मतदाताओं के छले जाने जैसी बातों को बड़ी बेबाकी से उठाया है।
साहित्य जगत और उसमें होेने वाली हलचल पर भी व्यंग्यकार की पैनी दृष्टि गयी है। उन्होंने तथाकथित ख्यातनाम साहित्यकारों द्वारा किये जाने वाले आचार-विचार,व्यवहार और साहित्य के विविध पहलुओं में आयी विसंगतियों और विद्रुपताओं पर खुलकर कलम चलायी है। साहित्य से जुड़े व्यंग्यों में शॉल तो ओढ़नी है, कुंठा प्रधान लेखक, उमंग भरे उठावने, वे लेखक हैं जो लिखते-लिखते ही है पढ़ते नहीं, सम्बधों के सौदागर जैसी रचनाएं साहित्य और समाज को आईना दिखाने वाली प्रतीत होती है।
इनके अतिरिक्त बुद्धि का बफर स्टॉक , चेहरा बदलने की कवायद, जीवन संजीवनी है ‘भड़ास’ , असत्यमेव जयते, हिन्दी डे, इण्डिया स्लोगन डॉटकॉम, गुरुजी का तबादला और मैं भ्रष्ट हूं आदि व्यंग्यों में प्रशासनतन्त्र और आम जनजीवन में व्याप्त विसगंतियों की और इशारा करती व्यंग्य रचनाएं है। संग्रह के व्यंग्यों की भाषा का प्रवाह ऐसा है कि एक बार  शुरु की गई रचना को अंत तक पढ़े बिना पाठक उसे छोड़ नहीं पाता। कुल मिलाकर फारूक आफरीदी का यह व्यंग्य संग्रह समकालीन व्यंग्य को समृद्ध करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करता है।
पुस्तक एक नजर
पुस्तक : धन्य है आम आदमी
लेखक : फारूक आफरीदी
मूल्य : 180 रुपये,
पृष्ठ: 128
प्रकाशक: कलमकार मंच, जयपुर
समीक्षा: प्रोफेसर डॉ. अजय जोशी
संपादक- मरु नवकिरण
बिस्सों का चौक, बीकानेर 334001 राजस्थान
मो. 9414968900