-सरकार के कई आदेश के बाद भी दर्ज नहीं हो रही एफआईआर
-खुद मुख्यमंत्री के अधीन है सूचना एवं जनसंपर्क विभाग

जयपुर। राज्य के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग में 34 लाख के गबन का मामला इन दिनों खासी चर्चा का विषय बना हुआ है। उसका कारण है कि विभाग के मुखिया खुद प्रदेश के मुखिया हैं और ‘सरकार’ की ओर से आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाने के आदेश जारी हो चुके हैं।
गौरतलब है कि गबन 2013 में राजस्थान संवाद में हुआ। इस गबन की किसी व्यक्ति ने लिखित में शिकायत की थी। बाद में वित्त विभाग के अंकेक्षण अनुभाग ने ऑडिट करवाई और गबन को प्रमाणित मानते हुए एफआईआर दर्ज करवाने के लिए सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के आला अधिकारियों को निर्देश दिए। जानकारी के मुताबिक वित्त विभाग की ऑडिट ने प्रथम दृष्टा तत्कालीन वित्तीय सलाहकार अनुपमा शर्मा व अन्य को गबन का आरोपी माना है। आरोपित अनुपमा ने फर्जी भुगतान करने के लिए दूसरी बैंक में खाता खुलवाया जिससे भुगतान कर चेक बुक को वहां से गायब ही कर दिया।
सूत्रों की मानें तो फर्म जिन्हें भुगतान किया गया, विभाग के अधिकारियों के परिवार के लोगों के नाम, रिश्तेदारों के नाम या मित्रों व परिचितों के नाम है। भुगतान ढाई लाख से 5 लाख रुपए तक का किया हुआ है। सबसे कमाल की बात तो यह है कि बंदरबांट की पोल ना खुले इसलिए किसी आरटीआई का जवाब नहीं दिया जाता। जवाब आता है तो मात्र यह, ‘प्रश्न अस्पष्ट है।’
सूत्रों की मानें तो पूर्व में संवाद के मैनेजर प्रमोद पारीक ने आरटीआई का जवाब बतौर लोक सूचना अधिकारी की हैसियत से दिया हुआ है। अब पोल खुलती नजर आ रही है तो अधिकारियों की नजर के चश्मों का नंबर बिगड़ गया? क्या उन्हें टाइप किए सवाल नजर नहीं आ रहे? क्या इनकी आंखों में रतौंधी हो गई? सूत्रों ने बताया कि विभाग की ओर से 4 बार स्मरण पत्र केवल इस गबन के मामले में एफआईआर दर्ज करवाने के लिए भेजे गए, लेकिन विभाग के अधिकारी वित्त विभाग की ‘औकात’ ही नहीं समझते। सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि वित्त और सूचना एवं जनसंपर्क विभाग दोनों के मंत्री प्रदेश के मुखिया ही हैं।