-शिक्षकों का ज़िले में अपमान अब बर्दास्त से बाहर.

-दौने पत्तल गिनवाए जा रहे शिक्षकों से

-डोटासरा जी आगे चुनाव जीतने हैं या नही?

– गरीब की जोरू सबकी भाभी!

कोरोना ऐतिहासिक कामयाबी की ओर। भारत में पॉजिटिव का आंकड़ा 2 लाख के पार राजस्थान भी बराबर बढ़त बनाए हुए। हर रोज़ बढ़ रही है मरीजों की संख्या । इधर कोरोना का सामना करने के लिए राजस्थान में रोडवेज बसों में यात्रियों के साथ कोरोना वायरस भी करेगा निशुल्क यात्रा। आगामी 8 जून से शायद मंदिर मस्जिद भी पूर्ण रूप से खुल जाएं। डिस्टेंसिंग की बारह बजाने के लिए इबादतगाहों में ख़ुद हाज़िर रहेगा कोरोना।वायरस तबर्रुक़ और प्रसाद में होगा तक़सीम। यह सब कोरोना फेस्टिवल की हाइलाइट्स है।इसके बाद शिक्षण संस्थाओं को खोले जाने की तैयारी ।अध्यापक अध्यापिकाओं के लिए एक बुरी खबर। अब उन्हें फालतू कामों के साथ-साथ स्कूलों में पढ़ाई भी करानी होगी।मास्टर साहब मास्टरनियों की सांसें फूलने लगी हैं।

कलेजा निकल कर मुंह में आ रहा है।फैफड़े फूल रहे हैं। उनका दिल कह रहा है कि काश! हम सफाई मजदूर होते !कम से कम हमारा काम सिर्फ सफाई करना तो होता।यहां तो गरीब की जोरू सबकी भाभी!! जिस देवर के मन में आए भाभी की ले ले। मेरा मतलब क्लास से है।आज ही के अखबारों में शिक्षक नेताओं ने आवाज़ उठाई है। फिर से पूर्व शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी ने अपनी राजनीति को शिक्षकों की आड़ में चमकाया है। वर्तमान शिक्षा मंत्री डोटासरा कह रहे हैं कि देवनानी छिछोरी राजनीति पर उतर आए हैं। डोटासरा जी की दिक्कत यह है कि उनकी पकड़ शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों पर है ही नहीं। यही वज़ह है कि वे हवा को मुट्ठी में भर कर घूमते रहते हैं।

यह कहते हुए कि उनकी मुट्ठी खुश्बू वाली रेत है।देवनानी चतुर और मंझे हुए राजनेता हैं। वे शिक्षा मंत्री भी रह चुके हैं। इसलिए उनकी पकड़ मजबूत और आक्रमण करने की क्षमता ज्यादा बेहतर है।अजमेर के शिक्षक नेता झाऊ चूहे हैं। कांटो वाले शरीर से डराते तो हैं मगर हमला नहीं करते। सरकारी गुलामी करते हुए उनकी शक्ति सिर्फ विज्ञप्तियों में ही सिमट कर रह गई है।यही वजह है कि उन्हें पिछले दिनों देवी भक्त मुख्य शिक्षा अधिकारी देवी सिंह कच्छावा के हाथों शिकस्त खानी पड़ी। दर्ज़ हुआ मुक़दमा अभी तक वापस नहीं हुआ है। तलवार उनकी गर्दन पर लटकी हुई है।देवनानी जी ने ” मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा” वाला शास्त्री गाना गा दिया है।कांग्रेस विधानसभा प्रत्याशी ( अगले चुनाव तक ) महेंद्र सिंह रलावता और हेमंत भाटी ने पिछले दिनों शिक्षक नेताओं को अपनी खुशबूदार गोद में बैठाने की कोशिश की थी। कुछ नेता बैठ भी गए थे। मगर देवनानी ने उन्हें फिर से हथेली पर सरसों उगी हुई दिखाकर चुप करा दिया है।इधर पूर्व शिक्षा राज्यमंत्री नसीम अख्तर खामोश बैठी हैं। पुष्कर जाकर जन्मदिन मना कर लौटी हैं। अलीबाबा चालीस चोर की कहानी का नाट्य रूपांतर अजमेर में चल रहा है।

