चंडीगढ़। शहर में बंदरों के आतंक को लेकर दायर जनहित याचिका का निपटारा कर पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय ने उन्हें हिंसक जानवर घोषित कर मारने की अनुमति से इनकार कर दिया। न्यायालय ने कहा ऐसा करना उनके प्रति क्रूरता होगी। मनीमाजरा के शिवालिक एनक्लेव निवासी दिव्यम ढ़ाकला ने याचिका दाखिल कर कहा था कि बंदरों के आतंक के चलते लोगों का जीना मुहाल हो गया है। बंदर अक्सर स्कूली बच्चों पर हमला कर टिफिन और बैग छीन लेते हैं। निगम ने बताया था कि वन विभाग के साथ मिलकर उन्होंने ज्वाइंट टास्क फोर्स बनाई है। 17 मार्च 2020 को हुई बैठक में लोगों द्वारा कचरे को खुले में फेंकने और बंदरों को भोजन देने को इस आतंक का मुख्य कारण बताया गया। एक्शन प्लान के बारे में जानकारी देते हुए बताया गया कि सरकारी इमारतों पर पंफलेट लगा बताया जाएगा कैसे बंदरों के आतंक से बचा जाए। साथ ही लोगों को बंदरों और उनकी आदतों के बारे में जागरूक करा जाएगा। बंदरों के आतंक से निपटने के लिए 24 घंटे 7 दिन की हेल्पलाइन हेतू 2 अतिरिक्त अटैंडेंट नियुक्त किए गए है जो 30 मिनट के भीतर शिकायत का निवारण करेंगे। बंदर पकड़ने के लिए विशेष पिंजरे लाए गए हैं और कई बंदरों को पकड़ कर सुखना वाइल्ड लाइफ सेंचुरी में छोड़ा गया है। वहां से बंदर वापस न आए इस लिए वहां फलदार वृक्ष लगाए जा रहे हैं।

-हिंसक जानवर घोषित करने की थी मांग
_याची ने उच्च न्यायालय से अपील की थी कि बंदर को हिमाचल की तर्ज पर हिंसक जानवर घोषित किया जाए। ताकि बंदर आतंक मचाए तो उस पर हमला किया जा सके। ऐसे हमले में यदि बंदर की मौत हो जाए तो उसे आत्मरक्षा माना जाए। उच्च न्यायालय ने इस सुझाव को क्रूर और कायरतापूर्ण बताते हुए इससे इनकार कर दिया।

– 6 माह में बताएं लोगों को बचाने के लिए क्या किया

उच्च न्यायालय ने ज्वाइंट टास्क फोर्स द्वारा लोगों को बंदरों के आतंक से राहत दिलाने के लिए बनाए गए एक्शन प्लान पर गंभीरता से काम करने का आदेश दिया है। साथ ही 6 माह में कितने बंदर पकड़े गए और कितनों को उनके प्राकृतिक निवास में छोड़ा गया इसकी जानकारी भी स्टेटस रिपोर्ट के माध्यम से दें।

– बढ़ जाए बंदरों की संख्या तो चलाओ नसबंदी अभियान

न्यायालय ने कहा कि बंदरों के आतंक के लिए लोग जिम्मेदार हैं और यह बंदरों का आतंक नहीं बल्कि लोगों द्वारा खुद बुलाई गई मुसीबत है। यदि बंदरों की संख्या बढ़ती है तो उनकी गणना के बाद उनकी नसबंदी के लिए केंद्र स्थापित किया जाए। ऐसा इसलिए भी जरूरी है ताकि सुखना सेंचुरी में रहने वाले अन्य जीवों के जीवन पर बंदरों की अधिक संख्या का दुष्प्रभाव न हो।