-सार्थक रक्तदान -ओम एक्सप्रेस

यह बात 02 अप्रैल 1991 की है। तब मैं हिसार स्थित अपने गाँव सीसवाल में सरपंच पद पर सेवाएं दे रहा था। घर के पड़ोस में नंबरदार रामकुमार नैण का घर था। आते जाते मैं उनसे नवण प्रणाम, राम-रमि कर लेता था। एक दिन अपने घर पर बैठा कुछ कार्य कर रहा था। अचानक मन में बैठे-बैठे उनसे मिलने की इच्छा हुई। मैं घर से उठकर रामकुमार नैण नंबरदार के पास चला गया। उन्होंने चाय-पानी का पूछा, जिसके उपरांत उन्होंने कहा, सरपंच, आ हिसार चलते हैं, वहाँ गाँव के मनफूल दावां का पोता बहुत बीमार है। पता नहीं बचेगा भी या नहीं। मैंने तुरंत जाने की हाँ कर दी। हम दोनों प्रातः 9:45 बजे वाली मोहब्बतपुर-हिसार वाया सीसवाल बस से हिसार को चल पड़े। रास्ते मेंं उसी बच्चे की चर्चा और गुरु महाराज से उसे ठीक करने की प्रार्थना की।

हिसार पहुँचने पर बस स्टैंड से पैदल ही ‘जैन चिल्ड्रन अस्पताल’ में पहुंचे जहाँ मनफूल जी दावां का पोता दाखिल था। वहाँ हमें पता चला कि बच्चे की हालत गंभीर है और रक्त की सख्त जरूरत थी। कोई भी रक्तदान को तैयार नहीं, सब डर रहे थे। तब स्थिति अब की तरह नहीं थी, रक्तदान करते लोग डरते भी थे।

मैंने डॉक्टर साहब से पूछा, “बच्चे का ब्लड ग्रुप क्या है?” डॉ. ने बताया, “सर, ए+ है। मेरा भी वही ब्लड ग्रुप था। मैंने बिना देर किए तुरंत कहा, “डॉक्टर साहब, मेरा ब्लड ग्रुप भी ए-पॉजिटिव है। मैं रक्त देने को तैयार हूं, जल्दी करो ले लो जितना लेना है।”

डॉ. ने हामी भरते हुए कहा कि ठीक है, फिर भी हम ब्लड ग्रुप की जांच कर लेते हैं। फिर उन्होंने रक्त टेस्ट करके ब्लड ग्रुप एक ही मिलने पर नियमानुसार एक यूनिट रक्त लिया और बताया कि “इसे कुछ समय ठंडा करना पड़ेगा”, कहकर लिया गया रक्त फ्रीज में लगा दिया। उधर बच्चे के माता-पिता और दादा-दादी भी थे। मुझे आशीष दिया और खुश हुए।लगभग दो-ढ़ाई घण्टे बाद बच्चे को रक्त चढ़ाया।

जिसके बाद आराम करने हेतु मैं और रामकुमार नैण नंबरदार श्री गुरु जम्भेश्वर मंदिर धर्मशाला में आराम करने हेतु आ गये। दिन में आराम के बाद हम रात को अस्पताल गये। अस्पताल में बच्चे को स्वस्थ देखकर मन को तसल्ली हुई।

दूसरे दिन हम सुबह सुबह अस्पताल गये तो देखा कि वह बच्चा बैड पर खेल रहा था। देखकर ऐसी प्रसन्नता हुई कि जो शायद ही जिंदगी में हुई हो। वह दिन मेरी जिंदगी का सबसे अच्छा दिन था, जो यह नश्वर शरीर किसी के काम आ रहा था।

दो तीन दिन बाद बच्चे के स्वस्थ होने पर अस्पताल से छुट्टी दे दी गई और वह अपने घर सीसवाल गाँव आ गया। रामकुमार नैण नंबरदार और बच्चे का दादा मनफूल जी दावां मेरे पास घर आये। आकर बच्चे का हालचाल बताया और मनफूल जी ने आभार व्यक्त कर कहा, “सरपंच, तेरा क्यूकर धन्यवाद करूं मैं, तूने तो खून देकर मेरे पोते की जान बचाई है। तेरा भगवान भला करे।” मैंने कहा, यह गुरु महाराज की कृपा ही है और मैं सौभाग्यशाली हूं जो मुझे यह मौका मिला।

तीनों बैठे चाय पीने लगे। आज चाय का स्वाद हर रोज से कुछ भिन्न था। शायद सुकून भरी मनोस्थिति का आभास था। स्थिति तन और मन दोनो क़ो सुहा रही थी।

उसके बाद भी जीवन में कई बार रक्तदान किया। रक्तदान कर एक सुखद अनुभूति ही प्राप्त होती है। स्वास्थ्य विभाग में भी रहते हुए प्रतिदिन अनेकों मरीजों के उपचार में मदद और देखभाल का अवसर प्राप्त हुआ। शुक्रगुजार हूं उस परमपिता परमात्मा का…..

(संलग्न: 03 अप्रैल 1991 के समाचार पत्र खबर)