यहाँ जिसकी पूंछ उठाओ वही मादा है।यही अजमेर के नेताओं का तक़ादा है। शिक्षकों की जिले में घोड़ी बनी हुई है। देवी सिंह कछावा अब देवी सिंह छलावा है। हवा में लाठी बाजी करना उनका पुराना शौक़ रहा है जिसका राज उसका कामकाज ! उसी के सर पर ताज़!! उसी का राजकाज!! इसी बीच देवनानी जी की खाज़!! वाह उस्ताद वाह! क्या तुकबंदी है। मास्टरों की नौकरी भी एक तरह की नसबंदी है। जिले की राजनीति बड़ी गंदी है। हर शिक्षक मसीह किश्तों में बंदी हैं।तो आइए बात करें बेचारे हुए शिक्षकों की उनको गन्ने की मशीन में कोई भी पेल देता है। बेचारा शिक्षक उड़ता तीर भी झेल लेता है।शिक्षा विभाग में पिछले दिनों जितने बेतुके आदेश जारी हुए उन पर यदि नज़र डाली जाए तो यह शिक्षा विभाग भिक्षा विभाग बन चुका है और मजबूर शिक्षक भिक्षार्थी।
कोरोना महामारी के समय में पढ़ाने के अलावा शिक्षकों ने बाकी सारे काम किए । कपड़े धोने, बर्तन मांजने और बिस्तर लगाने के अलावा कौन सा काम शिक्षकों ने नहीं किया।वश चलता तो विभाग यह सारे काम भी शिक्षकों से करवा लेता। नौकरी करनी है तो करो! वरना ट्रांसफर करवा कर कहीं और चले जाओ। बेचारे किस्मत के मारे टीचर करें भी तो क्या?मैं आपको बता दूँ कि शिक्षकों से क्या-क्या करवाया गया। मनरेगा में श्रमिकों की निगरानी!! टिड्डियों को भगाने का काम!! रेलवे स्टेशन पर मजदूर प्रवासियों को भेजने का काम!! रेलवे की टिकट बनाना!!

क्वॉरेंटाइन सेंटरों की निगरानी! वहां ठहरे हुए मजदूरों के लिए मनोरंजन करने का काम यानी डांस डांस !! शादी समारोह में डिस्टेंसिंग करवाने का काम !! मृत्यु भोज पर दोने पत्तल गिनने का काम !! कोरोना का सर्वे!! होम आइसोलेशन वालों की निगरानी!! गांव में सरपंचों को खुश करने की नैतिक जिम्मेदारी!! अधिकारियों की सख्त नज़रों से बचने का काम !! यह तो वे काम हैं जो बाकायदा लिखित आदेशों से करवाए गए।यदि इन शिक्षक शिक्षिकाओं से व्यक्तिगत पूछा जाए तो जांच और भी गंभीर हो सकती है। सूरज मार गर्मी में जब प्राइवेट स्कूल के अध्यापक घर बैठे ऑनलाइन पढ़ाई करवा रहे थे तब यह सरकारी मसीहा डामर की पिघलती सड़कों पर फाइलें उठाए इधर से उधर शंटिंग कर रहे थे। इनमें सिर्फ शिक्षक ही नहीं शिक्षिकाएं भी शामिल थीं।आखिर किस जन्म में इन्होंने क्या गुनाह किया जो इन्हें शिक्षक योनि में जन्म मिला? नौकरी की मजबूरी इतनी कमज़र्फ हो जाती है यह कोई सोच भी नहीं सकता।मैं शिक्षकों का तहे दिल से सम्मान करता हूँ। चाहता हूँ कि समाज में उनकी प्रतिष्ठा प्रशासनिक अधिकारियों से ज्यादा हो जाए! क्योंकि उनके द्वारा ही प्रशासनिक अधिकारी बनाए जाते हैं !! आज जहां जो आसमान का तारा बना हुआ है, वह इन्ही शिक्षकों की वजह से है।इनके सम्मान को जिस तरह कुचला जा रहा है, वह एक सामाजिक अपराध है। सरकार कोई भी आए जाए। इन शिक्षकों की चुनाव में जो भूमिका होती है, वह ना भूली जाए। शिक्षक सरकार तय करते हैं यहां ये बात नहीं भूलनी चाहिए। डोटासरा जी यदि आपकी नीति यही रही तो आप अपने विधानसभा में अगला चुनाव जीत नहीं पाएंगे। समय है अभी आप शिक्षकों से माफी मांगे और भविष्य में उनके लिए वही सेवाएं आदेशित करें जो उनकी सम्मान योग्य हों । मुझे उम्मीद है शिक्षा मंत्री व मुख्यमंत्री मेरी बात का ध्यान देंगे। नहीं देंगे तो मैं ये गाना गाऊंगा कि” तुम भी हो, हम भी हैं, दोनों हैं आमने सामने।