आचार्य तुलसी की मासिक पुण्यतिथि पर ‘तुलसी मेरी दृष्टि में विषय पर संगोष्ठी आयोजित

गंगाशहर। संसार में बहुत बड़े-बड़े वृक्ष लगे है लेकिन उनका स्त्रोत एक बीज होता है। सभी का धर्म एक है लेकिन प्रक्रिया अलग-अलग है। हमें एक साथ मिलकर रहना चाहिए। आचार्यश्री तुलसी ने हमेशा एकता पर जोर दिया, सभी धर्म को एक करने के लिए अणुव्रत जैसे आन्दोलन चलाये। ये उद्गार गंगाशहर स्थित नैतिकता का शक्तिपीठ पर आयोजित आचार्य तुलसी की मासिक पुण्यतिथि पर मुख्य वक्ता शिक्षाविद् व्याख्याता डॉ. राजशेखर पुरोहित ने कही। उन्होंने कहा कि हमेशा शब्दों को बोलने से पहले उसका भूत-भविष्य और वर्तमान का जानना बहुत जरूरी है। आचार्यश्री तुलसी ने राजस्थान की धरा पर रहते हुए भारत की नहीं अपितु देश-विदेशों में भी मानवता को पुर्न जीवीत करने का योगदान दिया। आचार्यश्री ने नैतिकता के मूल्यों को हरेक के जीवन में उतारने के लिए अणुव्रत का आन्दोलन किया और सफल भी रहे। उन्होंने सभी से अपील की कि सभी अपने जीवन में अणुव्रत का प्रयोग करें।


मुनिश्री गिरीशकुमारजी ने कहा कि आचार्य तुलसी के जीवन में असंभव शब्द था ही नहीं। उन्होंने संघ में अनेकों परिवर्तन किये। अनेकों अवदान दिए। उस समय उनके सामने यह कहने वाले भी बहुत थे कि ये हो नहीं सकता। पर आचार्य तुलसी ने कहा कि कोई भी काम मेरे लिए असंभव नहीं है। उन्होंने अणुव्रत के अवदानों की चर्चा करते हुए कहां कि अणुव्रत की आचार संहिता में भी कोई ऐसा नियम नहीं है कि जो व्यक्ति के लिए असंभव है। एक-एक नियम हर व्यक्ति के लिए संभव है। मुनिश्री ने कहा कि स्वयं पर अनुशासन करो तभी दूसरों पर अनुशासित कर पाएंगे। आचार्यश्री तुलसी हमेशा अनुशासन पसंद करते थे और इसी अनुशासन के कारण वे जैन समाज को अनुशासित कर पाए। तुलसी एक महान व्यक्तित्व व कृतित्व के धनी थे। आचार्यश्री तुलसी भक्त व बलवान थे। वे केवल जैन समाज के ही अपितु सम्पूर्ण धर्म समाज के आचार्य थे। मुनिश्री ने बताया कि आचार्यश्री तुलसी ने जन-जन को उपदेश दिया कि अपने स्वयं पर अनुशासन करो फिर दूसरे अनुशासित होंगे। मुनिश्री ने कहा कि आचार्यश्री में सभी गुणों का समन्वय था। वे एक पहरेदार थे जो हमेशा जीवन में जोश भरते रहते थे। आचार्यश्री हमेशा वक्ता की जगह कर्ता बनने की बात कहते थे।
संगोष्ठी की शुरूआत मुनिश्री गिरीशकुमारजी ने मंत्र मंत्रोच्चार व जप के द्वारा की गईं। मंगलाचरण अणुव्रत समिति गंगाशहर के अध्यक्ष राजेन्द्र बोथरा ने किया। संगोष्ठी के दौरान मुख्यवक्ता डॉ. राजशेखर पुरोहित का दीपिका बोथरा, जतन संचेती द्वारा ने स्मृति चिन्ह व साहित्य भेंट कर सम्मान किया गया। तेरापंथी सभा के कोषाध्यक्ष भैंरूदान सेठिया ने आभार ज्ञापित किया। परिचय तेयुप गंगाशहर के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अनिल सेठिया ने दिया। संगोष्ठी का संचालन मनोज सेठिया ने किया।(PB)