

-कॉपियां आती है-भवानी निकेतन, कनोडिया, अलंकार और एलबीएस के लेक्चरर के पास, अधिकतर कोऑर्डिनेटर यहीं के
जयपुर-हरीश गुप्ता ।राज्य के सरकारी महाविद्यालयों से स्नातक व पीजी कर रहे छात्रों को पता नहीं कि उनकी कॉपियां सरकारी लेक्चरर न जांच कर प्राइवेट कॉलेजों के लेक्चरर जांच रहे हैं। ₹20 में वो कितना दिमाग लगाएंगे,यह समझ से परे है क्योंकि एक कॉपी जांचने के यूनिवर्सिटी ₹20 देती है।
सूत्रों की मानें तो लगभग सभी सरकारी यूनिवर्सिटी ने कॉपियां जांचने के लिए कोऑर्डिनेटर बना रखे हैं सबसे बड़ी बात यह है कि जो भी कोऑर्डिनेटर है, वे लंबे समय से हैं और सभी पहुंच वाले हैं, इसलिए चले आ रहे हैं। उन्हें यह भी पता रहता है कि कहां की कॉपी किसके पास है।
सूत्रों की मानें तो सीकर रोड स्थित भवानी निकेतन इस मामले में सबसे आगे हैं, यहां के 4 लेक्चरर कोऑर्डिनेटर हैं। इनमें खुद प्रिंसिपल मीना राठौड़ भी है। इनमें जगत सिंह अलवर, जोधपुर, बीकानेर, भरतपुर, उदयपुर, सुमन नरूका बीकानेर, सीकर, अजमेर, अलवर व भरतपुर,मीना राठौड़ कोटा व भरतपुर विश्वविद्यालय के कोऑर्डिनेटर हैं। ऐसे ही कानोड़िया कॉलेज की दीप्तिमा शुक्ला अजमेर, भरतपुर व कोटा ओपन यूनिवर्सिटी की लंबे समय से कोऑर्डिनेटर है। यहां एक और कमाल है कि कोटा ओपन का रीजनल सेंटर कॉमर्स कॉलेज परिसर में बना हुआ है। फिर भी कॉपियां सीधे शुक्ला के पास आती हैं। इसी तरह अलंकार कॉलेज की प्रिंसिपल कुसुम चौधरी भरतपुर, सीकर, अलवर व अजमेर यूनिवर्सिटी की कोऑर्डिनेटर है। एक सरकारी लेक्चरर, अशोक मिश्रा, जो वर्तमान में स्किल यूनिवर्सिटी में प्रतिनियुक्ति पर हैं, वह सीकर, अलवर, भरतपुर व अजमेर यूनिवर्सिटी के कोऑर्डिनेटर हैं।
सूत्रों ने बताया कि सभी कोऑर्डिनेटर बड़ी पहुंच वाले हैं। तभी लंबे समय से बने हुए हैं। वहीं दूसरी ओर सरकारी यूनिवर्सिटी के लेक्चरर लाइन में है कि उन्हें यह काम सौंपा जाए। हम इस विषय में नहीं जा रहे कि सरकारी लेक्चरर ज्यादा इंटेलिजेंट है या प्राइवेट, लेकिन इतना अवश्य है अगर प्राइवेट कॉलेज वाले यह बताएं कि भवानी निकेतन से पढ़े कितने बच्चे सिविल सर्विसेज में गए? उसका कारण है यहां से चार जने कोऑर्डिनेटर है। ये जितने कोऑर्डिनेटर बने हुए हैं, उन्होंने कितने बच्चों को पीएचडी करवा दी? जितने भी कोऑर्डिनेटर बने हुए हैं उनके बड़े लोगों से क्या संबंध है? इससे पता चल जाएगा कि आखिर अप्रोच वाले ही कोऑर्डिनेटर क्यों बन पाते हैं? सरकार को इसे गंभीरता से सोचना चाहिए क्योंकि छात्रों के भविष्य का मामला है।