बीकानेर। राष्ट्रीय कवि चौपाल की 203 वीं कड़ी में बहु विधा प्रतिभाओं का नव उत्साह से सम्मान किया गया… आज के कार्यक्रम की अध्यक्षता में संस्था संस्थापक नेमीचंद गहलोत मुख्य अतिथि डॉ. में भंवर भादाणी विशिष्ट अतिथि कमल रंगा तथा 5 बहु विधाओं की विभुतियां संजय आचार्य ”वरूणÓÓ, ख्याति नाम साफा कलाकार कृष्णचंद पुरोहित, पोर्टेड कला के युवा कलाकार कमल जोशी, सातों सुरों में माहिर बांसूरी वादक राजू लखोटिया उस्ताकला की नई शैली बीकानेर गोल्डन आर्ट के बहु चर्चित कलाकार राजकुमार भादाणी आदि के द्वारा मंच सुशोभित किया गया तथा उपस्थित साहित्यानुरागी एंव कविवृन्द आदि ने अपनी रचनाओं के साथ उपस्थिति प्रविष्टि दी.. कार्यक्रम का शुभारम्ीा ईश्वर वन्दना हे विधात्… हे ज्ञान दात में च मेधा दियताम.. संस्था अध्यक्ष रामेश्वर द्वारकादास बाड़मेरा ”साधकÓÓ द्वारा की गई। महेश सिंह बडगुजर- ओजी म्हारा धीन धीन मोटा भाग… स्वागत गीत गाकर आत्मीय अभिनन्दन किया।
आज के कार्यक्रम के अध्यक्ष संस्था संस्थापक नेमीचंद गहलोत- मां थारी महिमा न्यारी, गाथा गावे दुनिया सारी.. रचना सुनाई। संस्था सचिव डॉ. तुलसीराम मोदी- मां निर्माता जगत री.. मां पालन हार…. आज मदरर्स डे पर सामयिक रचना में वली मोहम्मद गोरी- सुण मां म्हारी बेटी हूं… म्हने पेट में क्यों कतल करे। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. भवर भादाणी (इतिहास विभाग के पुर्व विभागाध्यक्ष अलीगढ विश्वविधालय) ने कार्यक्रम की समीक्षा की तथा साहित्यकारों को उत्कृष्ट रचना के निर्देश भी दिए, विशिष्ट अतिथि कमल रंगा (राजस्थानी भाषा मुख्य सचेतक) ने पिता पर केन्द्रित रचना सुनाई तथा राष्ट्रीय कवि चौपाल की सिद्धियों को सराहा।
हास्य कवि बाबूलाल छगांणी- बिन मुछयों आला मुच्छयां राखो.. बिन मूंछ सून रे… संजय आचार्य ”वरूणÓÓ- मन्दिर जाने का हुआ आती दिख गई मां उनके चरणों में झुक गया मन्दिर हो गई मां… कैलाश टाक- कल मैं लाया था राहत की दवा तुमने कहां शराब है, कल बड़ला था मैने मोसम तुमने कहां मौसम खराब है। मनोहर चावला- नेताजी काट खावेला… लगे निशाना तो वो खुश… नहीं लगी मैं खुश.. किशननाथ- मूंछ तू नीची हु जा आवे है रूलयार हनुमन्त गोड- उजालों में हम को निकालोगे कब, परस्तिश में खुद की ढालोगे कब जुगलकिशोर पुरोहित- पाप कर्म से उत्पन्न आज तक धृणा, अत्याचार, अज्ञान, अथवा दम्म का अन्धेरा… रिश्ते, संगीत, पिता आदि पर रचनाए सुनाई ंसंस्था अध्यक्ष- रामेश्वर द्वारकादास बाड़मेरा ”साधकÓÓ- संस्कारों में कालजयी हैं मां.. कृष्णलाल बिश्नोई- डरते नहीं जो इंसा, भय के भालों से गजल सुनाई।
श्रीमती मधुरिमा सिंह- मां इतनी अच्छी होती जो हृदय में विराजित रहती है… राजू लखोटिया- मेरे मेहबूब कयामत होगी आज रूस्वा… पर बासूंरी धून सुनाई वरिष्ठ रंगकर्मी बी.एल. नवीन- 60 वर्ष पहले रंगमंच संस्मरण सुनाए। मेहबुब अली- रोजो का चांद देख कर मुस्लमां बीमार हो गया.. ईद का चांद देखकर मुस्लमां होशियार हो गया। मदन जैरी- गिलारी छोटी सी गिलारी माछर ने देख जीभ पलारीडॉ. आशा भार्गव- मां भगवान से बड़ी हो जाती है डॉ. महेश चुघ- ”चौथ का चांद वर्षों पहले मां कहती थी सुरेश अम्बेडकर- प्यार की सूरत है बेटी ममता की मूरत है बेटी समाज सेवी, साहित्यनुरागी जन जीवन कल्याण समिति के सेवाधारी सचिव एम.एल. व्यास के देवलोक गमन पर 2 मिनट का मौन रखा गया। कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ कवि कथाकार जुगलकिशोर पुरोहित ने किया आभार संस्थाध्यक्ष रामेश्वर द्वारकादास बाड़मेरा साधक ने दिया।