

एडवाकेट भंवरलाल बडगूजर बीकानेर संत शिरोमणि और मध्यकालीन भक्ति जागरण में हिन्दू समाज मे चेतना और अहिंसा की अलख जगाने वाले श्री पीपाजी महाराज झालावाड़ के गागरोन गढ़ के राजा थे । आपने राज्यसत्ता का त्याग कर स्वामी रामानंद जी से दीक्षा ली और संत कबीर के गुरू भाई बने।
ज्ञातव्य है कि पीपाजी महाराज के शासककाल में दिल्ली के तत्कालीन सुल्तान फिरोज शाह तुगलक ने आक्रमण कर दिया। महाराजश्री ने मुगलों से लोहा लेकर विजय हासिल की लेकिन युद्धजन्य उन्माद, हत्या, लूट-खसोट के वातावरण और जमीन से जल तक के रक्तपात को देख उनका हृदय भक्ति की ओर उनमुख हो गया। काशी जाकर स्वामी रामानंद शिष्यत्व ग्रहण किया। कठिन परीक्षा में सफल होकर वे स्वामी रामानंद के 12 प्रधान शिष्यों में स्थान पाकर संत कबीर के गुरुभाई बने। पीपाजी को निर्गुण भावधारा का संत कवि, समाज सुधार और विचारक-प्रचारक माना जाता है।
उनके द्वारा रचे गए दोहे और काव्य साहित्य हिंदू भक्ति जन जागरण काल की धरोहर है।
झालावाड़ के पास आहू और कालीसिंध नदी के किनारे बना प्राचीन जलदुर्ग गागरोन संत पीपाजी की जन्म और शासन स्थली रहा है। इसी के सामने दोनों नदियों के संगम पर उनकी समाधि, भूगर्भीय साधना गुफा और मंदिर आज भी स्थित हैं। उनका जन्म 14वीं सदी के अंतिम दशकों में गागरोनगढ़ के खीची राजवंश में हुआ था। वे गागरोन राज्य के एक वीर, धीर और प्रजापालक शासक थे। उन्होंने संत बनने के बाद कपड़े खुद सिले और अपने तमाम क्षत्रिय अनुयायियों को अहिंसा छोड़कर जीवन यापन के लिए सुई और धागे से सिलाई करने की नसीहत दी। इसलिए श्री पीपा क्षत्रिय समाज उन्हें अपना आराध्यदेव मानता है और संपूर्ण समाज द्वारा प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को उनकी जयंती धूमधाम से मनाई जाती है।