

_संसारी दो कारणों से दुखी, एक अर्थ का अभाव और दूसरा उसका प्रभाव –
_संयम सिद्धी के लिए इन्द्रियों पर नियंत्रण जरूरी-
बीकानेर। महापुरुष फरमाते हैं, इन्द्रियां हमारी विनाशी और अविनाशी है। यह विनाशी को ग्रहण करती है और विनाशी पर फिदा हो जाती है। महापुरुष कहते हैं कि अविनाशी तत्वों को जानो। अविनाशी कौन है..?, हमारी आत्मा अविनाशी है। जिसमें क्षण-क्षण परिवर्तन होता है वह विनाशी है और जिसमें परिवर्तन नहीं होता है वह अविनाशी होता है। श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के 1008 आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने सोमवार को सेठ धनराज ढ़ढ्ढा की कोटड़ी में चल रहे नित्य प्रवचन के दौरान साता वेदनीय कर्म के छठे बोल इन्द्रियों का दमन करता जीव विषय पर व्याख्यान देते हुए विनाशी और अविनाशी (आसक्ति- अनासक्ति) में भेद बताए तथा साधना का मूल लक्ष्य क्या होना चाहिए..? और साधना से मिलने वाले लाभ के बारे में श्रावक-श्राविकाओं को जानकारी दी।
महाराज साहब ने कहा कि हमारी साधना का मूल लक्ष्य क्या होना चाहिए..?, इसका प्रतिउत्तर देते हुए आचार्य श्री ने कहा कि आसक्ति को घटाना और अनासक्ति को बढ़ाना हमारी साधना का लक्ष्य होना चाहिए। जो सुख-शांति, आनन्द- चैन अनासक्ति में है वह आसक्ति में नहीं है।
जैसे- भूखे व्यक्ति को रूचिकर भोजन भरपेट करवा दिया जाए और उसके बाद उसे कुछ और मिठाई- नमकीन आदि खाने के लिए कहा जाए तो वह क्या करेगा..?, निश्चित ही वह ना..ना.., करेगा। लेकिन अगर आप उसे जर्बदस्ती करेंगे तो उसका जवाब होगा कि मेरा पेट भरा हुआ है, मुझे अब दुखी मत करो। बंधुओ इसे ही आसक्ति और अनासक्ति कहते हैं। ठीक इसी प्रकार हमें भी यह चिंतन करना है।
आचार्य श्री ने कहा कि अविनाशी सुख,चिंतन, ज्ञान, श्रद्धा, चरित्र से प्राप्त होता है। इससे हमें अरुचि पैदा नहीं होती बल्कि लालसा बढ़ती जाती है। जैसे- जिसे दो पूरब का ज्ञान होता है, वह सोचता है मुझे चार पूरब का ज्ञान कब होगा। इस प्रकार वह बढ़ता रहता है। महाराज साहब ने कहा कि विनाशी सुख कभी अच्छा नहीं होता, जब तक विनाशी आत्मा जगेगी नहीं, अविनाशी सुख की प्राप्ति नहीं होगी ।
आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने कहा कि संसारी के दुख के दो कारण होते हैं। एक अर्थ का अभाव और दूसरा अर्थ का प्रभाव है। इन दो कारणों से व्यक्ति को सुख नहीं मिलता है। वह कोई ना कोई कारण से प्रभावित रहता है। महाराज साहब ने कहा बंधुओ, इस प्रभाव से मुक्त होने का प्रयास करो, जितना लगाव आप भोजन से, कपड़ों से, मकान से, परिवार से और रिश्तेदारों से रखते हैं, उतना लगाव आप धर्म स्थल से गुरु से, संतो से रखा करो। अगर यह भाव पैदा हो जाए तो मन में अरूचि पैदा नहीं होगी। लेकिन आप तो रोटी, कपड़ा,मकान, रिश्तेदार, संपत्ति को नहीं छोड़ेंगे। हां, प्रवचन, गुुरु दर्शन, सत्संग छूटे तो छूटे,कुछ ना कुछ तैयार ही रहता है। महाराज साहब ने कहा बापजी, आज यह काम है, बापजी कल यह काम हो गया। ऐसा नहीं, रोज यह करो, सत्संग सुनो, प्रवचन का लाभ लो।
