जयपुर।प्रताप नगर सेक्टर 8 दिगंबर जैन मंदिर में चल रहे आचार्य सौरभ सागर महाराज ने गुरुवार को धर्मसभा को संबोधित करते हुए अपने आशीर्वचनों ने कहा की – मोह रूपी अंधकार का नाश हो गया हो, मिथ्यातव की छट गयी हो, अज्ञान का कुहासा समाप्त हो गया हो, मिथ्यात्व की अमावस्या का अपहरण हो गया हो, सम्यक् दर्शन का लाभ हो गया हो, सम्यक् ज्ञान का सूर्य आत्मकाश में उदित हो गया हो, तो वह राग द्वेष से निवृत होने के लिए साधु चरण को, चरित्र के चरण को स्वीकार कर लेता है ; क्योंकि सम्यक् दर्शन श्रद्धा को और सम्यक् ज्ञान, चरित्र को जन्म देती है।

आचार्य सौरभ सागर ने कहा की – रोग का शमन हो जाए तो कमजोरी दूर करने के लिए टॉनिक लेना आवश्यक है। उसी प्रकार अज्ञान का शमन हो जाए तो चरित्र को अंगीकार करना आवश्यक है। आचरण जीवन की महान सम्पदा है और स्वर्ग, मोक्ष, सुख का दाता है। जिसके जीवन में सदाचार, धर्म, अहिंसा, चारित्र का अभाव हो जाता है। उसके जीवन का आनंद स्त्रोत सुख जाता है। सदाचरण युक्त मनुष्य इस धरती का देवता तुल्य होते है, इसलिए भगवान महावीर ने आचरणवान को ही श्रेष्ठता के उच्च शिखर पर बैठाया है।