इन्द्रियों का बंध करो
महाराज साहब ने कहा कि अविनाशी आत्मा को बोल कर भी जगाया जाता है। अविनाशी आत्मा जग गई तो बंधुओ अविनाशी सुख की प्राप्ति हो जाएगी। ज्ञानीजन कहते हैं साता वेदनीय कर्म का बंध करना चाहते हैं तो इन्द्रियों का बंध करें। राजा भर्तुहरी ने तो यहां तक कहा कि हाथी को, स्त्री को, बालक और शिष्य एवं इन्द्रियों को अंकुश में रखना चाहिए। यह अंकुश में रहेंगे तो किसी का बिगाड़ बिगाड़ नहीं कर सकते, नहीं तो बिगाड़ करने लग जाएंगे।
अंकुश नहीं तो कुछ नहीं
महाराज साहब ने सम्राट सिकंदर का एक प्रसंग सुनाते हुए कहा कि सिकंदर कभी हाथी पर नहीं बैठा था। एक दिन उसके मन में हाथी की सवारी करने का विचार आया। उसने अपने महावत से कहा कि तुम नीचे उतर जाओ और इस हाथी की लगाम मेरे हाथ में दे दो। इस पर महावत ने कहा कि महाराज हाथी के लगाम नहीं होती, लगाम तो घोड़े की होती है । हाथी के तो अंकुश होता है और यह महावत के ही हाथ में रहती है, हाथी पर बैठने वाले को तो पीछे ही बैठना पड़ता है। यह सुन सिकंदर बोला, यह क्या बात हुई..?, जिसकी सवारी करनी है, उसकी लगाम मेरे हाथ में नहीं है तो उसकी सवारी क्या करना!, कहते हैं कि यह कहकर सिकंदर हाथी से नीचे उतर गया। आचार्य श्री ने कहा कि हमें भी अपने ऊपर अंकुश रखना चाहिए। इन्द्रियों पर हमारा स्वयं का नियंत्रण होना चाहिए। जो अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण नहीं रख सकता, वह संयम क्या रखेगा। लेकिन जो इन्द्रियों पर नियंत्रण करता है, वह संयम को सिद्धी को प्राप्त कर लेता है।
श्रावक संघ ने की चातुर्मास की मांग
श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के अध्यक्ष विजयकुमार लोढ़ा ने बताया कि सोमवार को उदयपुर और मंगलवाड़ का युवा संघ एवं इरोड़ तथा अन्य स्थानों से श्रावकों का आगमन हुआ। उदयपुर संघ ने आचार्य श्री से अगला चातुर्मास उदयपुर में करने की महत्ती कृपा करने का आग्रह किया तथा अन्य भी संघ के कार्य उदयपुर में करने पर सभी व्यवस्थाओं को सुचारू रूप से संचालित करने का विश्वास दिलाया। उदयपुर संघ ने स्थानीय संघ की आवास, भोजन, परिवहन सहित अन्य व्यवस्थाओं का सुनियोजित ढंग से क्रियान्वयन होने पर स्थानीय संघ का आभार माना एवं सराहना की। इस अवसर पर चौविहार संथारा कर रहे कन्हैयालाल भुगड़ी की 26 की तपस्या गतिमान होने पर आचार्य श्री से आशीर्वाद लिया और नेहा देवी सोनावत के नौ की तपस्या पूर्ण होने पर वंशीका बरडिय़ा ने अनुमोदन प्रस्तुत की, वहीं मिन्नी परिवार की ओर से भजन ‘अभिनंदन-अभिनदंन, मासखमण का अभिनंदन’ प्रस्तुत किया।
आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने ‘चांदनी ढ़ल जाएगी, काया जल जाएगी, माया आ विलासी रे, जाग अविनाशी रे, वीतराग वाणी है, सद्गुरु ज्ञानी है, कद-कद पासी रे, दया, धर्म धार ले, ममता ने पाल ले, शिव सुख पासी रे गाया।
